आर्थिक समीक्षा (2009-10)
" आर्थिक समीक्षा ने अगले चार वर्र्षों में देश के सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर दोहरे अंक में होने का अनुमान जताया है। साथ ही इसमें आर्थिक मंदी के दौर से देश के निकल आने की बात भी कही गई। "
वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी द्वारा वर्ष 2009-10 की पेश की गई आर्थिक समीक्षा में दर्शाया गया है कि किस तरह से देश वैश्विक आर्थिक मंदी के दौर से बाहर निकल आया है। केेंद्रीय सांख्यिकीय संगठन के अग्रिम अनुमानों के अनुसार 2009-10 में सकल घरेलू उत्पाद में 7.2 फीसदी वृद्धि की संभावना है। आर्थिक मजबूती को देखते हुए अब मंदी के स्थान पर सुधारों की मांग तेज हो गई है।
भारत की होगी तीव्र आर्थिक तरक्की
समीक्षा में सबसे महत्वपूर्ण बात यह कही गई है कि अगले 4 वर्र्षों में देश के सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर दोहरे अंक में रह सकती है। समीक्षा के अनुसार 2013-14 तक भारत दुनिया की सबसे तेज गति से बढऩे वाली अर्थव्यवस्था बन सकती है। लेकिन ऐसा होना तब ही संभव है जब देश में मूलभूत सुविधाओं में सुधार किया जाये और प्रशासनिक स्तर पर भ्रष्टाचार को समाप्त किया जाये। समीक्षा में यह भी कहा गया है कि एक साल बाद अर्थव्यवस्था 9 फीसदी के आंकड़े को छू सकती है।
विदेशी व्यापार में सुधार
आर्थिक समीक्षा में कहा गया कि वैश्विक मंदी की अवस्था को देखते हुए 2009-10 के लिए सरकार ने कोई निर्यात लक्ष्य नहीं निर्धारित किया था। समीक्षा के अनुसार वैश्विक मंदी की वजह से अक्टूबर 2008 के बाद लगातार 13 माह की ऋणात्मक वृद्धि के बाद नवंबर 2009 में निर्यातों में 18.2 फीसदी की धनात्मक वृद्धि दर्ज की गई।
औद्योगिक उत्पादन की दशा सुधरी
आर्थिक मंदी के कारण औद्योगिक उत्पादन सूचकांक में गिरावट का सिलसिला जो लंबे समय तक जारी था, वह 2009-10 के शुरु में ही पलट गया था। समीक्षा के अनुसार 2008-09 के उत्तराद्र्ध में 0.6 फीसदी के निम्न स्तर पर पहुँचने के बाद 2009-10 में पहली तिमाही में 3.8 फीसदी व दूसरी तिमाही में 9.1 फीसदी की वृद्धि औद्योगिक उत्पादन सूचकांक में दर्ज की गई।
सब्सिडी को नियंत्रित करने की जरूरत
आर्थिक समीक्षा में सुझाया गया है कि उर्वरक, खाद्यान्न, डीजल, केरोसिन पर सीधे सब्सिडी देने की बजाय लक्षित समूह को सीधे सब्सिडी दी जाये। सकल घरेलू उत्पाद में सब्सिडी की हिस्सेदारी 2003-04 में जहां 1.6 फीसदी थी, वहीं 2008-09 में बढ़कर यह 2.2 फीसदी हो गई है।
समीक्षा में कहा गया है कि कीमतों को नियंत्रण मुक्त करने से अर्थव्यवस्था में जरूरी गतिविधियों के लिए अधिक संसाधन उपलब्ध हो सकते हैं। इससे गरीबी उन्मूलन में सहायता मिल सकती है।
विदेशी मुद्रा कोष व विदेशी ऋण
आर्थिक समीक्षा के अनुसार वित्तीय वर्ष 2009-10 में विदेशी मुद्रा के आरक्षित कोष मार्च 2009 में 252 अरब डॉलर से 31.5 अरब डॉलर बढ़कर दिसंबर 2009 के अंत में 283.5 अरब डॉलर हो गये। सितंबर 2009 के अंत में भारत पर कुल विदेशी ऋण 242.82 अरब डॉलर था, जो जून 2009 के अंत में 229.78 अरब डॉलर था।
आर्थिक समीक्षा : मुख्य बिंदु
- 2013-14 तक भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया की सबसे तेजी से बढऩे वाली अर्थव्यवस्था बन सकती है।
- वर्ष 2010-11 के लिए आर्थिक वृद्धि दर 7.2 फीसदी रहने का अनुमान लगाया गया है।
- अप्रत्यक्ष करों की राजस्व में हिस्सेदारी घटी।
- राजकोषीय घाटा, सकल घरेलू उत्पाद का 6.8 फीसदी रहने का अनुमान है।
- राजस्व घाटा 4.8 फीसदी रहने का अनुमान।
- समीक्षा का सुझाव गरीबों को खाद्य कूपनों के द्वारा मदद मिले।
- खाद्यान्न, उर्वरक और डीजल के दाम नियंत्रण मुक्त हों।
- कृषि क्षेत्र में स्थिति निराशाजनक।
- व्यय पर नियंत्रण करके सरकार राजकोषीय घाटे पर अंकुश लगा सकती है।
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