भारतीय रिज़र्व बैंक ने 9 जनवरी 2014 को प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के नियमों में ढील दे दी. यह निर्णय विदेशी निवेशकों को निकासी का विकल्प देने के लिए लिया गया. निवेशक अपनी ईक्विटी की धारिता या कर्ज बेचकर अपने निवेश निकाल सकते हैं.
भारत में उच्चतर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के अंतर्वाह को सुविधाजनक बनाने के लिए इस छूट की आशा की जा रही थी. अप्रैल 2013 से अक्तूबर 2013 के बीच भारत में एफडीआई की आवक में 15 प्रतिशत की गिरावट आई है.
विदेशी निवेशकों को निकासी का विकल्प इस शर्त पर दिया गया है कि एफडीआई में बिना किसी अश्योर्ड रिटर्न के न्यूनतम लॉक-इन-पीरियड रहेगा. रक्षा और निर्माण क्षेत्र के लिए लॉक-इन-पीरियड तीन वर्ष रखा गया है, जबकि अन्य सभी क्षेत्रों के लिए यह न्यूनतम एक वर्ष होगा.
किसी सूचीबद्ध कंपनी के लिए अनिवासी निवेशक शेयर बाजारों में प्रचलित बाजार-मूल्य पर निकासी कर सकता है. गैर-सूचीबद्ध कंपनी के मामले में निवेशक इक्विटी पर रिटर्न के आधार पर निकाले गए मूल्य से अनधिक मूल्य पर इक्विटी शेयर्स से निकासी कर सकता है.

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