भारतीय सेना के पास होगा खुद का सैटेलाइट, इसरो के साथ ₹3,000 करोड़ की डील

भारतीय सेना की संचार क्षमता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से, रक्षा मंत्रालय ने एक बड़ा और ऐतिहासिक फैसला लिया है, मंत्रालय ने सेना के लिए एक उन्नत संचार उपग्रह सुविधा प्रदान करने के लिए इसरो के साथ एक डील की है.

Mar 30, 2023, 11:45 IST
भारतीय सेना के पास होगा खुद का सैटेलाइट
भारतीय सेना के पास होगा खुद का सैटेलाइट

भारतीय सेना की संचार क्षमता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से, रक्षा मंत्रालय ने एक बड़ा और ऐतिहासिक फैसला लिया है, मंत्रालय ने सेना के लिए एक उन्नत संचार उपग्रह सुविधा प्रदान करने के लिए इसरो के साथ एक डील की है.

रक्षा मंत्रालय ने इस उन्नत सुविधा के लिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) की वाणिज्यिक शाखा न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) के साथ ₹3,000 करोड़ के अनुबंध पर हस्ताक्षर किए है.

भारत की रक्षा अधिग्रहण परिषद (DAC) ने अपनी परिचालन क्षमताओं को तेज करने के लिए मार्च 2022 में GSAT-7B उपग्रह के लिए सेना के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी थी.

इसरो करेगा सैटेलाइट का विकास:

भारतीय सेना के लिए इस उन्नत सैटेलाइट का विकास इसरो द्वारा किया जायेगा, भारतीय वायु सेना और नौसेना की बात करें तो दोनों सेनाओं के पास खुद के सैटेलाइट्स की सुविधा है. 

अब यह सुविधा भारतीय सेना को भी मिलने जा रहा है. रक्षा मंत्रालय के अनुसार, 5 टन कैटेगरी में यह जियोस्टेशनरी सैटेलाइट अपनी तरह का पहला सैटेलाइट है.

इसकी मदद से सैनिकों और स्ट्रक्चर के साथ-साथ हथियार और हवाई प्लेटफार्मों के लिए लाइन-ऑफ़-विज़न संचार से ऊपर कंट्रोल प्रदान करने के लिए इस संचार सुविधा का विकास किया जा रहा है.

जियोस्टेशनरी सैटेलाइट, हाइलाइट्स:

यह जियोस्टेशनरी सैटेलाइट उन्नत सुरक्षा सुविधाओं से लैस है जो जमीन पर तैनात सैनिकों की सामरिक संचार आवश्यकताओं को पूरा करेगा. साथ ही यह दूर से संचालित विमान, वायु रक्षा हथियार और अन्य महत्वपूर्ण मिशन प्लेटफार्मों को मजबूत करने में मदद करेगा. 

भारतीय सेना को यह सैटेलाइट सुविधा वर्ष 2026 तक मिलने की संभावना है. यह सैटेलाइट सिस्टम सेना की नेटवर्क केंद्रित युद्ध क्षमताओं को मजबूत करेगा.       

वायु शक्ति अध्ययन केंद्र के महानिदेशक, एयर मार्शल अनिल चोपड़ा (retd) ने बताया कि अभी तक सेना, वायु सेना के GSAT-7A उपग्रह पर निर्भर थी.   
भारतीय सेना ने, रूस-यूक्रेन युद्ध में साइबर और इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वॉर का विस्तृत अध्ययन किया है जिससे ज्ञात हुआ कि विश्वसनीय उपग्रह संचार प्रणाली स्थापित करने की आवश्यकता है. साथ ही इसकी मदद से दूरस्थ क्षेत्रों में उच्च गति की इंटरनेट सेवाएं भी प्रदान की जा सकेंगी.

स्वदेशी रूप से होगा सैटेलाइट का विकास:

रक्षा मंत्रालय ने बताया कि सैटेलाइट के विकास के लिए जरुरी उपकरण को स्वदेशी रूप निर्माण किया जायेगा. इसके लिए सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSMEs) और स्टार्ट-अप की मदद ली  जाएगी.  

वायु रक्षा विकास के लिए भी हुई डील:

मंत्रालय ने सशस्त्र बलों की वायु रक्षा क्षमताओं को मजबूत करने के लिए भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL) के साथ लगभग 2,400 करोड़ रुपये के दो अन्य अनुबंधों पर भी हस्ताक्षर किए. इस प्रोजेक्ट में ₹1,982 करोड़ की आकाशतीर परियोजना शामिल है जो स्वचालित वायु रक्षा नियंत्रण और रिपोर्टिंग प्रणाली को मजबूत करेगा.

बीईएल के साथ ₹412 करोड़ का दूसरा अनुबंध भारतीय नौसेना के हेलीकॉप्टरों के लिए सारंग इलेक्ट्रॉनिक सपोर्ट सिस्टम को मजबूत करने की लिए किया गया है.

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