लोक प्रतिनिधित्व (दूसरा संशोधन और विधि मान्यकरण) विधेयक, 2013 को राज्यसभा में 30 अगस्त 2013 को पेश किया गया. कानून मंत्री कपिल सिब्बल ने इस विधेयक को पेश किया. इसके जरिये वर्ष 1951 के मूल कानून में बदलाव किए जाने हैं. यदि यह विधेयक संसद से पारित होने के बाद कानून बन गया तो यह 10 जुलाई 2013 से लागू होना है. उसी दिन सर्वोच्च न्यायालय ने दो निर्णय दिए थे. इनके तहत दोषी साबित किए गए सांसदों एवं विधायकों की सदस्यता को समाप्त करने तथा ऐसे लोगों के जेल से चुनाव लड़ने पर रोक लगाई गई.
लोक प्रतिनिधित्व (दूसरा संशोधन और विधि मान्यकरण) विधेयक, 2013 का उद्देश्य
इस विधेयक का उद्देश्य सर्वोच्च न्यायालय के दो फैसलों को निष्प्रभावी बनाने है जिसमें दोषी ठहराये गए सांसदों एवं विधायकों को फौरन अयोग्य घोषित करने और उनके चुनाव लड़ने पर रोक संबंधित व्यवस्था दी गई थी.
विधेयक पर केंद्र सरकार का मत
विधेयक के कारणों एवं उद्देश्यों में कहा गया कि सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के उक्त आदेश की समीक्षा की है तथा भारत के एटार्नी जनरल से विचार विमर्श कर इस आदेश के खिलाफ पुनरीक्षा याचिका दायर की है. इसमें कहा गया कि इसके अतिरिक्त सरकार का यह मत है कि उक्त पुनरीक्षा याचिका के निर्णय की प्रतीक्षा किए बिना सर्वोच्च न्यायालय के आदेश से पैदा हुई स्थिति से उपयुक्त रूप से निबटने की जरूरत है. अत: उक्त कानून का संशोधन करने का प्रस्ताव किया गया.
लोक प्रतिनिधित्व (दूसरा संशोधन और विधि मान्यकरण) विधेयक, 2013 के मुख्य बिंदु
इसमें प्रस्तावित है कि विधायक या विधान पार्षद को तब अयोग्य घोषित नहीं किया जा सकता है जबकि वह दोषी साबित होने के 90 दिनों के भीतर अपील दाखिल कर देता है या फैसले पर स्थगन आदेश मिल जाता है.
जन प्रतिनिधि कानून में संशोधन के लिए लाए गए इस विधेयक में स्पष्ट किया गया है कि दोषी ठहराये जाने के बाद कोई सांसद या विधायक को अयोग्य नहीं करार दिया जा सकता बशर्ते कि उनकी अपील अदालत के सामने लंबित हो और फैसले पर स्थगनादेश दिया गया हो.
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