केंद्र सरकार ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) को पश्चिमी घाट पर माधव गाडगिल की रिपोर्ट को लागू नहीं करने के लिए सूचित किया.
केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्रालय (एमओईएफ) ने एनजीटी से कहा की वह पर्यावरण के प्रति संवेदनशील क्षेत्रों की डेमार्केटिंग पर भविष्य के सभी निर्णय लेने के लिए प्रोफेसर कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय कार्य समूह ( एचएलडब्लूजी) की रिपोर्ट पर निर्भर रहेगी. पश्चिमी घाट केरल, गोवा, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक और तमिलनाडु के छह राज्यों में फैला पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र है.
एनजीटी द्वारा राजग सरकार पर ढुलमुल रवैया अपनाने और गाडगिल रिपोर्ट को स्वीकार या अस्वीकार करने पर जवाब न देने के लिए आलोचना करने के बाद सरकार ने एनजीटी को यह जानकारी दी.
इससे पहले, अक्टूबर 2013 में संप्रग सरकार ने कस्तूरीरंगन समिति की रिपोर्ट को लागू करने की सैद्धांतिक मंजूरी देते हुए एक अधिसूचना जारी की थी, लेकिन संभव राजनीतिक नतीजों के डर से निष्पादन से परहेज किया, और अगली सरकार पर अंतिम निर्णय छोड़ दिया.
पृष्ठभूमि
वर्ष 2011 में केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को सौंपी अपनी रिपोर्ट में गाडगिल समिति ने पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र के रूप में पूरे पश्चिमी घाट को नामित किया था. इसने क्षेत्र में विकास की गतिविधियों को सीमित करते हुए, पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र के रूप में पश्चिमी घाट की लगभग 3/4 भूमि की अधिसूचना की सिफारिश की.
हालांकि, पश्चिमी घाट में आने वाले राज्यों के गंभीर विरोध के पश्चात, यूपीए सरकार ने के. कस्तूरीरंगन समिति का गठन किया. वर्ष 2013 में इस पैनल ने क्षेत्र के केवल 37 प्रतिशत भाग को पारिस्थितिकी संवेदनशील के रूप में घोषित किये जाने की सिफारिश करते हुए, साथ में खनन और ताप विद्युत उत्पादन जैसे कुछ व्यावसायिक गतिविधियों पर रोक लगाने के लिए कहा.
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