वामपंथी उम्मीदवार मिशेल बैकेलेट को दूसरे कार्यकाल के लिए चिली का राष्ट्रपति निर्वाचित किया गया. इसी निर्वाचन के साथ वह चिली में दूसरे कार्यकाल के लिए चुनी जानी वाली पहली महिला बन गईं. इस चुनाव परिणाम की घोषणा 15 दिसंबर 2013 को की गई.
चुनाव
चिली में राष्ट्रपति चुनाव के दूसरे दौर के मतदान में मिशेल बैकेलेट को 62.59 प्रतिशत जबकि उनकी प्रतिद्वंद्वी राष्ट्रपति पद की प्रत्याशी एवलिन मत्तेई को 37.40 प्रतिशत मत मिले. राष्ट्रीय निर्वाचन बोर्ड के अनुसार इस चुनाव में कुल मतदान 56 प्रतिशत रहा. चिली में 1.3 लाख से अधिक मतदाता है. वर्ष 2013 के इस चुनाव में पहली बार राष्ट्रपति चुनाव के लिए मतदान को ऐच्छिक रखा गया. नवंबर 2013 में हुए पहले दौर के चुनाव में किसी भी उम्मीदवार को 50% से अधिक मत प्राप्त नहीं हुए थे.
चिली की पूर्व राष्ट्रपति मिशेल बाशेलेट "नया बहुमत" नामक एकजुट वामपंथी गठबंधन की नेता हैं. इस गठबंधन में मिशेल बाशेलेट की समाजवादी पार्टी (Socialist Party), क्रिश्चियन डेमोक्रेट्स (Christian Democrats) और कम्युनिस्ट पार्टी (Communists ) शामिल हैं. पूर्व श्रम-मंत्री एवलिन मत्तेई सत्तारूढ़ दक्षिणपंथी दल "चिली के लिए गठबंधन" की नेता हैं.
मिशेल बैकेलेट को 11 मार्च 2014 को चिली के राष्ट्रपति का पदभार ग्रहण करना है. उन्हें कंजर्वेटिव अरबपति राष्ट्रपति सेबेस्टियन पिनेरा का स्थान लेना है.
लातिन अमेरिकी देश चिली
चिली एक लातिन अमेरिकी देश है. इसकी राजधानी सेंटियागो है. चिली के संविधान के अनुसार राष्ट्रपति निर्वाचित होने के लिए राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को 50% से अधिक मत प्राप्त करने होते हैं. 50% से कम मत मिलने की स्थिति में दूसरे दौर का चुनाव कराने का प्रावधान है. चिली के राष्ट्रपति का कार्यकाल 4 वर्ष का होता है.
चिली में किसी भी अन्य लातिन अमेरिकी देश की तुलना में सबसे अधिक प्रति व्यक्ति आय है. देश के इतिहास में पहली बार दो महिलाएं राष्ट्रपति पद के चुनाव मैदान में उतरी हैं.
मिशेल बैकेलेट से सम्बंधित मुख्य तथ्य
• मिशेल बैकेलेट वर्ष 2006 में चिली की पहली महिला राष्ट्रपति बनीं थी.
• वह 2006-10 तक चिली की राष्ट्रपति रहीं.
• मिशेल बैकेलेट 14 सितंबर 2010 से 15 मार्च 2013 तक संयुक्त राष्ट्र महिला की कार्यकारी निदेशक (Executive Director of UN Women) रही.
विदित हो कि राष्ट्रपति पद के लिए यह दोनों उम्मीदवार दो जनरलों की बेटियां हैं.11 सितंबर 1973 को पिनोचेत द्वारा किए गए तख्तापलट के दौरान ये जनरल एक दूसरे के विरोधी पक्षों में शामिल थे.
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