भारतीय रेलवे को देश की लाइफलाइन के रूप में जाना जाता है। रेलवे में प्रतिदिन 2.5 करोड़ से अधिक यात्री सफर करते हैं, जो कि 13 हजार से अधिक पैसेंजर ट्रेनों से 7 हजार से अधिक स्टेशनों से गुजरते हैं।
पैसेंजर सर्विस के अलावा रेलवे माल ढुलाई के लिए भी जानी जाती है। यहां तक कि रेलवे का 50 फीसदी से अधिक राजस्व माल ढुलाई से ही आता है। आपने अक्सर रेलवे में नीले रंग के कोच को देखा होगा। हालांकि, क्या आप जानते हैं कि रेलवे में ये नीले रंग के कोच का क्या मतलब होता है। यदि नहीं, तो इस लेख में इस संबंध में पूरी जानकारी दी गई है।
ICF कोच के रूप में पहचान
नीले रंग के कोच की पहचान Integral Coach Factory(ICF) के रूप में होती है। इन कोच का निर्माण चेन्नई में स्थित पेरांबूर में आईसीएफ फैक्ट्री में किया जाता है।
1950 से शुरू हुआ निर्माण
नीले रंग के कोच का निर्माण 1950 से स्वीस कंपनी स्वीस कार एंड एलीवेटर मैनुफैक्चरिंग कंपनी के सहयोग से भारतीय रेलवे ने किया था। इस कंपनी की मदद से कोच का डिजाइन तैयार किया गया था।
ब्रेकिंग सिस्टम में बदलाव के बाद हुआ नीला रंग
रेलवे में आजादी से पहले ब्रेकिंग सिस्टम अलग था। हालांकि, 1950 के बाद रेलवे कोच के ब्रेकिंग सिस्टम में बदलाव किया गया और इनमें एयर ब्रेक्स जोड़े गए, जिसके बाद रेलवे द्वारा कोच को नीले रंग में रंगना शुरू किया गया, जिससे रेलवे को कोच की पहचान हो सके।
170 किलोमीटर तक होती है रफ्तार
नीले रंग वाले कोच रेलवे के पारंपरिक कोच हैं, जो कि अधिक रफ्तार भरने में सक्षम नहीं हैं। ऐसे में इन कोच की अधिकतम रफ्तार 140 से 170 किलोमीटर प्रतिघंटा तक होती है।
25 साल होती है आयु
नीले रंग वाले यानि कि आईसीएफ कोच की अधिकतम आयु 25 वर्ष तक होती है। समय-समय पर रेलवे यार्ड में इन कोच की मरम्मत की जाती है। यात्री सेवा से बाहर होने पर इन कोच का उपयोग विभिन्न उद्देश्यों के लिए जाता है, जिनमें रेलवे ऑफिस, ट्रेनिंग पर्पस, म्यूजियम या अन्य उद्देश्य शामिल होते हैं। वहीं, अधिक पुराने कोच का विनिर्माण भी किया जाता है।
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