केंद्र सरकार ने 21 फरवरी 2019 को सिंधु जल समझौते के बावजूद अब तक पाक को दिए जा रहे ब्यास, रावी और सतलुज नदी के पानी को रोकने का फैसला किया है. केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा है कि इन तीनों नदियों पर बने प्रॉजेक्ट्स की मदद से पाकिस्तान को दिए जा रहे पानी को अब पंजाब और जम्मू-कश्मीर की नदियों में प्रवाहित किया जाएगा.
केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा है कि रावी, ब्यास और सतलुज नदी का भारत के हिस्से का पानी पाकिस्तान ना जाए इसलिए कैबिनेट ने तीन बांध बनाने की मंज़ूरी दी है. यह फैसला जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में हुए विनाशकारी आतंकी हमले की प्रतिक्रिया के रूप में आया, जिसमें 44 से अधिक भारतीय जवान शहीद हो गए.
सिंधु बेसिन प्रणाली:
सिधुं प्रणाली में मुख्यत सिधुं, झेलम, चेनाब,रावी, ब्यास और सतलुज नदियां शामिल हैं. इन नदियों के बहाव वाले क्षेत्र (बेसिन) को मुख्यत भारत और पाकिस्तान साझा करते हैं. इसका एक बहुत छोटा हिस्सा चीन और अफगानिस्तान को भी मिला हुआ है. भारत और पाकिस्तान के बीच 1960 में हुई सिंधु नदी जल संधि के तहत सिंधु नदी की सहायक नदियों को पूर्वी और पश्चिमी नदियों में विभाजित किया गया.
सतलज, ब्यास और रावी नदियों को पूर्वी नदी बताया गया जबकि झेलम, चेनाब और सिंधु को पश्चिमी नदी बताया गया. रावी, सतलुज और ब्यास जैसी पूर्वी नदियों का औसत 33 मिलियन (एमएएफ) पूरी तरह इस्तेमाल के लिए भारत को दे दिया गया. इसके साथ ही पश्चिम नदियों सिंधु, झेलम और चेनाव नदियों का करीब 135 एमएएफ पाकिस्तान को दिया गया.
सिंधु जल संधि के बारे में: सिंधु जल संधि, सिंधु एवं इसके सहायक नदियों के जल के अधिकतम उपयोग के लिए भारत सरकार और पाकिस्तान सरकार के बीच की गई संधि है. भारत और पाकिस्तान के बीच वर्ष 1960 में सिंधु जल संधि हुई थी. विश्व बैंक की मध्यस्थता के बाद देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने इस पर हस्ताक्षर किए थे. संधि के तहत 6 नदियों के पानी का बंटवारा तय हुआ, जो भारत से पाकिस्तान जाती हैं. इस समझौते के प्रावधानों के अनुसार दोनों पक्षों को प्रत्येक तीन महीने में नदी के प्रवाह से संबंधित जानकारी और हर साल कृषि उपयोग से संबंधित जानकारी का आदान प्रदान करना आवश्यक हैं.इस संधि के तहत भारत और पाकिस्तान दोनों देशों ने सिंधु जल आयुक्त के रूप में एक स्थायी पद का गठन किया है। इसके अलावा दोनों देशों ने एक स्थायी सिंधु आयोग (पीआईसी) का गठन किया है जो संधि के कार्यान्वयन के लिए नीतियां बनाता हैं. |
सिंधु जल संधि के तहत चल रही परियोजनाएँ:
जल संधि के तहत जिन पूर्वी नदियों के पानी के इस्तेमाल का अधिकार भारत को मिला था उसका उपयोग करते हुए भारत ने सतलुज पर भांखड़ा बांध, ब्यास नदी पर पोंग और पंदु बांध और रावी नदी पर रंजित सागर बांध का निर्माण किया.
इसके अलावा भारत ने इन नदियों के पानी के बेहतर इस्तेमाल के लिए ब्यास-सतलुज लिंक, इंदिरा गांधी नहर और माधोपुर-ब्यास लिंक जैसी अन्य परियोजनाएं भी बनाई. इससे भारत को पूर्वी नदियों का करीब 95 प्रतिशत पानी का इस्तेमाल करने में मदद मिली. हालांकि इसके बावजूद रावी नदी का करीब 2 एमएएफ पानी हर साल बिना इस्तेमाल के पाकिस्तान की ओर चला जाता है.
इस पानी के प्रवाह को रोकने के लिए निम्नलिखित कदम उठाएं गए हैः
शाहपुरखांडी परियोजना का निर्माण कार्य फिर से शुरू करनाः
• इस परियोजना से थेन बांध के पावर हाउस से निकलने वाले पानी का इस्तेमाल जम्मू कश्मीर और पंजाब में 37000 हेक्टर भूमि की सिंचाई तथा 206 मेगावाट बिजली के उत्पादन के लिए किया जा सकेगा.
• यह परियोजना सितंबर 2016 में ही पूरी हो जानी थी लेकिन जम्मू कश्मीर और पंजाब के बीच विवाद हो जाने के कारण 30 अगस्त 2014 से ही इसका काम रूका पड़ा है. दोनों राज्यों के बीच आखिरकार इसे लेकर 8 सितंबर 2018 को समझौता हो गया.
• परियोजना के निर्माण पर कुल 2715.7 करोड़ रुपये की लागत आएगी. भारत सरकार ने 19 दिसंबर 2018 को जारी आदेश के तहत परियोजना के लिए 485.38 करोड़ रुपये की केंद्रीय मदद मंजूर की है.
• यह राशि परियोजना के सिंचाई वाले हिस्से के लिए होगी. केंद्र सरकार की देखरेख में पंजाब सरकार ने परियोजना का काम फिर से शुरू कर दिया है.
उझ बहुउद्देश्यीय परियोजना:
• 5850 करोड़ रुपये की लागत वाली इस परियोजना से उझ नदी पर 781 मिलियन सीयू एम जल का भंडारण किया जा सकेगा जिसका इस्तेमाल सिंचाई और बिजली बनाने में होगा.
• इस पानी से जम्मू कश्मीर के कठुआ, हिरानगर और सांभा जिलें में 31 हजार 380 हेक्टर भूमि की सिंचाई की जा सकेगी और उन्हें पीने के पानी की आपूर्ति हो सकेगी.
• परियोजना के डीपीआर को तकनीकी मंजूरी जुलाई 2017 में ही दी जा जुकी है. यह एक राष्ट्रीय परियोजना है जिसे केंद्र की ओर से 4892.47 करोड़ रुपये की मदद दी जा रही है.
• ये मदद परियोजना के सिंचाई से जुड़े हिस्से के लिए होगी. इसके अलावा परियोजना के लिए विशेष मदद पर भी विचार किया जा रहा है.
उझ के नीचे दूसरी रावी ब्यास लिंक परियोजना:
• इस परियोजना का उद्देश्य थेन बांध के निर्माण के बावजूद रावी से पाकिस्तान की ओर जाने वाले अतिरिक्त पानी को रोकना है.
• इसके लिए रावी नदी पर एक बराज बनाया जाएगा और ब्यास बेसिन से जुड़े एक टनल के जरिए नदी के पानी के बहाव को दूसरी ओर मोड़ा जाएगा.
उपरोक्त तीनों परियोजनाएं भारत को सिंधु जल संधि, 1960 के तहत मिले पानी के हिस्से का पूरा इस्तेमाल कर सकेगा.
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