The Supreme Court stayed the Allahabad High Court verdict that directed division of 2.77 acres of land of the disputed Ram Janmabhoomi-Babri Masjid site in Ayodhya into three parts among Hindus, Muslims and the Nirmohi Akhara. अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद (Ayodhya Ram Janmabhoomi-Babri Masjid) को तीन बराबर हिस्सों में बांटे जाने के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) ने विचित्र करार देते हुए उस पर 9 मई 2011 को रोक लगा दी.
सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) ने अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद (Ayodhya Ram Janmabhoomi-Babri Masjid) के तीन बराबर हिस्सों में बंटवारे पर रोक लगाते हुए वर्ष 1993 में दिए अपने फैसले के मुताबिक यथास्थिति कायम रखने का आदेश दिया. हालांकि गर्भगृह में पहले की तरह रामलला की पूजा अर्चना चलती रहेगी, लेकिन विवादित स्थल से लगी 67 एकड़ जमीन पर किसी तरह की धार्मिक गतिविधि नहीं होगी. सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) के न्यायाधीश न्यायमूर्ति आफताब आलम व आरएम लोधा की पीठ ने उपरोक्त निर्णय दिया और राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद (Ayodhya Ram Janmabhoomi-Babri Masjid) को तीन बराबर हिस्सों में बांटने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाएं विचारार्थ स्वीकार कर लीं.
सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) के न्यायाधीश न्यायमूर्ति आफताब आलम व आरएम लोधा की पीठ ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले पर आपत्ति जताते हुए यह तर्क दिया कि किसी भी पक्ष ने बंटवारा नहीं मांगा था, फिर ऐसा निर्णय क्यों लिया गया? ज्ञातव्य हो कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने 30 सितंबर 2010 को अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद (Ayodhya Ram Janmabhoomi-Babri Masjid) के 125 साल पुराने विवाद में 2.77 एकड़ जमीन को तीन बराबर हिस्सों में बांटने का आदेश दिया था. इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ के न्यायाधीश न्यायमूर्ति एसयू खान, न्यायमूर्ति डीवी शर्मा और न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल की पीठ ने दो-एक के बहुमत से दिए फैसले में एक हिस्सा भगवान रामलला को, दूसरा निर्मोही अखाड़े और तीसरा हिस्सा मुसलमानों को देने का निर्देश दिया था.
अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद (Ayodhya Ram Janmabhoomi-Babri Masjid) से जुड़े सभी पक्षों ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ के भूमि बंटवारे संबंधी फैसले पर असंतोष जताते हुए सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) में याचिका दायर की थी. यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड, जमीयत उलेमा ए हिन्द, निर्मोही अखाड़ा, भगवान राम विराजमान तथा अन्य पक्षों की ओर से पेश वकीलों ने पीठ से यथास्थिति कायम रखने का आदेश देने का अनुरोध किया था.
सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद वर्ष 1993 में सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) द्वारा इस्माइल फारुखी केस में दिये गये यथास्थिति कायम रखने के आदेश को जारी रखा. उस आदेश में सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) ने तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंह राव सरकार के भूमि अधिग्रहण की अधिसूचना जारी करने से पहले की यथास्थिति बनाये रखने का आदेश दिया था. उसके तहत ढांचा ढहने के बाद नवनिर्मित मंदिर में रामलला की पूजा अर्चना जारी रखने की अनुमति दी गई थी. परंतु अन्य मामले में यथास्थिति कायम रखनी थी. इसके बाद 13 मार्च 2003 और फिर 2004 में सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार द्वारा अधिग्रहित 67.703 एकड़ भूमि पर यथास्थिति कायम रखने के आदेश दिए थे. उन आदेशों में अदालत ने अधिग्रहित जमीन पर किसी भी तरह की धार्मिक गतिविधि पर रोक लगा दी थी. सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) के न्यायाधीश न्यायमूर्ति आफताब आलम व आरएम लोधा की पीठ ने अपने उस आदेश को भी जारी रखा. ज्ञातव्य हो कि केंद्र सरकार द्वारा अधिग्रहित भूमि विवादित स्थल से अलग है.
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