14 अप्रैल 2016 को केंद्र सरकार ने अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के अत्याचार निवारण संशोधन नियम 2016 को अधिसूचित कर दिया.संशोधन अनुसूचित जाति और जनजाति अत्याचार निवारण संशोधन नियम 1995 के मूल नियमों में किए गए हैं.
अनुसूचित जाति,जनजाति अत्याचार निवारण संशोधन अधिनियम 2016 की मुख्य विशेषताएं
• नए अपराध जैसे सिर, मूंछों को मूंडना या इसी प्रकार के अन्य कामों जो अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों की गरिमा के लिए अपमानजनक हैं, चप्पलों की माला पहनाना, सिंचाई सुविधा या वन अधिकारों से वंचित करना, मानव या पशु के शरीर को नष्ट करना या एक जगह से दूसरी जगह ले जाना या कब्र खोदना, मैला ढोने का उपयोग या अनुमति देना, अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति की महिलाओं को देवदासी कह कर बुलाना, जाति के नाम से गाली देना, जादू– टोना संबंधी अत्याचार करना, सामाजिक या आर्थिक बहिष्कार लगाना, चुनावों में अनुसूचित जातियों/ अनुसूचित जनजातियों के उम्मीदवारों को नामांकन भरने से रोकना, अनुसूचित जातियों/ अनुसूचित जनजातियों की महिलाओं को निर्वस्त्र कर कष्ट पहुंचाना, अनुसूचित जातियों/ अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों को घर, गांव या आवास छोड़ने पर मजबूर करना, अनुसूचित जातियों/ अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों द्वारा छूए जाने पर पवित्र वस्तुओं को अशुद्ध मानना, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों के यौन प्रकृति पर व्यंग्यात्मक शब्दों, कार्यों या इशारों का प्रयोग करना.
• अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति के सदस्यों को चोट, गंभीर चोर, धमकी, अपहरण आदि जैसे कुछ आईपीसी अपराधों के लिए दस वर्षों से कम की जेल की सजा मिल सकती है. य़ह पीओए अधिनियम के तहत दंडनीय अपराध है.
• कार्यकारी विशेष अदालतों का गठन और अन्य विशेष लोक अभियोजकों की नियुक्ति करना ताकि पीओए अधिनियम के तहत किए जाने वाले अपराधों के मामलों का तेजी से निपटान हो सके.
• अपराध का प्रत्यक्ष संज्ञान लेने के लिए विशेष अदालतों और अन्य विशेष अदालतों की शक्ति और जहां तक संभव हो आरोप पत्र दाखिल करने की तारीख से दो महीने के भीतक मामले की सुनवाई पूरी कर लेना.
• पीड़ितों और गवाहों के अधिकारों पर चैप्टर को जोड़ना.
• सभी स्तरों पर जन सेवकों के जानबूझकर की जाने वाली लापरवाही को स्पष्ट रूप से परिभाषित करना. शुरुआत शिकायत के पंजीकरण से और अधिनियम के तहत कर्तव्य की उपेक्षा के पहलुओं को कवर करना.
• अपराधों के अनुमान के अलावा– अगर आरोपी पीड़ित या उसके परिवार से परिचित था, तो जब तक की साबित न हो, अदालत मानेगी कि आरोपी पीड़ित की जाति या आदिवासी पहचान से वाकिफ था.
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