गुजरात उच्च न्यायालय ने 25 सितंबर 2015 को स्पष्ट किया कि बाल विवाह अधिनियम (पीसीएमए) 2006 मुस्लिमों पर भी लागू होगा और अधिनियम मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के कानूनों पर भी प्रभावी होगा. यह फैसला सत्तारूढ़ न्यायमूर्ति जेबी पर्दीवाला की पीठ ने किया.
बाल विवाह अधिनियम एक विशेष अधिनियम है, जो मुस्लिम पर्सनल लॉ, हिंदू विवाह अधिनियम या किसी भी पर्सनल लॉ के प्रावधान इसके अन्दर समाहित हैं. न्यायमूर्ति जेबी पर्दीवाला ने स्पष्ट किया कि सोलह साल की उम्र किसी भी लड़की की शादी की उम्र नहीं होती.
एक 17 वर्षीय मुस्लिम लड़की के मामले की सुनवाई के दौरान न्यायालय ने यह फैसला दिया, उसकी शादी उसकी उम्र से 12 साल बड़े युनुश शेख के साथ कर दी गयी थी. शेख भाग गया और उसने खुद को कानून से बचाने के लिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की दलील दी.
उच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ता की इस दलील को खारिज कर दिया और बाल विवाह अधिनियम के प्रावधानों के तहत मामले की जांच के लिए पुलिस को आदेश दिया.
शेख के विरुद्ध भारतीय दंड संहिता की धारा 363 (अपहरण के लिए सजा) (उसकी शादी के लिए मजबूर करने के लिए अपहरण, अपहरण या उत्प्रेरण औरत) की धारा 366 के तहत प्राथमिकी की गयी. दर्ज प्राथमिकी को निष्प्रभावी करने के लिए शेख द्वारा दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 482 के तहत याचिका दायर की गयी.
उस (शेख) पर धारा 18 के तहत यौन अपराध व बच्चे की रोकथाम अपराध अधिनियम, 2012 के तहत भी आरोप था.
बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006
बाल विवाह अधिनियम 2006 बाल विवाह निषेध, उससे जुड़े आनुषंगिक मामलों और इस तरह की घटनों को और अधिक प्रभावी बनाता है. यह जम्मू-कश्मीर राज्य को छोड़कर पूरे देश में लागू है.
यह अधिनियम बाल विवाह निरोधक अधिनियम, 1929 को निरस्त करते हुए उसका स्थान लेगा. अधिनियम के अनुसार, लड़कों के लिए शादी की उम्र 21 और लड़कियों के लिए 18 है. इससे कम उम्र में शादी बाल विवाह माना जाएगा, जो एक गैर-कानूनी अपराध है और कानून के तहत दंडनीय है.
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