6 मई 2016 को बॉम्बे हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र में बैलों, सांढ़ों की हत्या पर प्रतिबंध को बनाये रखा और संकेत दिया कि राज्य में गोमांस की खपत पर प्रतिबंध जारी रहेगा.
न्यायमूर्ति एएस ओका और एससी गुप्ते की खंडपीठ ने राज्य के बाहर मारे गए पशुओँ के मांस को रखने को वैध बताने वाले प्रावधान को निरस्त कर दिया.
फैसला की मुख्य बातें :
• इन प्रावधानों को "असंवैधानिक" बताते हुए खंडपीठ ने कहा कि राज्य में मारे गए पशुओं के सिर्फ " जानबूझ कर रखे गए conscious possession" मांस को अपराध माना जाएगा.
• इस फैसले से निर्दोष साबित करने की जिम्मेदारी व्यक्तियों की नहीं होगी और नियम का उल्लंघन किया गया है, सिद्ध करना अभियोजन पक्ष का काम होगा.
• 245 पन्नों के सख्त शब्दों वाले अपने फैसले में हाईकोर्ट ने कहा है कि गोमांस को रखना वैध बताने वाले अंश नागरिकों की निजता के अधिकार का उल्लंघन हैं.
• इसमें कहा गया है कि राज्य नागरिकों के घरों में घुसपैठ नहीं कर सकते और न ही उन्हें अपनी पसंद के भोजन को रखने और खाने से रोक सकते हैं.
• खंडपीठ ने कहा कि नागरिकों को अकेला छोड़ दिए जाने की जरूरत है खासकर तब जब उनकी पसंद का भोजन उनके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक नहीं है.
यह फैसला महाराष्ट्र पशु संरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 1995 की संवैधानिक वैधता खासकर महाराष्ट्र के बाहर मारे गए पशुओं के मांस को रखने और उसकी खपत को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान किया गया.
अधिनियम ने 1976 में ही गायों की हत्या पर प्रतिबंध लगा दिया था, हाल के संशोधन में बैल और सांढ़ों की हत्या एवं उनके मांस को रखने और उसकी खपत करने पर भी रोक लगा दी गई है.
अधिनियम के अनुसार ऐसा करने पर पांच वर्षों की जेल की सजा काटनी होगी और बैल या सांढ़ों के मांस को रखने के जुर्म में 10,000 रुपये का जुर्माना देना होगा.
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