2017 का बजट तैयार हो चुका है। बजट दस्तावेजों की प्रिटिंग से पहले केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 'हलवा समारोह' का उद्घाटन किया। अगले 10 दिनों तक वित्त मंत्रालय के 100 से भी अधिक अधिकारी नई दिल्ली स्थित बजट प्रिंटिंग प्रेस में रहेंगे और जब तक 1 फरवरी 2017 को वित्त मंत्री अरूण जेटली का बजट भाषण खत्म नहीं हो जाता है तब तक इन अधिकारियों को परिसर से बाहर जाने की अनुमति नहीं होगी।
दशकों से ही प्रभावशीलता में सुधार करने हेतु वार्षिक बजट के लिए एक महीने पहले से तैयारियां शुरू हो जाती है। इससे पहले वार्षिक आम बजट फरवरी के अंतिम कार्य दिवस को प्रस्तुत किया जाता था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा की गयी घोषणा के अनुसार, फरवरी की शुरूआत में बजट पेश करने से अर्थव्यवस्था को एक सकारात्मक गति मिलेगी और अप्रैल की शुरूआत से ही योजनाओं के लिए बजट उपलब्ध हो जाएगा। इसके अलावा, 1 जुलाई, 2017 से वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को भी इसमें जोड़ा जाएगा। विमुद्रीकरण (नोटबंदी) के प्रभावों तथा कैशलेस इकॉनमी जैसी पहलों ने 2017 के बजट को सही अर्थों में एक अद्वितीय दस्तावेज बना दिया है।
अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों की तुलना में सब्सिडी, करों, उपकरों और प्रचार योजनाओं के संबंध में किसी भी नीति में परिवर्तन करने के लिए कृषि सबसे ज्यादा संवेदनशील क्षेत्र है। किसान हमेशा ही बीज, उर्वरक, ऊर्जा सब्सिडी, न्यूनतम समर्थन मूल्य, उपज की खरीद, आदि के लिए सरकारों पर निर्भर रहते हैं।
यह विडंबना ही है कि आजादी के 69 सालों और अर्थव्यवस्था के उदारीकरण के बाद भी पूरी तरह से निजी स्वामित्व वाली कृषि क्षेत्र के सुधार में कोई प्रगति नहीं हुई है और अपने अस्तित्व के लिए यह क्षेत्र 'बाहरी' प्रशासनिक उपायों पर निर्भर है।
इस पृष्ठभूमि में इस आर्टिकल के माध्यम से हम भारतीय कृषि क्षेत्र का एक अध्ययन कर रहे हैं जिसमें कृषि क्षेत्र के सामने पेश हो रही चुनौतियों और उनके समाधानों का वर्णन है जो 2017 के बजट में भी शामिल हो सकता है।
कृषि क्षेत्र को वर्तमान में मिल रही चुनौतियों का वर्णन
• सकारात्मक: केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) द्वारा हाल ही में अनुमान लगाया गया है कि 2016-17 के दौरान कृषि क्षेत्र में 4.1% की वृद्धि होगी। पिछले वर्षों की मंद विकास दर को देखते हुए यह विकास दर कृषक समुदाय के लिए एक बड़ी राहत है।
• 2015-16 में कृषि के सकल घरेलू उत्पाद में सिर्फ 1.2% की वृद्धि हुई है और लगातार खराब मानसून तथा परिणामी उत्पादन मंदी व बढ़ते ग्रामीण संकट के कारण 2014-15 के दौरान इसमें 0.2% की कमी दर्ज की गयी।
• अनुकूल मानसून के कारण जलाशयों में जल भंडारण बेहतर रहा और फसलों की अच्छी कीमतों के कारण खरीफ के बुवाई क्षेत्र में वृद्धि हुई जिसने रबी सीजन को प्रेरित किया है।
• नकारात्मक: भारत में कृषि उत्पादकता दुनिया में सबसे कम है। उदाहरण के लिए, चीन 600 मिलियन टन से ज्यादा खाद्यान्न का उत्पादन करता है जबकि भारत अपने कृषि क्षेत्र से केवल 251 मिलियन टन (2015-16) का खाद्यान्न उत्पादन करता है, जो चीन के मुकाबले काफी कम है।
• कुछ लोगों का तर्क हो सकता है कि भारत में कम उत्पादकता का कारण यहां की छोटी जोत का आकार हो सकता है। हालांकि, यह पूरी तरह सच नहीं है। चीन इस 'सुपर उत्पादकता' को भारत के 1.15 हेक्टेयर की तुलना में आधे क्षेत्र से प्राप्त करता है।
• पिछले कुछ वर्षों के दौरान कृषि और इससे संबंधित क्षेत्रों की हिस्सेदारी में गिरावट आई है। यह प्रवृत्ति नीति निर्माताओं के लिए एक गंभीर चिंता का विषय है। क्योंकि 58 फीसदी ग्रामीण परिवार मुख्य रूप से आजीविका के लिए पूरी तरह से कृषि पर निर्भर हैं। इसका वर्ष 2011-12 के मूल्यों के आधार पर 2015-16 के दौरान सकल मूल्य संवर्धित (जीवीए) योगदान 15% रहा है।
• यह हकीकत है कि राष्ट्रीय उत्पादन में सेवा क्षेत्र का योगदान 52 फीसद है जो कृषि के क्षेत्र में कार्यरत मानव संसाधनों का आधा भी नहीं है। यह कृषि अर्थव्यवस्था में असंतुलन को प्रदर्शित करता है।
• कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था का सबसे बड़ा अनौपचारिक क्षेत्र है। इसलिए, सामाजिक सुरक्षा, वर्षा की कमी और नीतियों में परिवर्तनों के कारण इस क्षेत्र में परेशानी रही है। भारत में मांग में परिवर्तन और विदेश में उतार-चढ़ाव के कारण किसानों और खेतिहर मजदूरों को लगातार संकटों से जूझना पडा है।
• एक अनुमान के अनुसार, 2014 और 2015 के दौरान किसानों की आत्महत्या के मामले में 40 से अधिक प्रतिशत की बढ़ोत्तरी देखी गयी। 2014 में जहां 5,650 किसानों ने आत्महत्याएं की, वहीं 2015 में यह आंकड़ा बढ़कर 8,000 को पार कर गया।
• एक कृषि देश होने के बावजूद भारत बड़ी मात्रा में दालों और वनस्पति तेलों का आयात करता है। जो विदेशी मुद्रा भंडार के भारी नुकसान का कारण बनता है।
कृषि क्षेत्र को मजबूत करने के लिए हाल में किए गए उपाय -
केंद्रीय बजट 2015-16 में भारत को विकसित राष्ट्र में बदलने के लिए चिह्नित किए गए नौ स्तंभों में से कृषि औऱ किसान कल्याण को भी एक स्तंभ माना गाया। तदनुसार सरकार ने 2022 तक किसानों की आय दोगुना करने का लक्ष्य तय किया है और इसके लिए लिए कुछ कदम उठाने का फैसला किया है जो इस प्रकार हैं -
• 20000 करोड़ रुपये की प्रारंभिक राशि के साथ नाबार्ड में एक समर्पित दीर्घ अवधि के सिंचाई फंड का सृजन।
• पशुधन में सुधार के लिए 850 करोड़ रुपये के निवेश के साथ चार नई परियोजनाओं की शुरूआत की गयी है। नई परियोजनाएं इस प्रकार हैं- पशुधन संजीवनी, उन्नत प्रजनन प्रौद्योगिकी, ई-पशुधन हाट और नकुल स्वास्थ्य पात्र।
• थोक बाजार के लिए एक ईमार्केट प्रदान करने हेतु एक एक एकीकृत कृषि विपणन इ प्लेटफार्म की स्थापना की गयी।
• मनरेगा के तहत बारिश सिंचित क्षेत्रों में 5 लाख खेतीहर तालाब और गड्ढों तथा जैविक खाद के उत्पादन के लिए 10 लाख खाद के गड्ढों की खुदाई की गयी।
• 1 जून, 2016 से सभी कर संबंधी सेवाओं पर 0.5 प्रतिशत का कृषि कल्याण उपकर शुरू किया गया था। इससे मिलने वाली राशि को विशेष रूप से कृषि और किसानों के कल्याण के सुधार के लिए उपयोग किया जा रहा है।
• अघोषित आय पर कृषि कल्याण अधिभार (केकेएस) के रूप में 7.5 का सरचार्ज लगाया गया है। उपकर से प्राप्त होने वाली आय को कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के विकास के लिए खर्च किया जा रहा है।
अन्य उपायों का वर्णन इस प्रकार है -
• कृषि के प्रति अपने बदलते रूख में बदलाव करते हुए 2015 में सरकार ने कृषि मंत्रालय का नाम बदलकर कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय रख दिया था।
• 2015 में जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए परमप्रगट कृषि विकास योजना (PKVY) शुरू किया गया था।
• इस योजना के तहत किसानों को समूह या साझेदारी के रूप में और बड़े क्षेत्रों में जैविक खेती के तरीकों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
• जुलाई 2015 में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 50000 करोड़ रुपए के परिव्यय के साथ प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY) को अपनी मंजूरी दी।
• पीएमकेएसवाई एक साझा मंच के तहत मौजूदा सभी जल संरक्षण कार्यक्रमों को एक साथ लाना चाहती है ताकि समग्र दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए पूरे जल चक्र का एक व्यापक विकास हो सके।
• जनवरी 2016 में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने एक व्यापक कृषि बीमा योजना के रूप में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को अपनी मंजूरी दे दी।
• यह योजना संकटों का सामना कर रहे किसानों के लिए बड़ी राहत वाली है क्योंकि इसमें सभी वाणिज्यिक और बागवानी फसलों और यहां तक कि फसल कटाई के बाद हुए नुकसान को भी शामिल किया गया है।
• नदियों को आपस में जोड़ने के कार्यक्रम को सरकार ने एक नई गति प्रदान की है। हाल ही में, 9393 करोड़ रुपये की केन-बेतवा नदी की इंटरलिंकिंग परियोजना को पर्यावरण मूल्यांकन समिति (ईएसी) और जनजातीय मामलों के मंत्रालय से मंजूरी मिल चुकी है।
भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि की प्रासंगिकता
• जीवीए के प्रति इसके निम्न स्तरीय योगदान के बावजूद, अर्थव्यवस्था की समग्र वृद्धि मुख्य रूप से कृषि के पर विकास पर निर्भर है। फॉरवर्ड और बैकवर्ड लिंकेज के कारण इसके साथ अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्र भी जुड़े हैं। उदाहरण के लिए, हमने अक्सर देखा है कि जब भी मौसम विभाग किसी भी कारण से खराब मॉनसून की घोषणा करता है तो हमें इसका सीधा असर संवेदी सूचकांक (सेंसेक्स) पर देखने को मिल सकता है।
• अधिकतर आबादी जो कृषि पर निर्भर हैं वो गरीब और अनपढ़ हैं। उनके पास ना तो वैकल्पिक कौशल होता है और ना ही फसल खराब होने की स्थिति में पर्याप्त बचत होती है। इसलिए कृषि विकास एक लक्जरी नहीं है, लेकिन देश के लिए एक आवश्यकता है।
• खाद्यान्न उत्पादन की वर्तमान गति 2050 तक 1.5 अरब से अधिक की आबादी के पोषण आवश्यकताओं को भी पूरा करने में सक्षम नहीं है क्योंकि कृषि योग्य भूमि सीमित है। उत्पादकता और उत्पादन में सुधार के माध्यम से ही हम उत्पादन के वांछित स्तर को प्राप्त कर सकते हैं।
• किसानों के लिए आय सुरक्षा हासिल करना समय की जरूरत है। सरकार किसानों को उर्वरक, सिंचाई, उपकरण, क्रेडिट सब्सिडी, बीज सब्सिडी, निर्यात सब्सिडी आदि जैसी सुविधाओं के लिए विभिन्न प्रकार की मदद और सब्सिडी प्रदान करती है।
• हालांकि ये सब्सिडी उन किसानों के लिए होती है जो संकट से जूझ रहे होते हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव में उनका अपना हिस्सा होता है।
• एक अनुमान के अनुसार 2015 में अकेले सब्सिडी के रूप में 72000 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे। इसी कारण सरकार को बजट में अतिरक्त कर लगाने को मजबूर होना पड़ा। आगे भी इन समस्याओं के बढ़ने से आम आदमी को परेशानी होगी।
कृषि को पुनर्जीवित करने के लिए कौन से कदम उठाए जा सकते हैं?
• नीति आय़ोग की टी हक समीति द्वारा प्रस्तावित मॉडल कृषि भूमि पट्टा विधेयक को किरायेदारों के कार्यकाल की सुरक्षा पर बिना कोई समझौता करते हुए भू मालिकों के स्वामित्व वाले अधिकारों को सुरक्षित करने हेतु अधिनियमित किया जाना चाहिए।
• बजट 2017 में अरुण जेटली को कृषि उत्पादकता में सुधार लाने के उद्देश्य से कर मुक्त रूप में निवेश की घोषणा करनी चाहिए।
• इस उपाय से किसानों को पर्याप्त वित्तीय संसाधनों के साथ प्रोत्साहन मिलेगा और मशीनीकरण में निवेश से उच्च उपज किस्म के बीज आदि के लिए भी प्रोत्साहन मिलेगा।
• बेहतर सब्सिडी देने के क्रम में प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) योजना का विस्तार उर्वरक सब्सिडी कार्यक्रम के लिए भी किया जाना चाहिए।
• जैसा कि नीति विशेषज्ञों ने सुझाव दिया है कि कृषि को संविधान की सातवीं अनुसूची की समवर्ती सूची में राज्य सूची से स्थानांतरित किया जाना चाहिए। इस उपाय से उन राज्य सरकारों को बड़ी राहत मिलेगी जो वित्तीय संसाधनों के लिए केंद्र सरकार पर निर्भर रहते हैं।
• किसानों की आय सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कृषि संबंधित गतिविधियों पर पर्याप्त ध्यान दिया जाना चाहिए। अप्रैल, 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा टोरंटो में की गयी घोषणा के अनुसार, सर्वांगीण विकास को प्राप्त करने के लिए भारत को चार रंगों की 'क्रांति’ की चुनौती लेनी चाहिए - ग्रीन (कृषि), व्हाइट (डेयरी फार्मिंग), सैफरून (ऊर्जा) और ब्लू (समुद्री संसाधनों के दोहन)
• कृषि का मशीनीकरण अभी भी एक दूर का सपना है। इस लक्ष्य को साकार करने के लिए निर्माताओं और किसानों के लिए कर प्रोत्साहन जैसे उपायों के रूप में अन्य उपायों की शुरूआत करनी चाहिए।
• वैश्विक बाजार में मांग और आपूर्ति में उतार-चढ़ाव आने से भारतीय किसान अलग हो गए हैं। इसलिए सरकार को किसानों को आवधिक आधार पर शिक्षित करने तथा वैश्विक रुझानों व नीतियों के बारे में सूचित करने के लिए आवश्यक कदम उठाने चाहिए।
• संक्षिप्त में यदि समग्र भारत तेजी और अधिक समावेशी विकास हासिल करना चाहे तो इसका सुरक्षित रूप से यही निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि कृषि का पुनरुद्धार बहुत जरूरी है।
निष्कर्ष
खाद्य सुरक्षा हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा का एक अनिवार्य घटक है। अपने प्रारंभिक वर्षों में स्वतंत्र भारत सही मायनों में खाद्य संपन्न देश रहा। भारत यूएस पब्लिक लॉ 480 के तहत गेहूं के आयाता के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका पर निर्भर था। उदासीनता के उस दौर से भारत ने हरित क्रांति के तहत उपायों को लागू करते हुए स्वयं को एक शुद्ध खाद्य निर्यातक देश के रूप में बदल दिया।
हालांकि, हमें अपने अतीत की उपलब्धियों के साथ नहीं जाना चाहिए। अभी तक वृद्धिशील परिवर्तन मात्रा (क्वेंटिटी) पर ध्यान केंद्रित होता था। लेकिन आज से ही सरकार को कृषक समुदाय को एक गुणी चक्र बनाने के लिए गुणात्मक परिवर्तनों पर ध्यान देना चाहिए। हमें उम्मीद है कि आगामी बजट 2017 में कृषि क्षेत्र की समस्याओं का समाधान उम्मीद के मुताबिक होगा।
अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों की तुलना में कृषि सब्सिडी, करों, उपकर और प्रचार योजनाओं के संबंध में बजटीय घोषणाओं में बदलाव करना सबसे ज्यादा संवेदनशील है। इस पृष्ठभूमि में हमने भारतीय कृषि क्षेत्र के सामने पेश हो रही चुनौतियों और उनके संभावित समाधान का एक विश्लेषण किया है । आशा है कि 2017 के बजट में इनका समाधान प्राप्त होगा।
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