जल प्रदूषण

जल प्रदूषण जल निकायों के प्रदूषित (जैसे झीलों, नदियों, समुद्रों, जलवाही स्तर और भूजल) हो जाने को कहते हैं | पर्यावरण की दुर्दशा का ये रूप तब होता है जब प्रदूषकों को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से हानिकारक यौगिकों का शोधन किए बिना जल निकायों में छोड़ दिया जाता है |

Jagran Josh
Nov 17, 2015, 15:10 IST

जल प्रदूषण जल निकायों के  प्रदूषित  (जैसे झीलों, नदियों, समुद्रों, जलवाही स्तर और भूजल) होने को  कहते  हैं | पर्यावरण की दुर्दशा का ये रूप तब होता है जब प्रदूषकों को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से बिना शोधन किए हानिकारक यौगिकों को जल निकायों में छोड़ दिया जाता है |

जल प्रदूषण के प्रकार:

प्रदूषण के प्रकारों का मुख्य केंद्र  : जब प्रदूषण के स्रोतों का आसानी से पता लग जाता है क्यूंकि इसका एक निश्चित स्रोत व स्थान होता है  तथा जब ये जल में मिल जाता है उसे केंद्र स्रोत कहा जाता है उदाहरण के लिए  नगर निगम और औद्योगिक निर्वहन की नालियाँ | जब प्रदूषण के  स्रोतों का  आसानी से पता नहीं लग पाता है जैसे की  कृषि अपवाह, अम्ल वर्षा  आदि, प्रदूषण के आंतरिक स्रोत है |

जल प्रदूषण के कारण:

आम जल प्रदूषण के कई वर्ग हैं। ये बीमारी पैदा करने के घटक हैं (रोगजनक )जिसमे  बैक्टीरिया, वायरस, प्रोटोजोआ तथा परजीवी कीड़े शामिल हैं, जो जल में घरेलू सीवेज और अशोधित मानव व पशुओं के अपशिष्ट द्वारा प्रवेश कर जाते हैं | मानव अपशिष्ट में कोलिफोर्म बैक्टीरिया नामक हानिकारक बैक्टीरिया की काफी संख्या होती है जैसे इशरीकिया कोली और  स्ट्रेप्टोकोकस फ़ैकलिस । ये  जीवाणु सामान्य रूप से मानव की बड़ी आंत में बढ़ते हैं जहां ये  कुछ खाना पचाने  के लिए और विटामिन K  के उत्पादन के लिए जिम्मेदार होते हैं । जल में बड़ी मात्रा में मानव अपशिष्ट के मिल जाने से इन जीवाणुओं की संख्या बढ़ जाती है जो जठरांत्र रोगों का कारण बनती है । जल प्रदूषण की एक अन्य श्रेणी में  ऑक्सीजन से क्षीण अपशिष्ट आता है । इसे जैविक अपशिष्ट कहा जाता है जिसे ऑक्सीज़नजीवी बैक्टीरिया से गलाया जाता है | जल में मौजूद ऑक्सीज़न को बड़ी संख्या में बैक्टीरिया, अपशिष्ट को गलाने के लिए प्रयोग करते हैं | इस प्रक्रिया में  पानी की गुणवत्ता में कमी आ जाती है । ऑक्सीजन की वह मात्रा जिससे जैविक तत्व की एक निश्चित मात्रा को गलाया जाये उसे जैविक ऑक्सीजन मांग (BOD ) कहा जाता है |  पानी में बीओडी की मात्रा प्रदूषण के स्तर का सूचक होती  है।

प्रदूषण के एक तृतीय  वर्ग में  अकार्बनिक संयंत्र पोषक तत्व आते है। ये पानी में घुलनशील नाइट्रेट व फॉस्फेट  हैं जो शैवाल व अन्य जलीय पौधों की अत्यधिक वृद्धि का कारण होते है | पोषक तत्वों के मिलने की वजह से पैदा हुए  अत्यधिक शैवाल और जलीय पौधों की प्रक्रिया को सुपोषण कहते हैं | ये जल की उपयोगिता में पानी की सेवन की नालियों में अवरुद्ध उत्पन्न कर के, जल के स्वाद व गंध में बदलाव करते हैं और कार्बनिक तत्वों के बनने का कारण बनती हैं |

जबकि अतिरिक्त उर्वरक सुपोषणी   पैदा करते हैं,  कीटनाशकों के कारण जैव संचयन  व जैव आवर्धन होता है ।  जो कीटनाशक जल में घुल जाते हैं  वे खाद्य श्रृंखला में समाविष्ट हो जाते हैं | इसके बाद इन्हें पादपप्लवक और जलीय पौधों द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है । इन पौधों को शाकाहारी मछलियों द्वारा खाया जाता है जिन्हें  बाद में मांसाहारी मछलियों खाती हैं  और अंत में इन्हें पक्षी खाते हैं | खाद्य श्रृंखला की प्रत्येक कड़ी में जो रसायन शरीर से बाहर नहीं निकलते वे तेज़ी से संचित होते हैं व बढ़ते हैं जिसके परिणामस्वरूप हानिकारक पदार्थों में जैव आवर्धन होता है |

ऐसे कीटनाशक जैसे DDT  के उच्च स्तर के संचय के प्रभाव से पक्षी  सामान्य से ज्यादा पतले खोल के अंडे देते हैं । इसके परिणामस्वरूप अंडे समय से पहले टूट जाते हैं व चूजे (मुर्गी का बच्चा ) अंदर ही मर जाते हैं |

जल प्रदूषण के चौथे वर्ग में जलीय घुलनशील अकार्बनिक रसायन आते हैं,जिसमे अम्ल, लवण, व विषाक्त धातुओं के यौगिक पारा और सीसा होते हैं | इन रसायनों के उच्च स्तर होने से पानी पीने योग्य व मछ्ली तथा अन्य जलीय जीवन के योग्य नहीं रहता, फसलों की पैदावार कम हो जाती है, और इस पानी के उपयोग से उपकरणों में तेज़ी से जंग लग सकता है |

जल प्रदूषण का एक अन्य कारण विभिन्न प्रकार के कार्बनिक रसायन हैं जिसमें  तेल, पेट्रोल, प्लास्टिक, कीटनाशक, सफाई करने वाले घोल,डिटर्जेंट और अन्य कई रसायन शामिल हैं | ये जलीय जीवन और मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकते हैं ।

जल प्रदूषण के अन्य वर्ग में तलछट में  रुके हुए पदार्थ आते हैं । ये मिट्टी के अघुलनशील कण व अन्य ठोस होते है जो जल में एक ही स्थान पर ठहर जाते हैं ।  यह तब होता है जब  भूमि से मिट्टी बह जाती है ।जल में रुके हुए काफी  मात्रा में   मिट्टी के कण सूरज की  रोशनी को पहुँचने में रुकावट पैदा करते हैं । यह जलीय पौधों  के संश्लेषण को कम कर देते हैं तथा जलीय पौधों और शैवाल जलीय निकायों के पारिस्थितिक संतुलन में खलल डालते हैं |

पानी में घुलनशील रेडियोधर्मी आइसोटोप  जल प्रदूषण का एक अन्य स्रोत हैं । ये  विभिन्न ऊतकों और अंगों में संकेंद्रित होते हैं जो खाद्य क्षृंखला  और खाद्य जाल के माध्यम से गुजरती हैं। ऐसे आइसोटोप द्वारा उत्सर्जित विकिरण जन्म दोष, कैंसर और आनुवंशिक क्षति का कारण बन सकते हैं ।

बिजली संयंत्रों द्वारा छोड़ा गया गरम पानी और उद्योगों द्वारा जल को  ठंडा करने के लिए बड़ी मात्रा में पानी का उपयोग स्थानीय जल स्रोतों के तापमान को बढ़ा देती है | थर्मल प्रदूषण तब होता है जब उद्योग जल स्रोतों में गरम पानी छोड़ते हैं |

सड़कों  और पार्किंग में खड़े वाहनों से बहा तेल सतह के पानी में मिल जाता है जिससे भूजल प्रदूषण होता है | भूमिगत टैंक से रिसाव भी जल प्रदूषण का एक अन्य स्रोत है। समुद्रों में परिवहन टैंकरों से दुर्घटनावश बहे तेल महत्वपूर्ण पर्यावरणीय क्षति का कारण बन रहे हैं ।

दूषित भूजल से आर्सेनिक विषाक्तता के गंभीर मामले पश्चिम बंगाल में सामने आए हैं  जिसे आज तक की भूजल प्रदूषण की सबसे खराब स्थिति माना जाता है ।  आर्सेनिक विषाक्तता  दो से पाँच साल तक आर्सेनिन युक्त पानी की मात्रा पीने से व पानी में आर्सेनिक के घुले होने से विकसित होती है |

शुरू में त्वचा काली ( काला  कैंसर फैलना ) होना शुरू होती है जिसेसे बाद में छाती , पीठ और हाथ-पैर, की त्वचा पर काले धब्बे दिखना शुरू हो जाते हैं | बाद की अवस्था में त्वचा का काला कैंसर   हो जाता है और शरीर पर काले व सफ़ेद धब्बे दिखना शुरू हो जाते हैं| आर्सेनिक विषाक्तता  के मध्य चरण में त्वचा के कुछ भाग कठिन और रेशेदार हो जाते हैं । हाथ की त्वचा पर गांठों या पैर के तलवों पर पिंड के साथ  शुष्क त्वचा गंभीर विषाक्तता का संकेत करती है ।इससे  गेंगरीन और कैंसर जैसी बीमारियाँ हो जाती हैं | यह अवसाद और कैंसर के गठन के लिए जिम्मेदार  हो सकते हैं। आर्सेनिक विषाक्तता अन्य जटिलताओं को भी अपने साथ लाती हैं जैसे ऐसी यकृत और प्लीहा वृद्धि, जिगर का सिरोसिस,  मधुमेह, गण्डमाला और त्वचा का  कैंसर /

जल प्रदूषण को रोकने के लिए उपाय:

सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता बचाव की है,  उपचार संयंत्रों की स्थापना करना और अपशिष्ट पदार्थों का निदान करना, इन सबके द्वारा पानी में प्रदूषण को घटाया जा सकता है | उपचारित जल को पुनः जहां भी संभव हो, बागवानी के लिए  उपयोग किया जा सकता है | कुछ साल पहले थरमेक्स  द्वारा  रूट जोन  नामक नई तकनीक का विकास हुआ| इस प्रणाली के माध्यम से दूषित पानी को   विशेष रूप से बनाए गए गन्ने की खोई (रीड बेड्स) के  जड़  से प्रवाह किया जाता है । गन्ने की खोई (रीड बेड्स) जो कि विशेषकर  आर्द्रभूमि पौधे हैं, इनमे आसपास की वायु से रंध्र उद्घाटन से  ऑक्सीजन को अवशोषित करने की क्षमता होती है | ऑक्सीजन ईख के बिस्तर के छिद्रयुक्त तने से खोखली जड़ों में पहुँच जाती है जहां ये जड़ कटिबन्ध क्षेत्र में प्रवेश करती है और कई जीवाणुओं और कवक के विकास के लिए उपयुक्त परिस्थितियाँ बनाते हैं |  ये  सूक्ष्म जीव  अपशिष्ट जल में अशुद्धियों को ओक्सिडाइज़ कर देता है ,जिससे अंत में जो पानी बाहर आए वे साफ हो |

Jagran Josh
Jagran Josh

Education Desk

    Your career begins here! At Jagranjosh.com, our vision is to enable the youth to make informed life decisions, and our mission is to create credible and actionable content that answers questions or solves problems for India’s share of Next Billion Users. As India’s leading education and career guidance platform, we connect the dots for students, guiding them through every step of their journey—from excelling in school exams, board exams, and entrance tests to securing competitive jobs and building essential skills for their profession. With our deep expertise in exams and education, along with accurate information, expert insights, and interactive tools, we bridge the gap between education and opportunity, empowering students to confidently achieve their goals.

    ... Read More

    आप जागरण जोश पर भारत, विश्व समाचार, खेल के साथ-साथ प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए समसामयिक सामान्य ज्ञान, सूची, जीके हिंदी और क्विज प्राप्त कर सकते है. आप यहां से कर्रेंट अफेयर्स ऐप डाउनलोड करें.

    Trending

    Latest Education News