जहाजरानी मंत्रालय द्वारा सागरमाला के बंदरगाह संपर्क बढ़ाने के लक्ष्य के तहत चिन्हित किए गए बंदरगाह-रेल संपर्क परियोजनाओं पर काम करने के मसौदे को केंद्र सरकार ने 01 जुलाई 2016 को स्वीकृति दे दी.
- रेल मंत्रालय 20,000 करोड़ रुपये की लागत वाली 21 बंदरगाह-रेल संपर्क परियोजनाओं पर काम करेगा
- इन परियोजनाओं का उद्देश्य रेल निकासी नेटवर्क को मजबूत बनाना और बंदरगाहों को अंतिम छोर तक संपर्क उपलब्ध कराना है.
- इसके अलावा भारतीय बंदरगाह रेल निगम लिमिटेड (आईपीआरसीएल) द्वारा छह अन्य परियोजनाओं पर विचार किया जा रहा है.
- आईपीआरसीएल को पहले विशाखापट्टनम और चेन्नई बंदरगाहों के लिए पहले से 3 बंदरगाह संपर्क परियोजनाओं का आवंटन किया जा चुका है, जो कार्गो की त्वरित निकासी के लिए हैं.
- सागरमाला कार्यक्रम के अंतर्गत राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना, अप्रैल 2016 के तहत कई बंदरगाह-रेल संपर्क परियोजनाओं की पहचान की गई.
- जिसमें आईबी घाटी/तलचर से पारादीप तक हेवी हॉल रेल लाइन शामिल है.
- इस परियोजना से महानदी कोलफील्ड्स लिमिटेड (एमसीएल) से उत्तर भारत के कई तटीय विद्युत संयंत्रों तक तटीय नौवहन के माध्यम से तापीय कोयले की ढुलाई में मदद मिलेगी.
- तूतीकोरिन जैसे बड़े बंदरगाह और धमारा, गोपालपुर, कृष्णापट्टनम जैसे गैर बड़े बंदरगाहों के लिए अन्य रेल संपर्क परियोजनाओं का भी प्रस्ताव है.
सागरमाला कार्यक्रम के बारे में-
- सागरमाला कार्यक्रम का उद्देश्य भारत में बंदरगाह आधारित विकास को बढ़ावा देना है.
- इसका उद्देश्य भारत के तटीय बंदरगाहों की क्षमता बढ़ाना और आधुनिकीकरण, दूरदराज के क्षेत्रों को बंदरगाह संपर्क में सुधार, व्यापार को बढ़ावा देने के लिए बंदरगाह आधारित औद्योगीकरण को सुगम बनाना और तटीय समुदायों का टिकाऊ विकास है.
सागरमाला कार्यक्रम के लक्ष्य-
सागरमाला कार्यक्रम के लिए राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना, जिसे प्रधानमंत्री ने अप्रैल में जारी किया था, के अंतर्गत कार्यक्रम के 4 बड़े उद्देश्यों से संबंधित परियोजनाओं की पहचान की गई है-
1) बंदरगाह आधुनिकीकरण और नए बंदरगाहों का विकास,
2) बंदरगाह संपर्क बढ़ाना,
3) बंदरगाह आधारित औद्योगीकरण
4) तटीय समुदाय विकास
इसके अंतर्गत 150 परियोजनाओं की पहचान की गई है, जिनमें 4 लाख करोड़ रुपये का निवेश होगा और 10 साल में लगभग 1 करोड़ नए रोजगार पैदा होंगे.
जिसमें 40 लाख प्रत्यक्ष रोजगार शामिल हैं.
इन परियोजनाओं से सालाना लगभग 35,000 करोड़ रुपये की लॉजिस्टिक लागत में बचत होने का अनुमान है और इससे 2025 तक भारत से वाणिज्यिक वस्तुओं के निर्यात को बढ़ाकर 110 अरब डॉलर तक पहुंचाने में मदद मिलेगी.
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