पश्मीना शॉलों के लिए जीआई रजिस्ट्री जम्मू व कश्मीर सरकार ने आरंभ की

Aug 6, 2013, 14:01 IST

जम्मू व कश्मीर सरकार ने लोकप्रिय पश्मीना शॉलों के लिए जीआई रजिस्ट्री 5 अगस्त 2013 से आरंभ की.

जम्मू और कश्मीर सरकार ने 05 अगस्त 2013 को राज्य की सर्वाधिक मांग की वस्तुओं में से एक पश्मीना शॉलों के लिए भौगोलिक उपदर्शन रजिस्ट्री (जीआई रजिस्ट्री, Geographical Indication Registry, GI Registry) आरंभ की. राज्य के मुख्यमंत्री ने इसके साथ-साथ पश्मीना शॉलों के लिए एक परीक्षण एवं गुणवत्ता प्रमाणन केंद्र का भी उद्घाटन किया.

रजिस्ट्री आरंभ होने के साथ हाथ से बुने सभी पश्मीना शॉलों पर जीआई का लेबल लगा होगा जो कि इस बात का प्रमाण होगा कि लेबल लगी शॉलों में प्रयुक्त वस्त्र, धागे की मजबूती, कताई की प्रक्रिया और बुनने की तकनीक निर्धारित मानक निर्देशों के अनूरूप है.

साथ ही, इन शॉलों पर अब कश्मीर पश्मीना मार्क भी लगा होगा जो कि उत्पादनकर्ता की पहचान तथा शॉल की गुणवत्ता का विवरण मौजूद होगा. इस मार्क पर एक संख्या भी मौजूद होगी जिसके माध्यम से संबंधित कंपनी की वेबसाइट पर उस शॉल से जुड़ी सभी आवश्यक जानकारिया मौजूद होंगी.

क्यों आवश्यकता पड़ी?

पश्मीना शॉलें उत्तरी भारत, नेपाल तथा पाकिस्तान के हिमालय के उच्च स्थलों पर पाई जाने वाली पश्मीना नामक बकरियों के बालों बनाई जाती हैं. पश्मीना शॉलें इन इलाकों में इनके कारीगरों द्वारा ऊन निकाले जाने से लेकर कताई व बुनाई व कढ़ाई तक सभी तरह पूर्ण करके तैयार की जाती है. पूरे भारत के साथ-साथ विदेशों में भी पश्मीना शॉलों की इनके गर्माहट के कारण भारी मांग है और ये शॉले अन्य शॉलों की अपेक्षा महँगी बिकती हैं. इनकी मांग के चलते बहुत से नकली पश्मीना शॉलें भी देश के दूसरे हिस्सों में बनने लगीं जिन्हें रोकने तथा असली पश्मीना शॉलों की पहचान व मानकीकरण हेतु जीआई रजिस्ट्री आरंभ की गई.

भौगोलिक उपदर्शन (Geographical Indication)

आमतौर पर जीआई के नाम से विख्यात भौगोलिक उपदर्शन एक प्रकार का नाम या प्रतीक है जिसे किसी भौगोलिक स्थल विशेष से संबंधित होती हैं. किसी भी वस्तु के लिए जीआई उसकी निश्चित गुणवत्ता, पारंपरिकता, निर्माण प्रक्रिया, विशिष्ट पहचान तथा स्थान विशेष की पर उत्पत्ति का प्रतीक होता है.

स्वस्थ व्यापार प्रतिस्पर्धा को अपनाने तथा किसी लोकप्रिय वस्तु के नकली संसकरणों पर रोक लगाने हेतु सर्वप्रथम फ्रांस में बीसवीं शताब्दी में आरंभ किया गया था. इसके पश्चात यह काफी समय तक पूरे यूरोप में लोकप्रिय रहा. जीआई को लेकर पहला अंतरराष्ट्रीय प्रयास 1883 में पेरिस कन्वेंशन के दौरान किया गया. इसके बाद कई और समझौते व विवाद होते रहे लेकिन सर्वमान्य विकास 1994 में हुआ जबकि डब्ल्यूटीओ एग्रीमेंट ऑन ट्रेड रिलेटेड आस्पेस्कट्स ऑफ इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स (WTO Agreement on Trade-Related Aspects of Intellectual Property Rights, TRIPS) पर सहमित बनीं. 10 मई 2012 तक ट्रिप्स को लेकर विश्व व्यापार संगठन के सभी 155 देशों में एक दूसरे के जीआई के वस्तुओं को लेकर सर्वसम्मति थी.

राज्यवार जीआई सूची

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