16 दिसंबर: विजय दिवस
पूरे देश में 16 दिसंबर 2015 को विजय दिवस के रूप में मनाया गया. भारतीय सेना द्वारा वर्ष 1971 में पाकिस्तान सेना पर जीत (16 दिसंबर 1971) के उपलक्ष्य में प्रतिवर्ष विजय दिवस मनाया जाता है.
विदित हो कि 16 दिसंबर 1971 को भारतीय सेना ने पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान में बांग्लादेश) में पाकिस्तानी सेना को पराजित किया एवं पाकिस्तानी सेना के जनरल अमीर अब्दुल्ला खान नियाजी ने 96,000 सैनिकों के साथ बिना शर्त आत्म समर्पण कर दिया. जिसके फलस्वरूप बांग्लादेश का एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में जन्म हुआ.
1971 युद्ध से संबंधित संछिप्त जानकारी:
वर्ष 1971 के भारत-पाक युद्ध की शुरुआत पाकिस्तानी फौजी तानाशाह याहिया खान के उस आदेश के बाद हुई थी, जिसमें उन्होंने 25 मार्च 1971 को पूर्वी बांग्लादेश के जन विद्रोह को दबाने की कमान पूरी तरह से पाकिस्तानी सेना को दे दी और इसका निर्णायक मोड पाकिस्तान की ही गलती से आया, जब पाकिस्तान ने शाम ढलते ही 3 दिसंबर 1971 को भारतीय वायुसैनिक अड्डों पर हमला किया.
भारतीय सेना ने हमले के आदेश के बाद पूर्वी पाकिस्तान यानि आज के बांग्लादेश को पूरब की तरफ से घेरना शुरू किया, साथ ही उत्तर की ओर से भी हमला शुरू हुआ. ये वो लड़ाई थी, जिसमें भारतीय नौसेना ने भी पाकिस्तानी नौसेना को मात दी, भारतीय सेना ने कराची में धुएं का बादल बना दिया. तेल डिपो को आग में झोंक दिया. उसकी पनडुब्बी को मार गिराया. पश्चिमी मोर्चे पर भारत ने दबाव बनाया, तो पूरब में पाकिस्तान तिलमिलाने लगा. यूं तो लड़ाई 3 दिसंबर की जगह 23 नवंबर से ही शुरू हो चुकी थी, पर आधिकारिक ऐलान तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 3 दिसंबर 1971 को किया. इस दौरान हिली की लड़ाई सबसे खौफनाक रही, जिसपर फतह हासिल कर भारतीय सेना ने पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तानी सेना को दो हिस्सों में बांट दिया, और 16 दिसंबर की सुबह 9 बजे ढाका में प्रवेश किया. जहां दोपहर के समय जनरल नियाजी ने पिस्तौल समर्पित कर पाकिस्तानी सेना के समर्पण को स्वीकार किया.
उस समय भारतीय सेना की पूर्वी कमान के स्टाफ़ ऑफ़िसर लेफ़्टिनेंट जनरल जेएफ़आर जैकब सबसे पहले ढाका पहुंचने वाले अधिकारी थे. जिन्हें बांग्ला मुक्ति वाहिनी के लड़ाकों ने पाकिस्तानी समझकर घेर लिया. उन्होंने अपने बारे में बताया, तब उन्हें रास्ता दिया गया. उन्होंने ही नियाजी को आत्मसमर्पण की शर्तें सुनाई.
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