भारत और चीन के बीच स्थित क्या है Mcmahon Line, जानें

Mcmahon Line भारत और चीन के बीच एक स्पष्ट सीमा रेखा को परिभाषित करती है। यह रेखा ब्रिटिश भारत सरकार में तत्कालीन विदेश सचिव सर हेनरी मैकमोहन द्वारा निर्धारित की गई थी। इस लाइन की लंबाई 890 किलोमीटर है, लेकिन चीन इस लाइन को नहीं मानता है। यह भारत और चीन के बीच विवाद का भी केंद्र है।

Jul 26, 2023, 17:41 IST
मैकमोहन लाइन
मैकमोहन लाइन

चीन एक ऐसा देश है, जो चाहता है कि फिर से औपनिवेशिक काल यानि कॉलोनियल पीरियड आए और पूरी दुनिया चीनी शासन के अधीन आ जाए। चीन का अपने सभी पड़ोसी देशों के साथ या तो जमीन या जल विवाद है। इस लेख के माध्यम से हम भारत और चीन के बीच खींची गई मैकमोहन रेखा और उससे उपजे विवाद के बारे में जानेंगे।

 

क्या है Mcmahon Line ?

मैकमोहन रेखा पूर्वी-हिमालयी क्षेत्र के चीन-कब्जे वाले क्षेत्र और भारतीय क्षेत्रों के बीच की सीमा को चिह्नित करती है। यह क्षेत्र काफी ऊंचाई वाला पहाड़ी स्थान है। इस रेखा का निर्धारण ब्रिटिश भारत सरकार के तत्कालीन विदेश सचिव सर हेनरी मैकमोहन द्वारा किया गया था और उन्हीं के नाम पर इसे मैकमोहन रेखा कहा जाता है। इस लाइन की लंबाई 890 किलोमीटर है।

 

मैकमोहन रेखा 1914 की शिमला संधि का परिणाम थी, जो भारत और तिब्बत के बीच हुई थी। लेकिन, चीन इस समझौते और लाइन को नहीं मानता है।

क्या है शिमला संधि

1914 में स्पष्ट सीमांकन के लिए भारत और तिब्बत के प्रतिनिधियों के बीच शिमला संधि पर हस्ताक्षर किए गए थे। इस संधि में चीन मौजूद नहीं था, क्योंकि इस समय तक तिब्बत एक स्वतंत्र क्षेत्र था, इसीलिए इस संधि के समय चीन के प्रतिनिधित्व की कोई आवश्यकता नहीं थी।

इस प्रकार शिमला संधि के अनुसार, मैकमोहन रेखा भारत और चीन के बीच स्पष्ट सीमा रेखा है। भारत की ओर से ब्रिटिश शासकों ने अरुणाचल प्रदेश के तवांग और तिब्बत के दक्षिणी हिस्से को भारत का हिस्सा माना और इस पर तिब्बतियों ने भी सहमति जताई। इससे अरुणाचल प्रदेश का तवांग क्षेत्र भारत का हिस्सा बन गया।

चीन मैकमोहन रेखा को क्यों नहीं मानता

चीन के मुताबिक, तिब्बत हमेशा से उसके क्षेत्र का हिस्सा रहा है, इसलिए तिब्बत के प्रतिनिधि चीन की सहमति के बिना किसी भी समझौते को स्वीकार करने के लिए अधिकृत नहीं हैं। 1950 में चीन ने तिब्बत पर पूरी तरह कब्जा कर लिया। अब चीन मैकमोहन रेखा को नहीं मानता है।

चीन का यह भी तर्क है कि शिमला समझौते में चीन शामिल नहीं था, इसलिए शिमला समझौता उस पर बाध्यकारी नहीं है। 1950 में तिब्बत पर कब्जे के बाद ही चीन ने अरुणाचल प्रदेश पर अपना अधिकार जताया।

 

मैकमोहन रेखा पर भारत का रुख

भारत का मानना ​​है कि जब 1914 में मैकमोहन रेखा खींची गई थी, तब तिब्बत एक कमजोर, लेकिन स्वतंत्र देश था, इसलिए उसे किसी भी देश के साथ सीमा समझौते पर बातचीत करने का पूरा अधिकार है।

भारत के अनुसार, जब मैकमोहन रेखा खींची गई थी, तब तिब्बत पर चीन का शासन नहीं था, इसलिए मैकमोहन रेखा भारत और चीन के बीच स्पष्ट और कानूनी सीमा रेखा है।

1950 में तिब्बत पर चीनी कब्जे के बाद भी तवांग क्षेत्र भारत का अभिन्न अंग बना रहा।

मैकमोहन रेखा पर वर्तमान स्थिति

भारत मैकमोहन रेखा को मान्यता देता है और इसे भारत और चीन के बीच 'वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC)' मानता है, जबकि चीन मैकमोहन रेखा को मान्यता नहीं देता है। चीन का कहना है कि विवादित क्षेत्र का क्षेत्रफल 2,000 किलोमीटर है, जबकि भारत का दावा है कि यह 4,000 किलोमीटर है।

भारत और चीन के बीच यह जमीन विवाद तवांग (अरुणाचल प्रदेश) में है, जिसे चीन तिब्बत का दक्षिणी हिस्सा मानता है। शिमला समझौते के अनुसार यह भारतीय राज्य अरुणाचल प्रदेश का हिस्सा है।

इस प्रकार यह स्पष्ट है कि चीन लगभग हर उस संधि को अस्वीकार करता है, जिसे उसने साम्यवादी क्रांति से पहले मंजूरी दी थी। पंचशील समझौते के बारे में भी यही सच है।

Kishan Kumar
Kishan Kumar

Senior content writer

A seasoned journalist with over 7 years of extensive experience across both print and digital media, skilled in crafting engaging and informative multimedia content for diverse audiences. His expertise lies in transforming complex ideas into clear, compelling narratives that resonate with readers across various platforms. At Jagran Josh, Kishan works as a Senior Content Writer (Multimedia Producer) in the GK section. He can be reached at Kishan.kumar@jagrannewmedia.com
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