बिहार स्थित नालंदा विश्वविद्यालय को पुनर्स्थापित करने वाली योजना में मदद देने हेतु भारत ने सात देशों के साथ आपसी सहमति पत्र (एमओयू) पर 10 अक्टूबर 2013 को हस्ताक्षर किया. आपसी सहमति पत्र (एमओयू) पर ऑस्ट्रेलिया, कंबोडिया, सिंगापुर, ब्रुनेई, न्यूजीलैंड, लाओस और म्यांमार के साथ हस्ताक्षर किए गए. यह समझौता पूर्वी एशियाई सम्मेलन (ईएएस) में किया गया. इन देशों हस्ताक्षर करने के साथ ही परियोजना के निर्माण के प्रति समर्थन में अपनी प्रतिबद्धता भी जताई.
चीन ने परियोजना के लिए 10 लाख डॉलर देने की जबकि सिंगापुर ने 50 से 60 लाख डॉलर और ऑस्ट्रेलिया ने 10 लाख डॉलर देने की प्रतिबद्धता जताई है. यह राशि स्वैच्छिक आधार पर दी जा रही है.
नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना की भारतीय योजना के लिए ये समझौते महत्वपूर्ण हैं. यह समझौता नालंदा विश्वविद्यालय को अंतरराष्ट्रीय दर्जा देने में अहम साबित होगा. परियोजना से जुड़े लोगों में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित अर्थशास्त्र अमर्त्य सेन शामिल हैं. नालंदा विश्वविद्यालय गवर्निंग बोर्ड में ईएएस के पांच प्रतिनिधि होंगे.
नालंदा विश्वविद्यालय बिहार में इसी नाम से बनाया जा रहा है. इसका निर्माण उसी जगह के समीप किया जा रहा है, जहां इस ऐतिहासिक अकादमिक स्थल के भग्नावशेष मौजूद हैं. इस विश्वविद्यालय में वर्ष 2014 से अकादमिक सत्र शुरू हो जाएंगे.
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने आसियान-भारत शिखर सम्मेलन और पूर्वी एशियाई सम्मेलन (ईएएस) में भाग लेने के लिए प्रधानमंत्री 9 अक्टूबर 2013 को ब्रुनेई पहुंचे. इसी सम्मलेन के दौरान यह समझौते किए गए. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सम्मेलन को संबोधित करते हुए इस परियोजना को अपना समर्थन देने वाले देशों के प्रति आभार व्यक्त किया. मुझे उम्मीद है कि पूर्वी एशियाई सम्मेलन (ईएएस) देशों के छात्र और संकाय इसमें भागीदार होंगे.
पूर्वी एशियाई सम्मेलन (ईएएस)
पूर्वी एशियाई सम्मेलन इस क्षेत्र के विभिन्न देशों के आसियान के साथ सहयोग के लिए एक मंच है, जिसमें ऑस्ट्रेलिया, चीन, भारत, जापान, कोरिया गणराज्य, न्यूजीलैंड, रूस और अमेरिका के अलावा दस आसियान (दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों का संघ भी शामिल हैं.
यह दस आसियान देश ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, मलयेशिया, म्यांमार, लाओस, फिलिपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम हैं.
नालंदा विश्वविद्यालय से सम्बंधित मुख्य तथ्य
नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना का श्रेय गुप्त शासक कुमारगुप्त प्रथम 450-470 ई. को प्राप्त है. यह विश्व का प्रथम पूर्णतः आवासीय विश्वविद्यालय था. गुप्तवंश के पतन के बाद भी आने वाले सभी शासक वंशों ने इसकी समृद्धि में अपना योगदान जारी रखा. इसे महान सम्राट हर्षवर्द्धन और पाल शासकों का भी संरक्षण मिला.
यह प्राचीन भारत में उच्च शिक्षा का सर्वाधिक महत्वपूर्ण और विख्यात केन्द्र था. महायान बौद्ध धर्म के इस शिक्षा-केन्द्र में हीनयान बौद्ध-धर्म के साथ ही अन्य धर्मों के तथा अनेक देशों के छात्र पढ़ते थे. यह वर्तमान में बिहार राज्य की राजधानी पटना से 88.5 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व और राजगीर से 11.5 किलोमीटर उत्तर में एक गांव के पास स्थित था. अलेक्जेंडर कनिंघम द्वारा खोजे गए इस बौद्ध विश्वविद्यालय के भग्नावशेष इसके प्राचीन वैभव का बहुत कुछ अंदाज़ करा देते हैं.
अनेक पुराभिलेखों और सातवीं शती में भारत भ्रमण के लिए आये चीनी यात्री ह्वेनसांग तथा इत्सिंग के यात्रा विवरणों से इस विश्वविद्यालय के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है. ह्वेनसांग तथा इत्सिंग के यात्रा के समय यहां 10,000 छात्रों को पढ़ाने के लिए 2,000 शिक्षक थे. प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग ने 7वीं शताब्दी में यहांजीवन का महत्त्वपूर्ण एक वर्ष एक विद्यार्थी और एक शिक्षक के रूप में व्यतीत किया था. प्रसिद्ध 'बौद्ध सारिपुत्र' का जन्म यहीं पर हुआ था.
विदित हो कि इन देशों ने पहले ही इस योजना को मदद देने पर सहमति जताई थी. वर्ष 2005 में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने सबसे पहले इस संस्थान को पुनर्जीवित करने का विचार दिया था.
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