हिंदी प्रोफेसरों के एक समूह ने 20 जनवरी 2017 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अनुरोध किया कि वे हिंदी की उपभाषाओं जैसे भोजपुरी एवं राजस्थानी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल न करें.
हिंदी की उपभाषाओं के खिलाफ फैसला क्यों?
• भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में भारत में सर्वाधिक प्रचलित भाषाओं की स्वतंत्र पहचान तथा बड़ी संख्या में उनके वक्ता मौजूद हैं.
• वक्ताओं का मानना है कि अलग भाषा के रूप में पहचान मिलने पर इन बोलियों के लाखों वक्ता हिंदी से वंचित हो जायेंगे.
• विद्वानों का यह भी कहना है कि इस प्रकार हिंदी को छोड़ उसकी उपभाषाओं को अलग भाषा के रूप में मान्यता प्राप्त हो जाएगी.
संविधान की आठवीं अनुसूची
• संविधान की आठवीं अनुसूची में उन 22 अनुसूचित भाषाओँ को शामिल किया गया है जिन्हें अधिकारिक रूप से भाषा के रूप में मान्यता प्रदान की गयी.
• इन भाषाओँ में असमी, बंगाली, गुजराती, हिन्दी, कन्नड़, पंजाबी, संस्कृत, तमिल, तेलुगु, कश्मीरी, मलयालम, मराठी, ओड़िया, उर्दू, सिंधी, कोंकणी, मणिपुरी, नेपाली, बोडो, डोगरी, मैथिली और संथाल शामिल हैं.
• आरंभ में इस सूची में केवल 14 भाषाएं शामिल की गयी थीं लेकिन बाद में संशोधन के बाद 8 भाषाएं और शामिल कर दी गयीं.
• 21वें संशोधन के बाद, 1967 में सिंधी को, 71वें संशोधन के बाद 1992 में नेपाली को तथा 92वें संविधान संशोधन के बाद संथाली को 2003 में शामिल किया गया.
• बोडो, डोगरी और मैथली को 2004 में भाषा के रूप में जोड़ा गया.
पृष्ठभूमि
यह घटनाक्रम केन्द्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल द्वारा राजस्थानी को आठवीं अनुसूची में शामिल किये जाने की घोषणा के बाद हुआ. दिसंबर 2016 में बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने भोजपुरी को 8वीं अनुसूची में शामिल किये जाने का आग्रह किया था. भारत के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों के लगभग 1300 हिंदी साहित्यकारों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तथा गृह मंत्री राजनाथ सिंह को पत्र लिखकर इन भाषाओं को आठवीं अनुसूची में शामिल न करने का आग्रह किया.

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