भारत– अफ्रीका मंच शिखर सम्मेलन का आयोजन 29 अक्टूबर 2015 को नई दिल्ली में किया गया . इसका थीम था– प्रगति में भागीदार : एक गतिशील और परिवर्तनकारी विकास कार्यसूची की ओर. वर्ष 2008 में मंच की शुरुआत के बाद से यह तीसरा सम्मेलन था.
इस शिखर सम्मेलन में दिल्ली घोषणा को अपनाया गया जिसमें आगामी दशकों में परिवर्तनकारी संबंधों पर जोर दिया गया. इसके अलावा इस शिखर सम्मेलन में रणनीतिक सहयोग के लिए 2015 भारत– अफ्रीका रुपरेखा और साझा महत्वाकांक्षी योजनाओं को पूरा करने के लिए कार्य योजना को भी मंजूरी दी गई.
अफ्रीका में भारत की भूमिका
विकास सहायता : अफ्रीका में विकास के मुख्य साझेदारों में से भारत भी है. वर्ष 2008 से विकास सहयोग में भारत का स्थान अमेरिका, जापान और चीन के बाद रहा है और अफ्रीका के विकास को बढ़ावा देने के लिए भारत ने करीब 17.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर गिरवी रखा था.
इसके अलावा भारत ने 2015 के शिखर सम्मेलन में 600 मिलियन अमेरिकी डॉलर के अनुदान सहायता प्रदान करने की घोषणा की जिसमें भारत– अफ्रीका विकास कोष में 100 मिलियन और भारत– अफ्रीका स्वास्थ्य कोष में 10 मिलियन अमेरिकी डॉलर भी शामिल होगा.
शिक्षा– 2015 : के शिखर सम्मेलन में भारत ने हमारे देश में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए अफ्रीकी छात्रों को 50000 छात्रवृत्तियां प्रदान करने की प्रतिबद्धता जताई है. अफ्रीकी संघ के साथ संयुक्त पहल में भारत ने 54 अफ्रीकी देशों में टेलिएजुकेशन, टेलिमेडिसिन, ई– कॉमर्स, ई– गवर्नेंस, इंफोटेनमेंट, रिसोर्स– मैपिंग और मौसम संबंधी सेवाएं मुहैया कराने के लिए 2007 में पूरे अफ्रीका में ई– नेटवर्क परियोजना की शुरुआत की थी.
गृह युद्ध और संघर्ष : अफ्रीका में संयुक्त राष्ट्र के शांति अभियानों में योगदान देने वाले सबसे बड़े देशों में से एक भारत है. भारतीय कर्मी चार मिशन में शामिल हैं– आइवरी कोस्ट (2004), कांगो (2005), सूडान और दक्षिण सूडान (2005) और लाइबेरिया ( 2007).
अफ्रीका भारत के लिए क्यों प्रासंगिक है?
खनिजों का स्रोत : अफ्रीका खनिज संसाधनों में समृद्ध है. सोना और चांदी के अलावा कच्चा तेल का आयात भारत और अफ्रीका के बीच व्यापार संबंधों का आधार बनाता है.
मई 2015 में सउदी अरब को पीछे छोड़ते हुए नाइजीरिया भारत के लिए सबसे बड़ा तेल निर्यातक देश बन गया. वर्तमान में भारत के कच्चे तेल के कुल आयात का करीब 26 फीसदी अफ्रीकी देशों से आता है. इसमें भी नाइजीरिया और अंगोला प्रमुख है.
ओएनजीसी की अंतरराष्ट्रीय शाखा ओएनजीसी विदेश लिमिटेड (ओवीएल) की उपस्थिति पांच अफ्रीकी देशों– लीबिया, नाइजीरिया, सूडान, साउथ सूडान और मोजाम्बिक, में है जो तेल की खोज और उत्पादन में संबंधों की मजबूती को दर्शाता है.
इसके अलावा पृथ्वी के दुलर्भ खनिजों के अगले विश्व प्रदाता बनने की अफ्रीका की क्षमता भारत को चीन के इस रणनीतिक क्षेत्र में दबदबे पर अंकुश लगाने में भी मदद करेगा जो आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग का मूल है.
भारत में बनी वस्तुओं के लिए बाजार : हाल के वर्षों में अफ्रीका विकसशील जीवन मानकों और महाद्वीप में जीवन की गुणवत्ता में सुधार की वजह से भारत में बनी वस्तुओं के लिए प्रमुख स्थानों में से एक के तौर पर उभरा है.
विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार जीएनआई के आधार पर अफ्रीका भारत से समृद्ध है औऱ दर्जनों अफ्रीकी देशों का प्रति व्यक्ति जीएनआई चीन से अधिक है.
इसलिए भविष्य में भारत के लिए अफ्रीका सर्वश्रेष्ठ होगा क्योंकि महत्वाकांक्षी मेक इन इंडिया पहल के तहत भारत का उत्पादन खपत स्तर से बढ़ रहा है.
कम विकासशील देशों (एलडीसी) में अधिमान्य सहायता का विस्तार करने की भारत के हालिया फैसले ने, जिसमें मुख्य रूप से अफ्रीकी देश शामिल हैं, डब्ल्यूटीओ में व्यापार, सेवाओं में, निकट भविष्य में खनिज संसाधन नीत व्यापार गति और सेवा क्षेत्र में बढ़ाने की उम्मीद है.
पिछले 15 वर्षों में अफ्रीका के साथ व्यापार में 20 गुना का इजाफा हुआ है लेकिन साल 2015 के 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर के लक्ष्य से यह अभी काफी दूर है.
तुलनात्मक रूप में अफ्रीका के साथ 100 बिलियन का व्यापार लक्ष्य चीन के 250 बिलियन अमेरिकी डॉलर के व्यापार लक्ष्य से बहुत कम है.
वैश्विक संस्थाओं में उपस्थिति : 54 देशों का अफ्रीकी संघ संयुक्त राष्ट्र सदस्यों के चौथाई सदस्यों से अधिक है और उनकी उपस्थिति संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता की संभावनाओं को बढ़ा देगा.
साल 1945 के बाद से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सात बार चुना जाना और यूनिसेफ, विश्व खाद्य कार्यक्रम, संयुक्त राष्ट्र पर्यावास आदि जैसे महत्वपूर्ण संगठनों के चुनाव में भारत की हालिया जीत अफ्रीकी देशों की मदद के बिना संभव नहीं हो सकती थी.
साझा हितों के क्षेत्र
जनसांख्यिकी– हालांकि आकार में भारत और अफ्रीका अलग– अलग हैं लेकिन जनसांख्यिकी स्तर पर दोनों में बहुत समानताएं हैं जैसे
इनकी आबादी लगभग समान है– करीब 130 करोड़ और ये दोनों मिलकर दुनिया के एक तिहाई आबादी का गठन करते है.
15 से 24 वर्ष वाले करीब 200 मिलियन लोगों के साथ अफ्रीका की आबादी दुनिया की सबसे युवा आबादी है. इसी प्रकार भारत में भी इस श्रेणी की 18 फीसदी आबादी है.
जातीय और भाषाई विविधता के मामले में भारत अफ्रीका के समकक्ष है.
बड़ी युवा आबादी और बेरोजगारी की उच्च दर की पृष्ठभूमि में भारत और अफ्रीका एक दूसरे के साथ मिलकर कौशल विकसित करने और जनसांख्यिकी लाभांश प्राप्त करना सीख सकते हैं.
सुरक्षा– सुरक्षा के विस्तृत दायरे को ध्यान में रखते हुए भारत और अफ्रीका दोनों ही गरीबी, भूखमरी, बेरोजगारी, उग्रवाद, आतंकवाद, नशीली दवाओं की तस्करी, मानव तस्करी, काले धन को वैध बनाना (मनी लॉन्ड्रिंग), पायरेसी, बीमारी आदि जैसे एक समान आंतरिक और बाह्य खतरों का सामना कर रहे हैं.
नई अंतरराष्ट्रीय व्यवस्थाः अधिक लोकतांत्रिक संरचनात्मक व्यवस्था के क्रम में संयुक्त राष्ट्र, विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसे वैश्विक राजनीतिक एवं वित्तीय संस्थानों में संरचनात्मक एवं प्रक्रियात्मक सुधार अनिवार्य हैं. इसे प्राप्त करने के लिए, दोनों ही भागीदारों को गहरे संबंध बनाने का प्रयास करना चाहिए.
निष्कर्ष
गैर निरपेक्ष आंदोलन (एनएएम) और शीत युद्ध की राजनीति एवं नस्लवाद 1990 के दशक तक मुख्य बाध्यकारी कारक थे, नए युग के भारत– अफ्रीकी संबंध व्यापार, निवेश, लोग– से– लोग के आदान प्रदान और व्यापक आधार वाली विकास आकांक्षाओं पर ध्यान केंद्रित कर इन्हें द्विपक्षीय और बहुपक्षीय सहयोग द्वारा चिन्हित या समाप्त किया जा सकता है.
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