जम्मू और कश्मीर के लद्दाख क्षेत्र में लोहर का त्यौहार पारंपरिक और धार्मिक उत्साह के साथ मनाया जा रहा है. 15 दिनों तक चलने वाला यह लोसर उत्सव नव वर्ष की शुरुआत का प्रतीक है.
लोसर मनाने की सदियों पुरानी परंपरा ने मौजूदा सामुदायिक बंधन को मजबूत बनाने और हिमालय क्षेत्र में बसे लद्दाख वासियों के जीवन में खुशियां लाना जारी रखा है.
लोसर समुदाय आधारित सामाजिक– धार्मिक त्यौहार है जो लद्दाख में रहने वाले बौद्धों द्वारा हर साल 19 मठों में 18 मठवासी त्यौहारों के रूप में मनाया जाता है.
लोसर समारोह फासपुन परिवार के एक समूह के देवी एवं देवताओं की पूजा के साथ शुरू होता है. समारोह के दौरान लोग शुभकामनाएं एवं बधाई का आदान– प्रदान करते हैं.
लोसर की पूर्व संध्या पर परिवार के पूर्वजों को स्वादिष्ट भोजन परोस कर एवं कब्रिस्तान में पारंपरिक दीप जलाकर याद किया जाता है.
लोसर समारोह के दौरान लरदाक प्रार्थना करते हैं और तीन लामा जोगियों एवं दादा– दादी की परंपरागत भूमिका निभाने वाले व्यक्तियों के शुद्धिकरण का अनुष्ठान भी करते है.
लारदक इस भव्य समारोह के नर्तकों– कारकोस के प्रमुख होते हैं. गांव के ज्योतिषी द्वारा निर्धारित समय सीमा से पहले कारकोस को अपना नृत्य 360 बार कर लेना होता है.
कैलाश मानसरोवर के तीर्थ यात्रियों और नए साल के शुभचिंतकों के रूप में माने जाने वाले लामा जोगी गांव के हर एक घर में जाकर समृद्धि का बधाई देते हैं. बच्चे और युवा जानवरों की खाल से बने जैकेट पहन एवं अपने चेहरे को रंग–बिरंगे मुखौटों में छुपा कर इस भव्य समारोह में शामिल होते हैं. ये घर– घर जाकर नए साल में समृद्धि देते हैं.

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