न्यायाधीश न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) एपी शाह की अध्यक्षता में विधि आयोग ने 3 नवंबर 2014 को 73 और पुराने कानूनों को निरस्त करने की सिफारिश की. इसके साथ ही इस प्रकार के कानूनों की संख्या बढ़कर 258 हो गई है.
विधि आयोग ने अपनी तीसरी अंतरिम रिपोर्ट केंद्रीय कानून मंत्रालय के समक्ष पेश की. पैनल ने ऐसे 258 कानूनों को निरस्त करने की सिफारिश की जो अपनी प्रासंगितकता खोने के बावजूद विधि की किताबों में अब भी बने हुए हैं.
इसमें वह कानून भी शामिल है जो उन लोगों के लिए सजा का प्रावधान करता है जो कि ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा लड़ी जाने वाली लड़ाईयों का हिस्सा बनने से लोगों को रोकते थे. निरसन के लिए सिफारिश किए गए कानूनों में से एक है आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 1938. ये द्वितीय विश्व युद्ध के शुरु होने से कुछ ही समय पहले लागू किया गया था.
इससे पहले, विधि आयोग ने अपनी पहली अंतरिम रिपोर्ट सितंबर 2014 में पेश की थी. आयोग ने पुराने 72 अधिनियमों के निरसन की सिफारिश की थी.
अपनी दूसरी अंतरिम रिपोर्ट जो कि अक्टूबर 2014 में पेश की, में पैनल ने 113 और कानूनों को जिसमें द्वितीय विश्व युद्ध युग के 11 अध्यादेश भी थे, के निरसन का सुझाव दिया था.
विधि आयोग की ये सिफारिशें अवांछित कानूनों को हटाने में सरकार की मदद करने के लिए चल रहे अभियान का हिस्सा है.
केंद्रीय विधि मंत्रालय ने विधि आयोग को ऐसे कानूनों को हटाने की सिफारिश करने का जिम्मा सौंपा था जिन्हें निरस्त किया जा सकता है. वर्ष 2001 के बाद यह पहली बार है जब कानून मंत्रालय ने इस प्रकार का कोई कदम उठाया है.
पुराने कानूनों के हटाने के लिए केंद्रीय सरकार ने अगस्त 2014 में कदम उठाए थे, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वैसे पुराने कानूनों को हटाने के लिए एक अलग आयोग का गठन किया था जो भ्रम पैदा कर शासन में बाधा पहुंचा रहे थे.
यह समिति 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार द्वारा नियुक्त प्रशासनिक कानूनों की समीक्षा संबंधी समिति द्वारा निरसन के लिए सिफारिश की गई सभी अधिनियमों की जांच करेंगे. वाजपेयी सरकार द्वारा नियुक्त समिति द्वारा निरसन के लिए सिफारिश की गईं कुल 1382 अधिनियमों में से अब तक 415 को निरस्त किया जा चुका है.
जुलाई 2014 के बजट सत्र में केंद्र सरकार ने 32 अधिनियमों के निरसन के लिए निरसन एवं संशोधन विधेयक, 2014 पेश किया था.
इसमें अपनी उपयोगिता खो चुके कुछ संशोधित अधिनियमों और मूल अधिनियमों को कानून की किताबों में से हटाने का प्रयास किया गया है.
विधेयक के जरिए संशोधन अधिनियम जिन्हें निरस्त करने की मांग की जा रही है, में शामिल है, रिप्रजेंटेशन ऑफ द पिपुल एक्ट, 1951, विशेष विवाह अधिनियम, 1954, भारतीय तलाक अधिनियम, 1869, आनंद विवाह अधिनियम, 1909 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872.
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