नेपाल सरकार ने अपने नए संविधान में 21 दिसंबर 2015 को संशोधन करने का फ़ैसला किया है. नेपाल की कैबिनेट ने मधेसियों के आंदोलन को समाप्त करने एवं देश में गतिरोध समाप्त करने के लिए दो मांगों को मानने की भी इच्छा जाहिर की है.
यह दो मांगें हैं, अनुपातिक प्रतिनिधित्व एवं निर्वाचनक्षेत्र परिसीमन, जिनके लिए नेपाल सरकार ने नए संविधान में संशोधन करने का फैसला किया है.
मधेसी आंदोलन
• मधेसी कई मांगों को लेकर अगस्त से आंदोलन कर रहे थे. उनकी मांग थी कि निर्वाचन क्षेत्र भूगोल की बजाय जनसंख्या के आधार पर तय हों.
• सेना और पुलिस प्रहरी में मधेशियों को समानुपाति और समावेशी अधिकार मिले.
• गैर नेपाली महिला से शादी होने पर पूर्ण नागरिकता के लिए 20 वर्ष नेपाल में रहने की अनिवार्य शर्त में संशोधन हो अथवा उसे समाप्त किया जाए.
• संघीय ढांचे के ऊपरी सदन यानी राष्ट्रीय सभा में हर राज्य से 8 सदस्य मनोनीत करने की बजाय जनसंख्या के आधार पर सदस्यों की संख्या तय हो.
• साथ ही उन्हें राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, मुख्यमंत्री, सभा, उप सभा प्रमुख और निकाय सभा प्रमुख जैसे संवैधानिक पदों पर नियुक्ति का अधिकार मिले.
इन सबके अतिरिक्त सबसे बड़ा विवाद नेपाल के नए बने राज्यों को लेकर था. आरोप है कि नेपाल में 7 नए राज्यों का बंटवारा ऐसे किया गया है जिसकी वजह से मधेसी समुदाय का राजनीतिक प्रतिनिधित्व अपने आप कम हो जाएगा. इन्हीं मुद्दों को लेकर नेपाल में मधेसी आंदोलन कर रहे हैं.
नेपाल सरकार ने जिन दो मांगों को मानने का फैसला किया है उसमें आनुपातिक राजनीतिक प्रतिनिधित्व और निर्वाचन क्षेत्र के फिर से सीमांकन की मांग शामिल है. नेपाल की जनसंख्या 2 करोड़ 60 लाख के करीब है जिसमें 52 लाख मधेसी हैं.
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