जम्मू एवं कश्मीर के लद्दाख क्षेत्र का बौद्ध महोत्सव, लोसर 22 दिसंबर, 2014 को शुरू हो गया . यह त्योहार लद्दाख में नए साल की शुरुआत के उपलक्ष में मनाया जाता है यह त्योहार पारंपरिक और धार्मिक जोश के साथ लोगों द्वारा मनाया जाता है.त्योहार नए साल का जश्न मनाने के लिए लद्दाख के धार्मिक और आवासीय स्थलों में रौशनी एवं जगमगाहट के साथ शुरू होता है.जमीअंग नामग्याल के शासन (1955-1610) से पहले यह दिन लद्दाखी बौद्ध वर्ष के पहले दिन के रूप में मनाया जाता था जो चंद्रमा और सूर्य (हिंदुओं से काफी सामानता ) पर आधारित है .हालांकि,जमीअंग नामग्याल द्वारा नए साल से पहले स्कर्दू पर आक्रमण करने का फैसला करने के बाद इस दिन को दो दिन पहले निर्धारित कर दिया गया था.
तब से सेलोसर 10 वीं बोधि महीने के अंतिम दो दिन मनाया जाता है और ईसाई कैलेंडर के दिसंबर माह में पड़ता है
इस दौरान, लद्दाख के लोग विशेष रूप से अपने परिवार के पूर्वजों को याद करते है.इस दिन लोग अपने परिवार के साथ कब्रिस्तान जाते हैं और दिवंगत आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं. इसके अलावा लोग लोसर अभिवादन के आदान-प्रदान के लिए एक दूसरे के घरों पर भी जाते हैं
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