वर्तमान संदर्भों में भारत की शिक्षा प्रणाली अपने निर्धारित उद्देश्यों से काफी दूर है और इस बात का प्रमाण है पढ़े-लिखे नागरिकों की संख्या में वृद्धि के बावजूद नैतिक व्यवहार का गिरता स्तर. ऐसी शिक्षा लोगों के व्यवहार के स्तर को बेहतर करने के बजाए समाज के लिए नई चुनौतियां खड़ी कर रही है. अब समय आ गया है कि हम इन परिस्थितियों पर काबू पाएं और इसके लिए सभी हितधारकों का संयुक्त प्रयास आवश्यक है.
यह टिप्पणी है सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश बी एस चौहान तथा फकीर मोहम्मह इब्राहिम कलीफुल्ला की पीठ की. खण्डपीठ यह टिप्पणी मध्य प्रदेश के महर्षि योगी वैदिक विश्वविद्यालय के एक मामले में 3 जुलाई 2013 को निर्णय सुनाते हुए कही.
सर्वोच्च न्यायालय की खण्डपीठ ने भारत में साक्षरता दर के आकड़ों के संदर्भ में कहा कि स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारत में साक्षरता दर मात्र 12 फीसदी थी जो कि वर्ष 2011 की जनगणना के दौरान बढ़कर 74.04 फीसदी हो चुकी थी. कोर्ट ने फैसले में कहां कि ऐसी उपलब्धि होने के बावजूद भारतीय नागरिकों में मानवीय मूल्यों को लेकर उन्नति नहीं हुई.
खण्डपीठ ने पुराने समय की शिक्षा का उल्लेख करते हुए कहा कि पहले की शिक्षा का स्तर आज की तुलना में कही नहीं था लेकिन उस समय मानवीय तथा सामाजिक मूल्यों को महत्व दिया जाता था. लेकिन आज के संदर्भ में उच्च शिक्षा स्तर होने के बावजूद शिक्षा अपने उद्देश्यों से कोसों दूर है.
सर्वोच्च न्यायालय की खण्डपीठ ने चेताया कि उद्देश्य को प्राप्त करने में विफल भारतीय शिक्षा प्रणाली को में अविलंब सुधार की आवश्यकता है और इसके लिए सामूहिक एवं समग्र रूप से प्रयास करने होंगे. इसमें शैक्षिक संस्थाओं, शिक्षकों, संरक्षकों और छात्रों के साथ-साथ संपूर्ण सामाजिक व्यवस्था को मिलकर प्रयास करने चाहिए जो कि सुव्यवस्थित समाज के लिए अति आवश्यक हो चुका है.
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