15 मार्च 2015 को सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उस फैसले को सही ठहराया जिसमें जीवन बीमा निगम ( एलआईसी) में डेवलपमेंट ऑफिसर के तौर पर काम करने वालों को औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 की धारा 2 (s) तहत कामगार नहीं माने जाने की बात कही गई थी. यह फैसला जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस प्रफुल सी. पंत की सुप्रीम कोर्ट पीठ ने दिया और कहा कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले में किसी प्रकार का कोई दोष नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने यह फैसला एलआईसी के कुछ डेवलपमेंट ऑफिसरों की इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने पर की जाने वाली सुनवाई के दौरान किया.
मामला
मामला एलआईसी द्वार डेवलपमेंट ऑफिसरों के वेतन में कमी से संबंधित है. एलआईसी इन ऑफिसरों द्वारा हकदार न होने पर भी कथित तौर पर बढ़े हुए बोनस पर दावा करते हुए पाए जाने के बाद किया था.
इसे कुछ डेवलपमेंट ऑफिसरों ने औद्योगिक न्यायाधिकरण– सह– श्रम न्यायलों (ITLCs) में चुनौती दी थी. ITLC के समक्ष एलआईसी ने कहा कि यह मामला इस लिए नहीं बनता क्योंकि डेवलपमेंट ऑफिसर औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 की धारा 2 (s), 1947 तहत कामगारों की श्रेणी में नहीं रखे जा सकते.
हालांकि, न्यायाधिकरण ने रख -रखाव की दलील को मानने से इंकार कर दिया और अन्य मुद्दों पर डेलवपमेंट ऑफिसरों के पक्ष में फैसला सुनाया और एलआईसी को डेलवपमेंट ऑफिसरों के वेतनमान और एरियर के भुगतान करने का निर्देश दिया.
इस फैसले को एलआईसी ने इलाहाबाद उच्च न्यायलय में चुनौती दी जिसने औद्योगिक न्यायाधिकरण के फैसले को औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 की धारा 2 (s), 1947 तहत डेवलपमेंट ऑफिसरों के कामगारों की श्रेणी में न आने के आधार पर बदल दिया और इसलिए ITLCs के पास इस विवाद के निपटारे का कोई अधिकार नहीं रह गया था.
औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 की धारा 2 (s), 1947 के बारे में
औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 की धारा 2 (s), 1947 कामगार की परिभाषा प्रदान करता है. इसके मुताबिक, कामगार का अर्थ है कोई भी व्यक्ति ( प्रशिक्षु समेत) जो किसी भी उद्योग में करता है और मैनुअल, अकुशल, कुशल, तकनीकी, संचालन संबंधी, लिपिकीय या पर्यवेक्षी का काम करने के लिए मजदूरी या पारिश्रमिक पर रखा जाए.
इसमें वैसे लोग शामिल नहीं हैं जो
क. जो वायु सेना अधिनियम, 1950 या सेना अधिनियम, 1950 या नौसेना अधिनियम, 1957 ( 1957 का 62)
ख. जो पुलिस सेवा में हो या जेल में अधिकारी या अन्य कर्मचारी के रूप में कार्यरत हो.
ग. जो मुख्य रूप से प्रबंधकीय या प्रशासकीय क्षमताओँ में कार्यरत हो या
घ. वैसे लोग, जो पर्यवेक्षी क्षमताओँ के साथ कार्यरत हों, जिन्हें प्रत्येक काम के लिए 1600 रुपयों से ज्यादा मिलते हैं, मुख्य रूप से प्रबंधकीय प्रकृति का काम करते हों.
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