एआईएडीएमके (AIADMK) के नेता ओ. पनीरसेल्वम ने तमिलनाडु के मुख्यमंत्री पद से 21 मई 2015 को इस्तीफा दे दिया. इस्तीफे के साथ ही उनकी आठ महीने की सरकार का कार्यकाल खत्म हो गया. तमिलनाडु के राज्यपाल के रोसैया ने ओ. पनीरसेल्वम का इस्तीफा स्वीकार कर लिया तथा उन्हें और उनकी वर्तमान मंत्रिपरिषद से वैकल्पिक व्यवस्था होने तक काम करते रहने के लिए कहा. इसके बाद राज्यपाल ने अन्नाद्रमुक प्रमुख जे जयललिता को नई सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया.
ओ. पनीरसेल्वम के इस्तीफे के बाद जे जयललिता को सर्वसम्मति से अन्नाद्रमुक पार्टी (एआईएडीएमके) के विधायक दल का नेता चुना गया.
ओ. पनीरसेल्वम ने दूसरी बार तमिलनाडु के मुख्यमंत्री पद की शपथ 29 सितंबर 2014 को ली थी. इससे पहले वर्ष 2001 में लगभग इसी तरह की परिस्थितियों में उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया था जब एक अन्य मामले में दोषी ठहराये जाने पर जयललिता को इस्तीफा देना पड़ा था. शीर्ष अदालत द्वारा उन्हें बरी करने के बाद पनीरसेल्वम ने छह महीने बाद वर्ष 2002 में इस्तीफा दे दिया था.
यह तमिलनाडु की 14वीं विधानसभा है.
ओ.पन्नीरसेल्वम से संबंधित मुख्य तथ्य
• वर्ष 1951 में जन्मे पन्नीरसेल्वम किसान परिवार से हैं.
•पनीरसेल्वम (63) प्रभावशाली मुदुकुलाथोर समुदाय से आते हैं और अपने गृह जिले पेरियाकुलम में चाय की दुकान चलाने वाले साधारण परिवार से निकलकर वह यहां तक पहुंचे.
• राजनीति में उनका आगमन वर्ष 1996 में हुआ जब वह पहली बार पेरियाकुलम नगर निगम के अध्यक्ष बने.
• वर्ष 2001 में वह पहली बार पेरियाकुलम विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुने गए और जयललिता सरकार में लोक निर्माण मंत्री बनाए गए.
• वर्ष 2001 में जब उन्होंने मुख्यमंत्री पद संभाली तो एक रिकार्ड उनके नाम जुड़ा और वह था थेवार समुदाय से आने वाले प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री बनने का.
• तमिलनाडु विधानसभा चुनाव में एआईएडीएमके की हार के बाद वर्ष 2001 से 2006 तक जब अन्नाद्रमुक विपक्ष में थी तब ओ पनीरसेल्वम अन्नाद्रमुक विधायक दल के उपनेता तथा नेता प्रतिपक्ष थे.
• पनीरसेल्वम अन्नाद्रमुक के कोषाध्यक्ष हैं.
विदित हो कि तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जे. जयललिता को आय के ज्ञात स्रोत से 66 करोड़ रुपये अधिक की संपत्ति जमा करने के एक मामले में 27 सितंबर 2014 को एक विशेष न्यायालय ने दोषी करार देते हुए चार वर्ष कैद की सजा सुनाई और 100 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया. लेकिन कर्नाटक उच्च न्यायालय ने 11 मई 2015 को निचली अदालत का यह फैसला रद्द कर दिया.
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