केंद्र सरकार ने संयुक्त खुफिया समिति (जेआईसी) के अध्यक्ष आर एन रवि को 29 अगस्त 2014 को नागा वार्ताकार नियुक्त किया. वे नागा शांति वार्ता में भारत सरकार के प्रतिनिधि होंगे. रवि की इस पद पर नियुक्ति की मुख्य वजह पूर्वोत्तर मामलों में उनकी विशेषज्ञता है क्योंकि खुफिया ब्यूरो में अपने कार्यकाल के दौरान वे इस इलाके के मामलों को देखते आए हैं. वर्ष 2012 में वे यहीं से विशेष निदेशक के पद से सेवानिवृत्त हुए थे. नए वार्ताकार की नियुक्ति पिछले वार्ताकार आर एस पांडे के इस्तीफे के सात माह के बाद हुई है. इस दौरान इस पद पर भूतपूर्व जेआईसी प्रमुख अजीत लाल थे.
विदित हो कि पूर्व में,मिजोरम के भूतपूर्व राज्यपाल स्वराज कौशल, भूतपूर्व केंद्रीय मंत्री ऑस्कर फर्नांडीस औऱ भूतपूर्व केंद्रीय गृह सचिव के पद्मनाभैया ने नागा वार्ताकार की भूमिका निभाई और नागा विद्रोहियों के साथ बातचीत की, लेकिन इसका कोई सार्थक परिणाम नहीं निकल सका.
नगालैंड का मुद्दा
नगालैंड का मुद्रा सदियों पुराना है, जिसमें ग्रेटर नगालैंड–नागालिंगम की स्थापना की मांग की जा रही है. इसमें पूर्वोतर भारत और बर्मा के रहने वाले सभी नगा लोगों के निवास क्षेत्र को एकीकृत करने का आह्वान किया गया है. इसके लिए नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड–इसाक मुइवा (एनएससीएन–आईएम) की स्थापना इसाक चीशी स्वू, थूइंगालेंग मुइवा और एस.ए.खापलांग ने वर्ष 1980 में की थी. इस परिषद ने तत्कालीन नागा नेशनल काउंसिल (एनएनसी) द्वारा भारत सरकार के साथ वर्ष 1975 में हुए शिलांग समझौते का विरोध किया. समझौते के मुताबिक एनएनसी को बिना किसी शर्त के भारतीय संविधान की सर्वोच्चता स्वीकार करने,अपने हथियारों का समर्पण और नगालैंड के अलगाव की अपनी मांग को छोड़ने को कहा गया था. हालांकि, एनएससीएन–आईएम की मांग अस्थिरता फैलाने का लगता है. ऐसा इसलिए क्योंकि ग्रेटर नगालैंड बनाने का मतलब होगा, असम और मणिपुर जैसे राज्यों को अपने इलाके देने होंगें. लेकिन ऐसा इसलिए संभव नहीं है क्योंकि संबंधित विधान सभाओं ने ग्रेटर नगालैंड के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया है.
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