ईरान और पी-5+1 देशों- अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, चीन, रूस और जर्मनी ने, ईरान के परमाणु कार्यक्रम समझौते पर 14 जुलाई 2015 को सहमत हुए. यह ऐतिहासक समझौता आस्ट्रिया की राजधानी वियना के रिजी पैलेस कोबर्ग होटल में हुआ.
इस समझौते को ‘क्रियान्वयन संयुक्त व्यापक योजना’ (Joint Comprehensive Plan of Action, JCPA) या ‘वियना समझौता’ नाम दिया गया. यह समझौता वियना में करीब 17 दिनों तक चली सात देशों के विदेश मंत्रियों की चर्चा के बाद हुआ.
वियना समझौते को अब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) द्वारा अभिपुष्टि किए जाने की आवश्यकता है. यह समझौता अभिपुष्टि होने के 90 दिनों के बाद अस्तित्व में आएगा.
इस परमाणु वार्ता का उद्देश्य ऐसे समझौते तक पहुंचना था जिससे ईरान की परमाणु गतिविधियों पर लगाम लगे और उसके लिए परमाणु बम का विकास करना बेहद मुश्किल हो जाए.
वियना समझौता के मुख्य बिंदु
• इसके तहत ईरान पर लगे हथियारों की खरीद फरोख्त के प्रतिबंध को हटा लिया जायेगा लेकिन इस क्षेत्र में कुछ सीमित प्रतिबंध जारी रहेंगे. हालांकि ये प्रतिबंध खुद ब खुद पांच साल के बाद हट जायेंगे और बैलिस्टिक मिसाइल प्रौद्योगिकी पर प्रतिबंध आठ साल तक चलेगा.
• 800 व्यक्तियों, कानूनी प्रतिष्ठानों जैसे सेंट्रल बैंक ऑफ ईरान, ईरान शिपिंग लाइंस, नेशनल ईरानियन ऑयल कंपनी को प्रतिबंधितों की सूची से हटा दिया जायेगा.
• परमाणु भौतिकी के अध्ययन के लिए ईरानी छात्र की क्षमता पर संयुक्त राष्ट्र का प्रतिबंध हटा लिया जाएगा.
• ईरान पर लगाये गये सुरक्षा परिषद के आर्थिक और वित्तीय सहित प्रतिबंध संयुक्त राष्ट्र में नया प्रस्ताव पारित करके हटा लिए जायेंगे.
• ईरान के किसी भी परमाणु संयंत्र को न ही बंद किया जायेगा और न ही उसे नष्ट किया जायेगा.
• ईरान को उन्नत आईआर-6 और आईआर-8 मशीन सहित सभी प्रकार के सेंट्रीफ्यूज पर शोध करने और उसे विकसित करने की छूट मिली रहेगी.
• ईरान संवर्धित यूरेनियम के भंडार को आंशिक रूप से अंतरराष्ट्रीय बाजार में बेच सकेगा. कुछ को तनु करेगा, और कुछ को ईंधन में परिवर्तित करेगा.
• ईरान और पी5 प्लस वन समूह समझौते के क्रियान्वयन का मूल्यांकन करने के लिए वर्ष में दो बार मंत्री स्तरीय मीटिंग कारेगा.
• समझौते के लागू होते ही अमेरिका और यूरोपीय संघ द्वारा ईरान के बैंकों, वित्तीय प्रतिष्ठानों, तेल, गैस, पेट्रो-केमिकल, व्यापार, बीमा और यातायात क्षेत्रों पर लगाये गये आर्थिक और वित्तीय प्रतिबंधों को हटा दिया जायेगा.
• इस समझौते से ईरान को विदेशी बैंकों में फ्रीज किये गये अरबों डॉलर मिल जायेंगे.
• समझौते के तहत ईरान को संयुक्त राष्ट्र के आग्रह को चुनौती देने का अधिकार होगा और ऐसी स्थिति में वह मध्यस्थता बोर्ड इस बारे में फैसला करेगा कि जिसमें ईरान तथा दुनिया की छह प्रमुख शक्तियां (पी-5+1) शामिल हैं.
• इसमें तेहरान और वाशिंगटन के बीच वह समझौता भी शामिल है जिसके तहत संयुक्त राष्ट्र निरीक्षकों को निगरानी कार्य के लिए ईरानी सैन्य स्थलों पर जाने की इजाजत होगी. समझौते के तहत यह जरूरी नहीं है कि किसी भी स्थल पर जाने की अनुमति दे ही दी जाए और यदि अनुमति दी भी जाती है तो भी इसमें विलंब किया जा सकता है.
• समझौते में परिष्कृत यूरेनियम भंडार को 96 प्रतिशत तक घटाना और अपने सभी संयंत्र को अतंरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों के लिए खोलना शामिल है.
• प्रतिबंध तभी हटाए जाएंगे जब अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए ) यह रिपोर्ट देगी कि ईरान ने वादा पूरा करना शुरू कर दिया है.
• अरक हैवी वॉटर रिएक्टर को फिर से ऐसे बनाया जाएगा जिससे यह ज्यादा प्लूटोनियम नहीं बना पाए.
• संयुक्त राष्ट्र निरीक्षक ईरान के संयंत्रों और सेना के प्रतिष्ठानों का निरीक्षण कर सकेंगे. उन्हें कहीं भी परमाणु हथियार मिलने का संदेह होने पर वे आपत्ति कर सकेंगे. ईरान इसे चुनौती दे सकेगा. इस पर बहुराष्ट्रीय आयोग जांच करेगा. आपत्ति सही पाए जाने पर ईरान को तीन दिन में उसका पालन करना होगा.
• परमाणु निरीक्षक केवल उन्हीं देशों के होंगे, जिनके साथ ईरान के राजनयिक रिश्ते हैं. मतलब कोई अमेरिकी नहीं होगा.
• जैसे ही इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी (आईएईए ) यह बता देगी कि ईरान ने अपने कार्यक्रम कम करने शुरू कर दिए हैं, संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका और यूरोपीय संघ उस पर लगे प्रतिबंध हटा लेंगे.
• ईरान परिष्करण क्षमता दो-तिहाई कम करेगा. फर्दो में भूमिगत यूरेनियम परिष्करण केंद्र बंद करेगा.
• कम परिष्कृत यूरेनियम का भंडार 300 किलोग्राम तक करेगा. यानी 96 प्रतिशत कम करेगा. ऐसा वह उसकी क्षमता घटाकर या बाहर भेज कर कर सकता है.
विश्लेषण
करीब 12 साल की कोशिशों और 17 दिन की लगातार चर्चा के बाद पी-5+1 देशों ने ईरान से परमाणु कार्यक्रम पर समझौता कर लिया. यह समझौता वैश्विक राजनीत के विकास में अत्यंत महत्वपूर्ण है. इस समझौते से एक तरफ तो ईरान को मनोवैज्ञानिक रूप से प्रोत्साहन मिलेगा तथा वहीं दूसरी तरफ इससे मध्य पूर्व की कई गंभीर सुरक्षा चुनौतियों में अधिकाधिक आपसी समझ और सहयोग को बढ़ावा मिलेगा.
इससे ईरान को दो मोर्चों पर प्रोत्साहन मिलेगा. एक मोर्चे पर इससे वर्ष 2013 में हसन रूहानी के राष्ट्रपति बनने के बाद ईरान के राजनयिक प्रयासों को बल मिला जिसकी मांग 12 साल पहले पश्चिमी शक्तियों के साथ की थी. और दूसरी तरफ ईरान की अर्थव्यवस्था में व्यापार और निवेश को बढ़ावा मिलेगा. ईरान में पूंजी प्रवाह बढ़ेगा.
भारत के अनुसार इससे ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर अंतरराष्ट्रीय जगत की चिंताओं का समाधान हुआ है. भारत का हमेशा से मानना रहा है कि इस मुद्दे पर बातचीत के जरिये शांतिपूर्ण ढंग से सुलझाया जाना चाहिये , जिसमें ईरान के परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण इस्तेमाल के अधिकार का सम्मान तथा इस परमाणु कार्यक्रम के शांतिपूर्ण होने के संबंध में अंतर्राष्ट्रीय जगत के हित, दोनों सुनिश्चित हों.
उधर, इस्राइल के प्रधानमंत्री बेनयामिन नेतन्याहू ने समझौते को ‘दुनिया के लिए ऐतिहासिक गलती’ बताया है और कहा है कि इससे ईरान को क्षेत्र में अपना आक्रामक और आतंकी कार्यक्रम जारी रखने में मदद मिलेगी.
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