गणतंत्र दिवस कविता 2025 हिन्दी में: 26 जनवरी के लिए छोटी और लंबी कविताएँ

 गणतंत्र दिवस भारत के गौरव और स्वतंत्रता का प्रतीक है, और इस दिन को मनाने के लिए विशेष कविताएँ बहुत महत्वपूर्ण होती हैं। हमने यहां पर गणतंत्र दिवस के उपलक्ष्य में कुछ बेहतरीन कविताएँ प्रदान की हैं, जो आपके दिल को छूने वाली होंगी। इन कविताओं को पढ़कर आप देश की एकता, स्वाभिमान और वीरता को महसूस कर सकेंगे।

Jan 24, 2025, 16:20 IST
गणतंत्र दिवस कविता 2025: 26 जनवरी के लिए छोटी और लंबी कविताएँ
गणतंत्र दिवस कविता 2025: 26 जनवरी के लिए छोटी और लंबी कविताएँ

गणतंत्र दिवस भारत की स्वतंत्रता, संघर्ष और संविधान की प्रतिष्ठा का प्रतीक है। यह दिन हमें हमारी एकता, अखंडता और लोकतांत्रिक मूल्यों की याद दिलाता है। भारतीय संविधान के तहत हमें जो अधिकार और स्वतंत्रता प्राप्त है, उसकी क़ीमत को समझना और उसका सम्मान करना हम सभी का कर्तव्य है। इस दिन को विशेष रूप से मनाने के लिए देशभर में लोग विभिन्न तरीकों से अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हैं, जिसमें कविता एक अहम माध्यम है।

कविता के माध्यम से हम अपने देश के प्रति अपनी श्रद्धा और सम्मान व्यक्त करते हैं। गणतंत्र दिवस की कविताएँ हमारे राष्ट्र के संघर्ष, उसकी महानता और संस्कृति को दर्शाती हैं। यह हमें यह भी याद दिलाती हैं कि हमें अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए समाज में सकारात्मक बदलाव लाना चाहिए। इन कविताओं के माध्यम से हम एकजुट होकर राष्ट्र की प्रगति और समृद्धि के लिए काम करने का संकल्प लेते हैं। हम उम्मीद करते हैं कि इन कविताओं से आपको प्रेरणा मिलेगी और आप भी अपने देश के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को निभाएंगे।

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गणतंत्र दिवस 2025 के लिए हिन्दी में कविताएँ

गणतंत्र दिवस 2025 के मौके पर, हम कुछ प्रेरणादायक और सुंदर हिन्दी कविताओं के माध्यम से अपने देश के प्रति सम्मान और प्यार व्यक्त कर सकते हैं। ये कविताएँ स्वतंत्रता, देशभक्ति और भारतीय संस्कृति की भावना को उजागर करती हैं। गणतंत्र दिवस पर ऐसी कविताएँ हमें अपनी स्वतंत्रता की क़ीमत और अपने महान स्वतंत्रता सेनानियों के संघर्ष को याद दिलाती हैं।

जगदंबा प्रसाद मिश्र ‘हितैषी' - शहीदों की चिताओं पर

उरूजे कामयाबी पर कभी हिंदोस्ताँ होगा।

रिहा सैयाद के हाथों से अपना आशियाँ होगा॥

चखाएँगे मज़ा बर्बादी-ए-गुलशन का गुलचीं को।

बहार आ जाएगी उस दम जब अपना बाग़बाँ होगा।

ये आए दिन की छेड़ अच्छी नहीं ऐ ख़ंजर-ए-क़ातिल।

पता कब फ़ैसला उनके हमारे दरमियाँ होगा॥

जुदा मत हो मेरे पहलू से ऐ दर्दे वतन हरगिज़।

न जाने बाद मुर्दन मैं कहाँ औ तू कहाँ होगा॥

वतन के आबरू का पास देखें कौन करता है।

सुना है आज मक़तल में हमारा इम्तहाँ होगा॥

शहीदों की चिताओं पर जुड़ेंगे हर बरस मेले।

वतन पर मरनेवालों का यही बाक़ी निशाँ होगा॥

कभी वह दिन भी आएगा जब अपना राज देखेंगे।

जब अपनी ही ज़मीं होगी और अपना आसमाँ होगा॥

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स्नेही -  गयाप्रकाश शुक्ला

वह हृदय नहीं है पत्थर है,

जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं॥

जो जीवित जोश जगा न सका,

उस जीवन में कुछ सार नहीं।

जो चल न सका संसार-संग,

उसका होता संसार नहीं॥

जिसने साहस को छोड़ दिया,

वह पहुंच सकेगा पार नहीं।

जिससे न जाति-उद्धार हुआ,

होगा उसका उद्धार नहीं॥

जो भरा नहीं है भावों से,

बहती जिसमें रस-धार नहीं।

वह हृदय नहीं है पत्थर है,

जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं॥

जिसकी मिट्टी में उगे बढ़े,

पाया जिसमें दाना-पानी।

है माता-पिता बंधु जिसमें,

हम हैं जिसके राजा-रानी॥

जिसने कि खजाने खोले हैं,

नवरत्न दिये हैं लासानी।

जिस पर ज्ञानी भी मरते हैं,

जिस पर है दुनिया दीवानी॥

उस पर है नहीं पसीजा जो,

क्या है वह भू का भार नहीं।

वह हृदय नहीं है पत्थर है,

जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं॥

निश्चित है निस्संशय निश्चित,

है जान एक दिन जाने को।

है काल-दीप जलता हरदम,

जल जाना है परवानों को॥

है लज्जा की यह बात शत्रु—

आये आंखें दिखलाने को।

धिक्कार मर्दुमी को ऐसी,

लानत मर्दाने बाने को॥

सब कुछ है अपने हाथों में,

क्या तोप नहीं तलवार नहीं।

वह हृदय नहीं है पत्थर है,

जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं॥ 

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आज देश की मिट्टी बोल उठी है - शिवमंगल सिंह 'सुमन'

लौह-पदाघातों से मर्दित

हय-गज-तोप-टैंक से खौंदी

रक्तधार से सिंचित पंकिल

युगों-युगों से कुचली रौंदी।

व्याकुल वसुंधरा की काया

नव-निर्माण नयन में छाया।

कण-कण सिहर उठे

अणु-अणु ने सहस्राक्ष अंबर को ताका

शेषनाग फूत्कार उठे

सांसों से निःसृत अग्नि-शलाका।

धुआंधार नभी का वक्षस्थल

उठे बवंडर, आंधी आई,

पदमर्दिता रेणु अकुलाकर

छाती पर, मस्तक पर छाई।

हिले चरण, मतिहरण

आततायी का अंतर थर-थर काँपा

भूसुत जगे तीन डग में ।

बामन ने तीन लोक फिर नापा।

धरा गर्विता हुई सिंधु की छाती डोल उठी है।

आज देश की मिट्टी बोल उठी है।

वीरों का कैसा हो बसंत - सुभद्राकुमारी चौहान द्वारा

वीरों का कैसा हो वसंत?

आ रही हिमाचल से पुकार,

है उदधि गरजता बार-बार,

प्राची, पश्चिम, भू, नभ अपार,

सब पूछ रहे हैं दिग्-दिगंत,

वीरों का कैसा हो वसंत?

फूली सरसों ने दिया रंग,

मधु लेकर आ पहुंचा अनंग,

वधु-वसुधा पुलकित अंग-अंग,

हैं वीर वेश में किंतु कंत,

वीरों का कैसा हो वसंत?

भर रही कोकिला इधर तान,

मारू बाजे पर उधर गान,

है रंग और रण का विधान,

मिलने आये हैं आदि-अंत,

वीरों का कैसा हो वसंत?

गलबांहें हों, या हो कृपाण,

चल-चितवन हो, या धनुष-बाण,

हो रस-विलास या दलित-त्राण,

अब यही समस्या है दुरंत,

वीरों का कैसा हो वसंत?

कह दे अतीत अब मौन त्याग,

लंके, तुझमें क्यों लगी आग?

ऐ कुरुक्षेत्र! अब जाग, जाग,

बतला अपने अनुभव अनंत,

वीरों का कैसा हो वसंत?

हल्दी-घाटी के शिला-खंड,

ऐ दुर्ग! सिंह-गढ़ के प्रचंड,

राणा-ताना का कर घमंड,

दो जगा आज स्मृतियाँ ज्वलंत,

वीरों का कैसा हो वसंत?

भूषण अथवा कवि चंद नहीं,

बिजली भर दे वह छंद नहीं,

है क़लम बँधी, स्वच्छंद नहीं,

फिर हमें बतावे कौन? हंत!

वीरों का कैसा हो वसंत? 

कलम आज उनकी जय बोल -  रामधारी सिंह 'दिनकर' 

कलम आज उनकी जय बोल

कलम, आज उनकी जय बोल,

जला अस्थियाँ बारी-बारी,

चिटकाई जिनमें चिंगारी,

जो चढ़ गये पुण्यवेदी पर,

लिए बिना गर्दन का मोल।

कलम, आज उनकी जय बोल।

हमने लिखा लहू से अपनी,

स्वतंत्रता की कहानी,

अमिट रहेगी युग-युग तक,

ये अमर अमिट निशानी।

जो अगणित लघु दीप हमारे,

तूफानों में एक साथ जले,

आज उनकी भी जय बोल।

कलम, आज उनकी जय बोल।

नहीं मांगते स्नेह मुँह खोल,

जिनका प्रबल वेग बोलता है,

शोणित का प्रवाह बोलता है,

सिंहासन किसका डोलता है,

भू पर किसका सिंहासन डोलता है?

आज उनके त्याग की जय बोल।

कलम, आज उनकी जय बोल।

अगणित वीर हुए बलिदान,

तब हमने पाई आज़ादी,

उनकी ही कुर्बानी से,

मिली हमें ये बरबादी।

आज उनके बलिदानों की,

गाथाओं की जय बोल।

कलम, आज उनकी जय बोल।

धरती रही अभी तक डोल,

सूर्य चन्द्र भूगोल खगोल,

आज उनके दृढ संकल्प की,

अटल प्रतिज्ञा की जय बोल।

कलम, आज उनकी जय बोल।

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Anisha Mishra
Anisha Mishra

Content Writer

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