केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने हाल ही में कहा कि 01 जनवरी 2020 से रूपे कार्ड और यूपीआई के जरिए लेन-देन पर मर्चेंट डिस्काउंट रेट (एमडीआर) शुल्क नहीं लगेगा. केंद्र सरकार ने डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देने के उद्देश्य से यह शुल्क माफ किया है. इसकी घोषणा बजट 2019 में की गई थी.
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक प्रमुखों के साथ समीक्षा बैठक के बाद कहा कि राजस्व विभाग शीघ्र ही रुपे और यूपीआई को डिजिटल लेन-देन के अंतर्गत बिना एमडीआर शुल्क वाले माध्यम के तौर पर अधिसूचित करेगा. निर्मला सीतारमण बजट पूर्व बैंक प्रमुखों के साथ 28 दिसंबर 2019 को बैठक हुई थी. यह फैसला इसी बैठक में लिया गया.
एमडीआर क्या है?
कोई व्यक्ति जब किसी दुकान पर अपना कार्ड स्वैप करता है तो जो शुल्क दुकानदार को अपने सर्विस प्रोवाइडर को देना होता है, उसे ही एमडीआर शुल्क कहते हैं. एमडीआर शुल्क लेनदेन राशि का शून्य प्रतिशत से 2 प्रतिशत तक हो सकता है .यह शुल्क ऑनलाइन लेनदेन और क्यूआर आधारित ट्रांजैक्शन पर लागू होता है.
प्रत्येक लेनदेन पर दुकानदार द्वारा जिस राशि का भुगतान किया जाता है, वे तीन भागों में बंट जाता है. इस राशि का पहला हिस्सा बैंक, दूसरा हिस्सा पॉइंट-ऑफ-सेल्स (पीओएस) मशीन लगाने वाले वेंडर और तीसरा हिस्सा वीजा एवं मास्टरकार्ड जैसी कंपनियों को जाता है. वित्त मंत्री की इस घोषणा के बाद भी क्रेडिट कार्ड पर एमडीआर शुल्क शून्य से लेकर लेन-देन की राशि का 2 प्रतिशत तक हो सकता है.
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फायदा
केंद्र सरकार के इस कदम से स्वदेश में विकसित डिजिटल भुगतान माध्यमों रुपे तथा यूपीआई को विदेशी कंपनियों के भुगतान गेटवे पर बढ़त मिलेगी. यह डिजिटल भुगतानों की लेनदेन लागत को भी कम करेगा और साथ ही यह भारत में डिजिटल भुगतान के उपयोग को बढ़ाएगा.
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने जुलाई 2019 में पेश अपने पहले बजट भाषण में देश में डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देने हेतु एमडीआर शुल्क हटाने का प्रस्ताव किया था. वित्त मंत्री का यह हालिया कदम भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने में प्रमुख भूमिका निभा सकता है.
ई-नीलामी मंच
इस मौके पर वित्त मंत्री ने ऋण की किस्तें चुकाने में चूक करने वालों की जब्त संपत्ति की नीलामी हेतु एक साझा ई-नीलामी मंच की भी शुरुआत की. सरकार द्वारा उपलब्ध ताजा आंकड़ों के मुताबिक इस मंच पर कुल मिलाकर लगभग 35,000 संपत्तियों का ब्योरा डाला जा चुका है. सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने पिछले तीन वित्तीय वर्ष में कुल मिलाकर लगभग 2.3 लाख करोड़ रुपए की संपत्तियां कुर्क की हैं.
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