सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति एसएच कपाडिया की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में संविधान को संसद से ऊपर का दर्जा दिया. निर्णय में पीठ ने यह बताया कि हमारे संविधान में अवधारणा के रूप में कानून के शासन की कोई जगह नहीं है बल्कि इसे हमारे संविधान की मूलभूत विशेषता के रूप में रेखांकित किया गया है जिसे संसद द्वारा भी निरस्त या नष्ट नहीं किया जा सकता और वास्तव में यह इससे बंधी है.
सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति एसएच कपाडिया, न्यायमूर्ति मुकुंदकम शर्मा, न्यायमूर्ति केएस राधाकृष्णन, न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार और न्यायमूर्ति अनिल आर दवे की पीठ ने यह महत्वपूर्ण निर्णय अगस्त 2011 के दूसरे सप्ताह में दिया.
सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति एसएच कपाडिया की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने अपने निर्णय में केशवानंद भारती मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए निर्णय का उदाहरण देते हुए बताया कि कानून का शासन मूलभूत ढांचे के सिद्धांत के सर्वाधिक महत्वपूर्ण पहलुओं में से एक है. कानून का शासन संसद की प्रधानता की पुष्टि करता है लेकिन साथ ही इसे संविधान के ऊपर प्रभुत्व देने से इंकार करता है.
संविधान पीठ ने व्यवस्था दी कि कानून का शासन संसद की विधायी शक्तियों पर एक अंतर्निहित परिसीमा है. पीठ ने हालांकि संवैधानिक अदालतों को कानून के शासन के सिद्धांत को पूर्ण व्यवस्था मानने के प्रति आगाह किया और बताया कि सिद्धांत को दुर्लभ मामलों में उन कानूनों को खत्म के लिए क्रियान्वित किया जाना चाहिए जो दमनकारी हैं और जो हमारे संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन हैं.
सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति एसएच कपाडिया की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने अपने निर्णय में यह भी बताया कि कोई भी कानून, जो किसी व्यक्ति को निजी स्वार्थ से उसकी निजी संपत्ति से वंचित करे, वह गैर कानूनी और अनुचित होगा और यह कानून के शासन को कमजोर करता है तथा इसकी न्यायिक समीक्षा की जा सकती है.
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