सर्वोच्च न्यायालय ने हाथियों की आबादी नियंत्रित करने के लिए पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा शुरू किए जाने वाले बंध्याकरण अभियान पर 2 सितंबर 2014 को रोक लगाई.
सर्वोच्च न्यायालय ने यह रोक पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा हाथियों को रेलगाड़ियों द्वारा टक्कर मारे जाने की घटनाओं के परिप्रेक्ष्य में उनकी आबादी नियंत्रित करने हेतु शुरू किए जाने वाले बंध्याकरण अभियान पर लगाई.
न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा और विक्रमजीत सेन की पीठ ने प्रतिगामी प्रस्ताव में कहा कि, “पश्चिम बंगाल में रेल पटरियों पर दुर्घटनाओं से बचने के लिए हाथियों के प्रजनन को रोकने और इसके परिणामस्वरूप उनकी संख्या को कम करने के लिए गर्भ निरोधक पेश करने का फैसला किया है.
न्यायाधीश दीपक मिश्रा एवं न्यायाधीश जस्ती चेलमेश्वर की खंडपीठ ने कहा कि, “यदि इस खबर में थोड़ी भी सच्चाई है तो निश्चित तौर पर यह निंदनीय है और इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती . न्यायालय ने कहा कि हम हाथियों की आबादी नियंत्रित करने के लिए बंध्याकरण करने के पश्चिम बंगाल सरकार के फैसले पर रोक लगाते हैं”.
पृष्ठभूमि
न्यायालय का यह आदेश उस वक्त आया जब हाथियों को रेलगाडियों द्वारा टक्कर मारे जाने की घटनाओं के परिप्रेक्ष्य में रेलगाडियों के परिचालन के नियमन को लेकर दायर जनहित याचिका की सुनवाई चल रही थी.
झारखंड सरकार की ओर से अधिवक्ता टी.के. सिंह ने पश्चिम बंगाल सरकार के उक्त निर्णय का हवाला दिया जिसके बाद शीर्ष अदालत ने प्रस्तावित हाथी बंध्याकरण अभियान पर रोक लगाई थी.
एक अन्य वकील अपर्णा भट ने पालतू हाथियों की संख्या में भारी कमी पर एक ताजा याचिका का उल्लेख किया है जिसमें आरोप लगाया कि हाथियों का अवैध रूप से कारोबार किया जा रहा था.
बेंच ने रेल पटरियों पर हाथियों के संरक्षण के लिए शक्ति प्रसाद नायक की याचिका के साथ इस याचिका को भी 23 सितंबर को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया.
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