प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने 9 सितम्बर 2015 को विधि आयोग की 158वीं रिपोर्ट की अनुशंसा के अनुसार राज्यों को ‘बोतलबंद शराब’ पर नियंत्रण का अधिकार हस्तांतरित करने के लिए उद्योगों की पहली अनुसूची (विकास और नियंत्रण) अधिनियम 1951 में संशोधन की मंजूरी प्रदान की.
इस संशोधन के बाद, उद्योगों की पहली अनुसूची (विकास और नियंत्रण) अधिनियम 1951 के वर्तमान '26 खमीर उद्योग' शीर्षक को बदल कर '26 खमीर उद्योग (बोतलबंद शराब के अलावा)' शीर्षक कर दिया जाएगा. इस संबंध में एक विधेयक संसद में पेश किया जाएगा.
इस संशोधन के साथ ही शराब-बोतल बंद शराब और औद्योगिक शराब पर केन्द्र और राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र के बारे में लंबे समय से चला आ रहा भ्रम समाप्तऔ हो गया है. इस संशोधन से संघ और राज्यों के बीच संतुलन पैदा होगा. इससे कानून और शराब के दुरूपयोग की संभावना समाप्त होगी. इससे यह सुनिश्चित हो सकेगा कि पीने योग्य शराब बनाने में लगे उद्योग सभी मामलों में पूरी तरह से राज्यों के नियंत्रण में होंगे. इससे पीने योग्य शराब बनाने में राज्यों की जवाबदेही तय हो सकेगी.
पृष्ठभूमि
भारत के संविधान की सातवीं अनुसूची में राज्य और केंद्र के बीच शक्तियों के बटवारे का उल्लेख किया गया है. इसके तहत तीन सूची- संघ, राज्य और समवर्ती सूची बनाई गई है. इस सूचि में उन विषयों को शामिल किया गया है जिसमे केंद्र सरकार, राज्य सरकार और केंद्र तथा राज्य सरकार दोनों क़ानून बना सकती हैं. इस सोची के अनुसार पेय शराब पर शुल्क लगाने का अधिकार राज्य सरकार को है जबकि चिकत्सकीय क्षेत्र में उपयोग की जाने वाली शराब पर कर लगाने का अधिकार केंद्र सरकार को है.
परन्तु उद्योगों की पहली अनुसूची (विकास और नियंत्रण) अधिनियम 1951 के अंतर्गत समूर्ण शराब उद्योग केंद्र सरकार के दायरे में आते हैं.
इस प्रकार यह दोनों एक दूसरे की विपरीत स्थिति को जन्म देते थे.
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