24 अक्टूबर 2015 को संयुक्त राष्ट्र ने अपनी स्थापना के 70 वर्ष पूरा किया. इस ऐतिहासिक अवसर पर, सतत विकास एजेंडा 2030 को मंजूरी देने के लिए इसके न्यूयॉर्क मुख्यालय पर एक विशेष वार्षिक आमसभा का आयोजन किया गया. एजेंडा मिलिनेयम विकास लक्ष्यों (एमडीजी) का तार्किक विस्तार है जिसने पिछले 15 वर्षों से वैश्विक नीति वार्ता को निर्देशित किया है.
गठन
संयुक्त राष्ट्र का गठन 24 अक्टूबर 1945 को उस ऐतिहासिक मोड़ पर हुआ था जब दुनिया द्वितीय विश्व युद्ध के विनाश और हिरोशिमा और नागासाकी की घटनाओं की पृष्ठभूमि में परमाणु बम के फिर से इस्तेमाल की चिंताओं से घिरा हुआ था.
संयुक्त राष्ट्र 1920 में विश्व युद्ध के अंतर्काल में गठित अप्रभावी देशों का उत्तराधिकारी है.
इसके गठन का उद्देश्य दो उद्देश्यों को प्राप्त करना था– अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखना और और आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं लोगों की अंतरराष्ट्रीय समस्याओं को सुलझाने में अंतरराष्ट्रीय सहयोग प्राप्त करना.
उपलब्धियां
शीत– युद्ध काल से पहले
अपने गठन के आरंभिक दशकों में तीसरे विश्व युद्ध के लिए क्षेत्रीय तनावों को न बढ़ने देकर यह अपनी उम्मीदों पर खरा उतरा. स्वेज नहर संकट ( 1956), एशिया और अफ्रीका में उपनिवेशवाद की प्रक्रिया, आदि को जिस उदारता के साथ इसने स्थिति को संभाला, वह एक नए संगठन के लिए कम मायने नहीं रखता है.
शीत युद्ध युग
यह संयुक्त राष्ट्र का परिपक्व चरण था. इस अवधि के दौरान इसका मुख्य काम अमेरिका और यूएसएसआर के बीच शीत– युद्ध युग की राजनीति के साथ काम करना था और उन्हें युद्ध के मैदान में उतरने से रोकना था. शांतिपूर्ण प्रक्रिया में 1962 का क्यूबाई मिसाइल संकट इस अवधि की सबसे बड़ी उपलब्धि रही.
शीत– युद्ध के बाद का युग
1990 के दशक में, अपने गठन के 50 साल पूरा करने पर, इसे सोवियत संघ के विघटन और अमेरिका के एकमात्र वैश्विक महाशक्ति के रूप में उभरने की नई वास्तिवकता का सामना करना पड़ा.
इस अवधि की मुख्य उपलब्धि थी अमेरिका का पक्ष लेने के प्रलोभन से दूर रहना और संगठन को गरीब एवं सीमांत देशों के लिए प्रासंगिक बनाए रखना.
हाल के कुछ वर्षों में
• दुनिया के अधिकांश देशों को समस्याओं से निपटने के लिए विशेष समूहों का गठन करने और सहयोग प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित करना. इनमें से कुछ हैं– जी20 ( वित्तीय संकट से निपटने के लिए), यूएनएफसीसी ( जलवायु परिवर्तन) और डब्ल्यूटीओ (व्यापार).
• सीरिया के लाखों शरणार्थियों का तुर्की, लेबनान और जॉर्डन जैसे पड़ोसी देशों में पुनर्वास.
• अफ्रीका में संघर्ष को हल करने के लिए शांति स्थापना एवं शांति मिशनों की शुरुआत.
• इन सब के अलावा विकास की अवधारणा को बढ़ाना, मानवाधिकारों को प्रोत्साहित करना, समाज के विकास के लिए नागरिक समाज की क्षमताओं को बढ़ाना और उपेक्षित वर्गों के सशक्तिकरण में इसकी भूमिका प्रशंसनीय है.
इस तथ्य के बावजूद की संयुक्त राष्ट्र ने अपने आदेशपत्र पर खरे उतरने के लिए कड़ी मेहनत करने की कोशिश की है, फिर भी इराक में अमेरिकी हमले और आमदनी के स्तरों में बढ़ती असमानता को रोकने में विफल रहने की वजह से इसकी आलोचना हुई है.
विशेष रूप से दशक पुराने फिलिस्तीन समस्या का हल ढूंढ़ने में संयुक्त राष्ट्र की विफलता ने उसकी व्यापक आलोचना करवाई.
प्रासंगिकता
संयुक्त राष्ट्र अभी भी प्रासंगिक है,
• दुनिया अभी भी परमाणु हमलों के अधीन है.
• अफ्रीका में जातीय, धार्मिक और क्षेत्रीय संघर्षों में बढ़ोतरी हुई है.
• दुनिया की करीब एक तिहाई आबादी गरीब है जिन्हें वैश्विक बहुपक्षीय एजेंसियों के ठोस विकास कार्रवाई की जरूरत है.
• धन वितरण में जारी असमानता और सभी क्षेत्रों में संतुलित और सतत विकास प्राप्त करने की जरूरत
• गैर– देशी कारकों से आतंकवाद (आईएसआईएस, अलकायदा आदि) का बढ़ता खतरा. इसे रोकने के लिए देशों को समन्वित प्रयास करने होंगे.
• आखिरकार आपस में जुड़ी दुनिया में कोई भी एक देश अकेला सभी समस्याओं को हल नहीं कर सकता और वैश्विक सुरक्षा प्राप्त करने के लिए संयुक्त राष्ट्र अभी भी सबसे उपयुक्त संगठन है.
सुधार
आधुनिक समय की चुनौतियों का सामना करने के लिए खुद को प्रभावी तरीके से लैस करने हेतु संयुक्त राष्ट्र को संगठनात्मक सुधार करने पड़ेंगे जैसे-
प्राथमिकता के आधार पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी और अस्थायी सदस्यों का विस्तार क्योंकि इसकी संरचना में अभी भी 1940 के दशक की झलक मिलती है.
विशेषज्ञ (एफएओ, यूनेस्को, डब्ल्यूएचओ आदि) और सहायक एजेंसियां ( शांति मिशन) के निर्णय लेने में विकसित और विकासशील देशों को अपनी बात कहने का अधिक अधिकार देना.
निष्कर्ष
70 वर्षों की अपनी लंबी यात्रा में संयुक्त राष्ट्र ने खुद को एक संगठन से वैश्विक संस्थान में बदला है. बतौर वैश्विक नीति एजेंसी और अंतरराष्ट्रीय विवादों को सुलझाने में मध्यस्थ के तौर पर इसने अपनी भूमिका बखूबी निभाई है.
बहरहाल कूटनीति की प्रासंगिकता में विवाद को सुलझाने में दबाव और आक्रामकता को हटा कर यह अंतरराष्ट्रीय समुदाय के बीच सफलतापूर्वक विश्वास स्थापित कर सकता है.
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