राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने डूबे कर्ज की समस्या से निपटने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक को अधिक अधिकार देने से संबंधित बैंकिंग अध्यादेश को मंजूरी दे दी है.
इसके साथ ही बैंकिंग रेगुलेशन कानून में बदलाव को भी मंजूरी मिल गई है. माना जा रहा है कि सरकार नए गैर निष्पादित आस्तिया (एनपीए) अध्यादेश का ब्योरा जारी करेगी.
बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट के सेक्शन 35ए में दो नए प्रावधान जोड़े गए हैं. एक प्रावधान के तहत आर.बी.आई. को ये अधिकार दिया गया है कि वो बैंकों के डिफॉल्टर के खिलाफ इन्सॉल्वेन्सी एंड बैंकरप्सी कोड के तहत कार्रवाई करे.
दूसरे प्रावधान के तहत आर.बी.आई. को अधिकार दिया गया है कि वो तय समय सीमा में एनपीए से निपटने के लिए बैंकों को जरूरी निर्देश जारी कर सके.
हालांकि, आरबीआइ ने हाल के वर्षों में फंसे हुए ऋणों से निपटने के लिए कॉरपोरेट ऋण पुनर्गठन व्यवस्था (सीडीआर), ज्वाइंट लेंडर्स फोरम के गठन, फंसे ऋणों की वास्तविक तसवीर पेश करने के लिए बैंकों पर दबाव बनाने और डिफॉल्टरों पर नियंत्रण के लिए स्ट्रेटजिक डेट रीस्ट्रक्चरिंग (एसडीआर) स्कीम जैसे ठोस कदम उठाये हैं, लेकिन इनके अपेक्षा के अनुरूप परिणाम नहीं आ सके हैं.
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 3 मई 2017 को गैर निष्पादित आस्तिया (एनपीए) की समस्या से निपटने के लिए बैंकिंग नियमन कानून में संशोधन के लिए अध्यादेश जारी करने को मंजूरी दी थी. एनपीए की समस्या बैंकिंग क्षेत्र के लिए बड़ा संकट बनी हुई है.
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