केंद्र सरकार ने 11 जून 2015 को एड्स के इलाज के लिए प्रयोग की जाने वाली दवाओं तथा टेस्ट किट पर लगने वाला आयात शुल्क समाप्त कर दिया. यह छूट मार्च 2016 तक प्रभाव में रहेगी.
इस छूट का फायदा एंटी रेट्रोवाइरल ड्रग्स (एआरवी ड्रग्स) जैसे एडल्ट फर्स्ट लाइन, अडल्ट सेकंड लाइन और पीडिऐट्रिक दवाओं में मिलेगा. जिन दवाओं एवं उपकरणों से आयात शुल्क हटाया गया है उनमें कलस्टर ऑफ डिफरेंशेसन (सीडी) 4 किट्स/रीजेंट्स, शुरू की अवस्था में ही नवजात शिशु के डीएनए परीक्षण के लिए एचआईवी-डीएनए-पीसीआर किट्स, वाइरल लोड किट्स, सीडी 4 मशीनें, वायरल लोड मशीनें शामिल हैं.
यह निर्णय देश में एचआईवी/एड्स की दवाओं की कमी तथा उनके महंगे दामों को नियंत्रण में लाने के लिए लिया गया है.
इससे एआरवी के निर्माण के लिए आयात की जाने वाली सामग्री में छूट से फायदा मिलेगा जिससे देश में ही दवा का निर्माण हो सकेगा.
इस समय भारत में मीलान इंक तथा अरबिंदो फार्मा एआरवी सप्लाई करती हैं.
देश में लगभग 21 लाख एड्स के मरीज हैं, जिनमें से एक तिहाई से भी अधिक केवल सरकारी दवाओं पर पूरी तरह आश्रित हैं जो दवाओं की कमी की लगातार शिकायत करते रहे हैं. इन्हें सरकार के इस कदम से थोड़ी राहत पहुंचने के आसार हैं.
राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम (एनएसीपी)
भारत में एड्स का पहला केस पता लगने के बाद वर्ष 1986 में केंद्र सरकार ने स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के सहयोग से राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम की स्थापना की.
इसके बाद वर्ष 1992 में राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम (एनएसीपी) का पहला चरण वर्ष 1992 से 1999 के बीच लागू किया गया तथा नैको की स्थापना की गयी.
वर्तमान में एनएसीपी का चौथा चरण जारी है जिसका लक्ष्य संक्रमण को 50 प्रतिशत तक कम करना है. एनएसीपी-IV वर्ष 2012 से 2017 तक प्रभावी रहेगा.
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