भारत को 07 मई 2019 को फिर से अंतर-सरकारी मंच आर्कटिक परिषद का पर्यवेक्षक चुना गया है. पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सचिव एम राजीवन ने ट्वीट करके बताया की फिनलैंड के रोवानिएमी में 11वीं आर्कटिक परिषद की मंत्रिस्तरीय बैठक में भारत को फिर से आर्कटिक परिषद का पर्यवेक्षक चुना गया है.
आर्कटिक परिषद विशेष रूप से सतत विकास और पर्यावरण संरक्षण जैसे मुद्दों को लेकर आर्कटिक देशों, क्षेत्र के स्वदेशी समुदायों और अन्य निवासियों के बीच सहयोग, समन्वय और बातचीत को बढ़ावा देती है.
आर्कटिक परिषद के बारे में:
• आर्कटिक परिषद एक उच्च-स्तरीय अंतर-सरकारी फोरम है जो आर्कटिक सरकारों और आर्कटिक के स्वदेशी लोगों द्वारा सामना किए जाने वाले मुद्दों को संबोधित करता हैं.
• आर्कटिक परिषद आर्कटिक देशों, आर्कटिक के स्थानीय समुदायों तथा अन्य आर्कटिक वासियों के साथ साझा आर्कटिक मुद्दों पर सहयोग एवं समन्वय को बढ़ावा देता है.
• आर्कटिक परिषद की स्थापना साल 1996 में ओटावा घोषणापत्र के द्वारा हुयी है. ओटावा घोषणापत्र के अनुसार आठ देशों को आर्कटिक परिषद का सदस्य माना गया है. सदस्यों के अतिरिक्त इस परिषद के कुछ पर्यवेक्षक देश भी हैं. भारत को भी परिषद में पर्यवेक्षक का दर्जा प्राप्त है. भारत साल 2013 से इस परिषद में पर्यवेक्षक के तौर भाग लेता है.
आर्टिकल अच्छा लगा? तो वीडियो भी जरुर देखें!
आर्कटिक परिषद के सदस्य देश:
भारत आर्कटिक परिषद में और अधिक योगदान करने के लिए प्रतिबद्ध है. कनाडा, डेनमार्क, फिनलैंड, आइसलैंड, नॉर्वे, रूस, स्वीडन और अमेरिका, आर्कटिक परिषद के सदस्य हैं. भारतीय शोधकर्ताओं ने यह अध्ययन किया है कि क्या भारतीय मानसून और आर्कटिक क्षेत्र के बीच कोई सह-संबंध है.
यह भी पढ़ें: सुप्रीम कोर्ट ने वीवीपैट मामले में खारिज की याचिका
Download our Current Affairs & GK app from Play Store/For Latest Current Affairs & GK, Click here
Comments
All Comments (0)
Join the conversation