यूनिसेफ और यूरोपीय संघ ने संकट क्षेत्र में शिक्षा पर आपातकालीन सबक अभियान शुरु किया

May 20, 2016, 14:03 IST

यह अभियान सोशल मीडिया पर आधारित जन जागरुकता अभियान है. इसका उद्देश्य 20 मिलियन यूरोपीय नागरिकों तक पहुंचना और आपातकाल की वजह से प्रभावित होने वाले बच्चों के लिए शिक्षा के महत्व पर प्रकाश डालना है.

संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) और यूरोपीय संघ (ईयू) ने 16 मई 2016 को संकट क्षेत्र में शिक्षा पर आपातकालीन सबक अभियान (Emergency Lessons campaign) शुरु करने की घोषणा की.

यह अभियान सोशल मीडिया पर आधारित जन जागरुकता अभियान है. इसका उद्देश्य 20 मिलियन यूरोपीय नागरिकों तक पहुंचना और आपातकाल की वजह से प्रभावित होने वाले बच्चों के लिए शिक्षा के महत्व पर प्रकाश डालना है.

आपातकालीन सबक अभियान (Emergency Lessons campaign) की विशेषताएं

• अभियान मुख्य रूप से 25 वर्षीय लोगों और युवाओं को लक्षित करता है. आगामी सात महीनों तक आपातकाल द्वारा प्रभावित बच्चों की कहानियों को सोशल मीडिया पर साझा किया जाएगा.

• यह ग्रीस, हंगरी, आयरलैंड, इटली, स्लोवेनिया, स्लोवाकिया और यूनाइटेड किंग्डम जैसे देशों को कवर करेगा.

• इसका उद्देश्य इन देशों के लोगों को उन लाखों बच्चों और युवाओं, जिनकी शिक्षा आपातकाल की वजह से बाधित हुईं हैं, की तरफ से अपनी आवाज बुलंद करने के लिए प्रेरित करना है.

• यह गिनी, इराक, नेपाल और यूक्रेन जैसे देसों में आपातकाल में जीवन बसर कर रहे बच्चों के वास्तविक जीवन के अनुभवों पर आधारित है.

• यह अभियान स्कूल जाने के अन्य लाभों जैसे बनाए गए दोस्त, नुकसान होने पर छात्रों के साथ खड़े रहने वाले शिक्षकों और कक्षाओं में शामिल होने की दिनचर्या में स्थिरता का उत्सव मनाता है.

कई मशहूर हस्तियां इस अभियान को समर्थन दे रही हैं. इनमें समांथा क्रिटोफोरेटी, इतावली यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी की अंतरिक्ष यात्री, बोत्सजन नचबर, स्लोवानिया के बास्केटबॉल खिलाडी, किस्ज्टा डी. टोथ, हंगरी के समाचार प्रस्तोता और मीडिया कर्मी औऱ जारो बर्क, स्लोवाकिया की नर्तकी आदि शामिल हैं .

टिप्पणी

दुनिया के स्कूल जाने की उम्र वाले बच्चों में करीब चार में से एक 462 मिलियन संकट प्रभावित 35 देशों में रह रहे हैं. अनुमान के अनुसार 75 मिलियन बच्चे ऐसे हैं जिन्हें शैक्षणिक सहायता की बहुत जरूरत है.

एजेंसी का कहना है कि शिक्षा के क्षेत्र में पीछे रहने के अलावा इससे होने वाले लाभ और उनके समाज के लिए, स्कूल नहीं जाने वाले बच्चों के दुरुपयोग, शोषण और सैन्य बलों में भर्ती किए जाने की संभावना अधिक होती है.

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