भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने यह घोषणा की है कि, संबद्ध राज्य सरकार की सहमति उसके अधिकार क्षेत्र में सीबीआई जांच के लिए अनिवार्य है क्योंकि यह संघवाद के सिद्धांत के अनुरूप है. सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि, केंद्र सरकार को किसी राज्य की सहमति के बिना उस राज्य में एजेंसी (सीबीआई) के अधिकार क्षेत्र का विस्तार करने की अनुमति नहीं दी जाएगी.
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा लिया गया यह फैसला आठ गैर-भाजपा राज्यों - केरल, झारखंड, बंगाल, महाराष्ट्र, मिजोरम, छत्तीसगढ़, राजस्थान और पंजाब के संदर्भ में आया है, जिन्होंने राज्य के क्षेत्राधिकार में नए मामलों की जांच के लिए सीबीआई को प्रदत्त अपनी सामान्य सहमति वापस ले ली है.
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा फैसला
जस्टिस बीआर गवई और एएम खानविल्कर की पीठ ने सीबीआई के कामकाज को नियंत्रित करने वाले डीएसपीई (दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान) अधिनियम की धारा 5 और 6 का उल्लेख करते हुए यह कहा है कि, यह देखा जा सकता है कि, भले ही धारा 5 और 6 में केंद्र सरकार को संघ शासित प्रदेशों के अलावा भी, किसी राज्य में डीएसपीई सदस्यों की शक्तियों और अधिकार क्षेत्र का विस्तार करने की अनुमति हो, लेकिन जब तक संबंधित राज्य डीएसपीई अधिनियम की धारा 6 के तहत अपने राज्य क्षेत्र के भीतर इस तरह के विस्तार के लिए अपनी सहमति नहीं देता है, तब तक केंद्र सरकार को यह अनुमति नहीं दी जा सकती.
सर्वोच्च न्यायालय में दायर हुई अपील
सर्वोच्च न्यायालय की बेंच ने कुछ आरोपियों द्वारा दायर अपील के कारण यह फैसला सुनाया है, जिन्होंने सीबीआई द्वारा उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के एक मामले में जांच की वैधता को इस आधार पर चुनौती दी थी कि, संबद्ध राज्य सरकार द्वारा पूर्व सहमति नहीं ली गई थी. तथाकथित मामले के दो आरोपी राज्य सरकार के कर्मचारी हैं और बाकी निजी कर्मचारी हैं.
उनकी अपील को खारिज करते हुए, शीर्ष अदालत ने यह कहा कि, यूपी राज्य ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत पूरे राज्य में वर्ष 1989 में डीएसपीई सदस्यों की शक्ति और अधिकारिता के विस्तार के लिए एक सामान्य सहमति प्रदान की थी.
अदालत ने यह भी कहा कि, हालांकि उक्त के साथ एक शर्त (राइडर) भी है, क्योंकि राज्य सरकार की पूर्व अनुमति के अलावा, राज्य सरकार के नियंत्रण में, लोक सेवकों से संबंधित मामलों में ऐसी कोई जांच नहीं की जाएगी.
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