केंद्रीय गृह मंत्रालय ने नक्सलवाद से लड़ने के लिए एक नये नक्सलरोधी नीति का मसौदा 17 अक्टूबर 2014 को तैयार किया. प्रस्तावित कानून (मसौदे) में, मंत्रालय ने स्पष्ट रूप से माओवादी विरोधी कार्यवाही में केन्द्रीय अर्द्ध सैनिक बलों एवं राज्य पुलिस बलों की भुमिका को निर्धारित किया है. केंद्रीय गृह मंत्रालय ने केंद्रीय अर्धसैनिक बलों (केन्द्रीय अर्द्ध सैनिक बलों) की भूमिका उनकी अखिल भारतीय व्यापकता का उपयोग करने के साथ काम करते हुए एवं आतंकवाद विरोधी ग्रिड जीवित रखते हुए राज्य पुलिस बलों के नेतृत्व में नक्सल विरोधी कार्यवाही करने का प्रस्ताव किया है.
नई नीति जल्द ही टिप्पणियों के लिए सभी राज्यों को भेजी जाएगी. यह नीति सुरक्षा से संबंधित उपायों, विकास आधारित दृष्टिकोण, अधिकार और पात्रता आधारित उपायों और सार्वजनिक धारणा प्रबंधन जैसे तत्वों, जिसमें चार आयामी दृष्टिकोण के माध्यम से माओवादियों से लड़ने के लिए लागू की जाएगी. नई नीति का यह दृष्टिकोण सबसे खराब वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षा उपायों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए लागू किया जायेगा.
मामूली-प्रभावित क्षेत्रों में, सुरक्षा और विकास की पहल साथ साथ की जाएगी, जबकि कम प्रभावित क्षेत्रों में विकास के उपायों को वरीयता दी जाएगी.
नई नीति के मुख्य बिंदु
प्रस्तावित नीति में राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर निगरानी समिति के प्रावधान भी शामिल हैं. राष्ट्रीय समिति में सभी नक्सल प्रभावित राज्यों के मुख्यमंत्रियों के अलावा केंद्र सरकार के गृहमंत्री, वित्त मंत्री, आदिवासी मामलों के मंत्री, पर्यावरण मंत्री, ग्रामीण विकास मंत्री, पंचायती राज मंत्री और सड़क एवं परिवहन मंत्री शामिल होंगे, और ये सभी दो वर्ष के अंतराल पर मिलेंगे.
एक अंतर मंत्रालयी समूह एवं समन्वय समिति के अंतर्गत विभिन्न राज्य की एजेंसियों द्वारा समन्वित प्रतिक्रिया के लिए एक राज्य स्तरीय समिति की देखरेख करने के लिए राज्य स्तर के अधिकारियों के साथ-साथ एक समन्वय समिति बनायीं जाएगी.
इसके अतिरिक्त नई नक्सल विरोधी रणनीति की समय समय पर समीक्षा की जाएगी.
नई-वामपंथी उग्रवाद विरोधी सिद्धांत के द्वारा सीआरपीएफ को प्रशिक्षण, बुनियादी ढांचा, हथियार और वित्तीय शक्तियों में एक निरंतर उन्नयन के साथ एक विश्व स्तरीय आतंकवाद विरोधी बल बनाने का भी लक्ष्य है.
इस नीति में कहा गया है कि डीओपीटी नियमों के आसपास काम करके अधिक से अधिक रैलियों के आयोजन के माधयम से स्थानीय आदिवासी युवाओं को भर्ती करने के लिए और सेना में उनके प्रतिनिधित्व को बढ़ाने के तरीकों की पहचान करने के लिए पुलिस / केन्द्रीय अर्द्ध सैनिक बलों को प्रोत्साहित किया जाएगा.
इसके अतिरिक्त योजनाओ एवं इमारतों के नाम आदिवासी आइकन्स के नाम पर रखकर भावुकता का सम्बन्ध स्थापित किया जायेगा.
नक्सलियों के साथ शांति वार्ता
जहाँ तक नक्सलियों के साथ शांति वार्ता की सम्भावना की बात है, मसौदा नीति में यह स्पष्ट कर दिया गया है कि वार्ता के किसी भी प्रस्ताव को तभी स्वीकार किया जायेगा जब माओवादियों राज्य सत्ता प्राप्त करने के लिए एक साधन के रूप में हिंसा छोड़ें और लोकतांत्रिक प्रक्रिया में अपना विश्वास व्यक्त करें.
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