सर्वोच्च न्यायालय ने किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने के संबंध में पुलिस को व्यवस्था दी कि इसे अंतिम विकल्प के तौर पर ही इस्तेमाल किया जाना चाहिए. सर्वोच्च न्यायालय ने बेवजह गिरफ्तारी को व्यक्तिगत स्वतंत्रता के बुनियादी अधिकार का उल्लंघन बताया.
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति दलवीर भंडारी और न्यायाधीश न्यायमूर्ति केएस राधाकृष्णन की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि गिरफ्तारी अंतिम विकल्प होना चाहिए और अपवाद स्वरूप ऐसे मामलों में ही आरोपी को गिरफ्तार किया जाना चाहिए जब वह मामले से संबंधित सुबूतों और परिस्थितियों के साथ छेड़छाड़ कर सकता हो. साथ ही खंडपीठ ने यह व्यवस्था दी कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता एक बेहद अहम बुनियादी अधिकार है और इसे तभी बाधित किया जाना चाहिए जब मामले से संबंधित हालात और तथ्यों के कारण ऐसा करना अनिवार्य हो.
न्यायमूर्ति दलवीर भंडारी और न्यायमूर्ति केएस राधाकृष्णन की खंडपीठ ने अग्रिम जमानत पर स्पष्ट किया कि किसी व्यक्ति को मिली अग्रिम जमानत मामले की सुनवाई के निष्कर्ष तक जारी रहनी चाहिए तथा आरोपी पर नियमित जमानत पाने के लिए आत्मसमर्पण जैसी शर्तें नहीं थोपनी चाहिए.
सर्वोच्च न्यायालय की इस खंडपीठ के अनुसार गिरफ्तारी के साथ अपयश, मानहानि और कलंक जुड़ा होता है. जिससे न केवल आरोपी बल्कि उसके परिवार और कई मामलों में तो पूरे समुदाय पर गंभीर असर पड़ता है. क्योंकि ज्यादातर लोग आरोप साबित होने से पहले गिरफ्तारी और आरोप साबित होने की बाद के चरण में फर्क करना नहीं जानते.
सर्वोच्च न्यायालय ने यह व्यवस्था 4 दिसंबर 2010 को सिद्धराम सतलिंगप्पा म्हेत्रे को अग्रिम जमानत देते हुए सुनाई. सिद्धराम सतलिंगप्पा म्हेत्रे पर हत्या का आरोप है और महाराष्ट्र उच्च न्यायालय ने म्हेत्रे को अग्रिम जमानत देने से इंकार किया था.
Comments
All Comments (0)
Join the conversation