संयुक्त राज्य अमेरिका में घातक इबोला वायरस के पहले मामले का सितंबर 2014 के अंतिम सप्ताह में पता चला. इबोला के लक्षण नजर आने के बाद मरीज को अस्पताल में भर्ती कराया गया जहां इसे इबोला का संक्रमण होने की पुष्टि हुई. अमेरिका के स्वास्थ्य अधिकारियों के अनुसार, यह व्यक्ति लाइबेरिया में घातक इबोला वायरस से संक्रमित हो गया था और टेक्सास, अमेरिका की यात्रा कर रहा था. रोगी ने 19 सितंबर 2014 को लाइबेरिया छोड़ा था. रोगी में वायरस के लक्षण 24 सितम्बर 2014 को स्पष्ट हो गए थे. रोगी को 28 सितंबर 2014 को टेक्सास में अस्पताल में भर्ती कराया गया.
इबोला
इबोला वायरस बीमारी (ईवीडी) एक गंभीर मानव रोग है. इबोला वायरस को पहले इबोला रक्तस्रावी बुखार (इबोला हेमरैजिक फीवर) के नाम से जाना जाता था. ईवीडी का प्रकोप आम तौर पर ऊष्णकटिबंधीय वर्षा वन के पास स्थित मध्य और पश्चिमी अफ्रीका के गांवों में देखा गया.
यह वायरस संक्रमित जानवरों खासकर पटीरोपोडाडी परिवार के चमगादड़ों के संपर्क में आने से फैलता है. इबोला वायरस से संक्रमित लोगों में दो से तीन दिनों के बाद लक्षण नजर आते हैं. ये लक्षण बुखार, गले में खराश, सिर दर्द, उल्टी, मांसपेशियों में दर्द आदि हो सकते हैं. बुरी स्थित में, व्यक्ति को डायरिया के साथ लीवर और किडनी संबंधित परेशानियां हो सकती हैं.
इबोला से संक्रमित मरीजों को गहन देखभाल की जरूरत होती है. ऐसे मरीजों को बचाने के लिए अब तक कोई विशेष उपचार या दवाएं उपलब्ध नहीं हैं. इबोला वायरस का पता सबसे पहले वर्ष 1976 में चला था जब इसने नजारा, सूडान और कांगों के यामबुकु में लोगों को संक्रमित किया था. यामबुकु इबोला नदी के पास स्थित एक गांव है. इबोला वायरस का नाम इसी नदी पर रखा गया है. लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन के प्रो. पीटर पायट ने कांगों में मरणासन्न कैथलिक नन के खून के नमूने से वर्ष 1976 में इबोला वायरस की खोज की थी.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, दुनिया की सबसे घातक बीमारी इबोला ने पांच पश्चिम अफ्रीकी देशों में 6500 से अधिक लोगों को संक्रमित किया है और अब तक 3000 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है.
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