इस आर्टिकल में हम आपको UP Board कक्षा 10 वीं विज्ञान अध्याय 17; मानव शरीर की संरचना (structure of human body) के 3rd पार्ट का स्टडी नोट्स उपलब्ध करा रहें हैं| यहाँ शोर्ट नोट्स उपलब्ध करने का एक मात्र उद्देश्य छात्रों को पूर्ण रूप से चैप्टर के सभी बिन्दुओं को आसान तरीके से समझाना है| इसलिए इस नोट्स में सभी टॉपिक को बड़े ही सरल तरीके से समझाया गया है और साथ ही साथ सभी टॉपिक के मुख्य बिन्दुओं पर समान रूप से प्रकाश डाला गया है| यहां दिए गए नोट्स यूपी बोर्ड की कक्षा 10 वीं विज्ञान बोर्ड की परीक्षा 2018 और आंतरिक परीक्षा में उपस्थित होने वाले छात्रों के लिए बहुत उपयोगी साबित होंगे। इस लेख में हम जिन टॉपिक को कवर कर रहे हैं वह यहाँ अंकित हैं:
1. मनुष्य में श्वासोच्छवास – क्रियाविधि
2. अन्त: श्वसन
3. नि:श्वसन
4. मनुष्य के ह्रदय की संरचना
5. हृदय की आन्तरिक संरचना
6. मानव ह्रदय की क्रियाविधि
मनुष्य में श्वासोच्छवास – क्रियाविधि (Breathing in Man : Mechanism) :
श्वासोच्छवास क्रियाविधि दो चरणों में पूर्ण होती है। पहली क्रिया जिससे वायु फेफडों में भरती है, अन्त:श्वसन (inspiration) कहलाती है। दूसरी क्रिया जिसके द्वारा वायु फेफडों से बाहर निकलती है, नि:श्वसन (expiration) कहलाती है। ये दोनो क्रियाएँ डायाफ्राम तथा पसलियों के बीच स्थित बाह्य तथा अन्त: अन्तरापुर्शक पेशियों (intercostal muscels) के कारण होती हैं। डायाफ्राम द्वारा होने वाली श्वसन क्रिया को उदर श्वासोच्छवास श्वसन (abdominal breathing) तथा अन्तरापुर्शक पेशियों से होने वाली क्रिया को पुर्शक श्वसन (costal breathing) कहते हैं|
1. अन्त: श्वसन (Inspiration) – वक्षगुहा के अधर तल पर स्थित डायाफ्राम विश्रामावस्था में गुम्बद के समान (dome shaped) होता है, किन्तु जब अरीय पेशियाँ सिकुड़ती हैं तो डायाफ्रमा गुम्बद की तरह न रहकर हो जाता है| इसके चपटे हो जाने से वक्षगुहा का आयतन बढ़ जाता है|
इसी समय बाह्य अन्तरापर्शुक पेशियाँ सिकुड़ती है, पसलियों बाहर की ओर खिसकती है और स्टर्नम ऊपर की ओर उठ जाता है, डायाफ्राम चपटा हो जाता है। वक्षगुहा का आयतन बढ़ जाता है। इस प्रकार पसलियाँ, स्टर्नम तथा डायाफ्राम अभी वक्षगुहा का आयतन बढाते है। वक्षगुहा का आयतन बढ़ने के साथ फेफडों का भी आयतन बढ़ने लगता है और वे फूल जाते है। फेफडों के फूलने के कारण फेफडों के अन्दर वायु का दबाव कम हो जाता है। इसकी पूर्ति के लिए वातावरण से वायु फेफडों ने स्वत: खिंचती चली जाती है। इस प्रकार वायु के फेफडों के अन्दर तक पहुँचने से अन्त: श्वसन (inspiration) की किया पूरी होती हैं!
2. नि:श्वसन (Expiration) - नि:श्वसन के अन्तर्गत अन्त:अन्तरापर्शुक पेशियों के सिकुड़ने से पसलियाँ, स्टर्नम तथा डायाफ्राम अपनी पूर्व दशा में आ जाते है। इस दशा में वक्षगुहा का आयतन कम हो जाता है| फेफडों पर दबाव पड़ता है तथा वायु बाहर निकल जाती हैं|
मनुष्य के ह्रदय की संरचना (Structure of Human Heart):
हदय वक्षगुहा में अधर तल की ओर "मध्य से कुछ बायी ओर स्थित होता है| यह लगभग 18 सेमी लम्बा और 9 सेमी चौडा होता है। हृदय मे चार वेश्म होते है, दो अलिन्द तथा दो निलय| हृद पेशियाँ (cardiac muscles) सदैव बिना रुके, बिना थके एक निश्चित लय से सिकुड़ती-फैलती रहती हैं|
हदय चारों ओर से दोहरे हृद्यावरण (pericardium) से घिरा होता है। दोनों झिल्लियों के मध्य हदयावरणी तरल (pericardial fluid) भरा होता है। यह हदय को बाह्य आघातों से बचाता है| हृदय का अग्र चौडा भाग अलिन्द (auricle) तथा पश्च सँकरा भाग निलय (ventricle) कहलाता है|अलिन्द तथा निलय ह्र्द खाँच (coronary sulcus) द्वारा अलग प्रतीत होते हैं|हृदय के दाएँ अलिन्द में शरीर के विभिन्न र्भागों से आया अशुद्ध रक्त भरा होता है। हृदय के बाएँ अलिन्द में फेफडों से आया शुद्ध रक्त भरा रहता है। दोनों निलय एक अन्तरा निलय खाँच द्वारा बँटे दिखाई देते हैं| बायाँ निलय बड़ा और अधिक पेशीय होता है| यह महाधमनी द्वारा शुद्ध रक्त को शरीर में पम्प करने का कार्य करता है| दायाँ निलय फुफ्फुस धमनी (pulmonary artery) द्वारा अशुद्ध रक्त को फेफडों में पहुंचाता है| निलय का अग्रभाग अलिन्दीय उपांग (auricular appendix) से ढका रहता है|
हृदय की आन्तरिक संरचना (Internal Structure of Heart):
हृदय वक्षगुहा में फेफडों के मध्य स्थित होता है। यह दोहरे हृदयावरण (pericardium) से घिरा होता है। दोनों झिल्लियों के मध्य हृद्यावरणीय तरल (pericardial fluid) भरा होता है।
अलिन्द (auricle) एक अन्तरा-असिन्द पट (inter auricular septum) द्वारा दाएँ तथा बाएँ अलिन्द में बँटा होता है। अन्तरा- अलिन्द पट पर एक अण्डाकार गट्टा होता है जिसे फोसा ओवेलिस (fossa ivalis) कहते है। दाएँ अलिन्द में पश्च महाशिरा तथा अग्र महाशिरा के छिद्र होते हैं। पश्च महाशिरा के छिद्र पर यूस्टेकियन कपाट (eustachian valve) होता है। अग्र महाशिरा के छिद्र के ही पास एक छिद्र कोरोनरी साइनस (coronary sinus) होता है। इस छिद्र पर कोरोनरी कपादृ या थिबेसिंयन कपाट (auriculo ventricular node) होती है। दाएं अलिन्द में अग्र तथा पश्च महाशिराओं के छिद्रों के समीप स्पन्दन केन्द्र या पेस मेकर (pace maker) होता है। इससे हृदय में संकूचन प्रक्रिया प्रारम्भ होती है। अन्तरा-अलिन्द पट पर अलिन्द-निलय गाँठ (auriculo ventricular node) होती है। यह हृदय संकुचन की तरंगों को निलय में प्रेषित करती है। बाएँ अलिन्द में दोनो फुफ्फुसीय शिराएँ एक सम्मिलित छिद्र द्वारा खुलती है।
एक अन्तरा-निलय पट (inter-ventricular septum) निलय को दाएँ व बाएँ निलय में बाँटता है। निलय का पेशी स्तर अलिन्द की अपेक्षा बहुत मोटा होता है। बाएँ निलय का पेशी स्तर सबसे अधिक मोटा होता है। निलय की भिति में स्थित मोटे पेशी स्तम्भों को पैपीलरी पेशियों (papillary muscles) कहते है। दाएँ निलय से पल्मोनरी चाप निकलती है। यह अशुद्ध रुधिर को फेफडों में पहुंचाती है। बाएँ निलय से कैरोटिको सिस्टैंमिक चाप निकलती है, जो सारे शरीर में शुद्ध रुधिर पहुंचाती है। इन चापों के आधार पर तीन-तीन छोटे अर्द्धचन्द्राकार कपाट (semilunar valves) पाए जाते हैं|
UP Board कक्षा 10 विज्ञान चेप्टर नोट्स : कार्बनिक यौगिक, पार्ट-I
UP Board कक्षा 10 विज्ञान चेप्टर नोट्स : कार्बन की संयोजकता, पार्ट-I
अलिन्द-निलय में अलिन्द-निलय छिद्रों (atrio-ventricular apertures) द्वारा खुलते हैं! इन छिद्रो पर अलिन्द-निलय कपाट (atrio-ventricular valve) स्थित होते हैं। ये कपाट रुधिर को अलिन्द से निलय में जाने देते हैं| किन्तु वापस नहीं आने देते। हृद रज्जू या कार्द्री टेंडनी (chordae tendinae) एक ओर कपाटो से जुड़े रहते है तथा दूसरी ओर निलय की भिति से जुडे रहते हैं। दाएँ अलिन्द व निलय के बीच के अलिन्द - निलय कपाट में तीन वलन होते है; अत: इसे त्रिवलनी या ट्राइकस्पिड कपाट (tricuspid valve) कहते हैं। बाएँ अलिन्द व निलय के बीच के कपाट पर दो वलन होते है, अत: इसे द्विलन या बाइकस्पिड कपाट या मिट्रल कपाट (bicuspid valve or mitral valve) कहते है!
मानव ह्रदय की क्रियाविधि :
हृदय का प्रमुख कार्य शरीर के विभिन्न भागों में रुधिर पहुँचाना है। हृदय ही शरीर के विभिन्न भागों से रुधिर को ग्रहण भी करता हैं।
हृदय शरीर में रुधिर को पम्प करने का कार्य करता है। इस कार्य के लिए हृदय हर समय सिकुड़ता तथा शिथिल होता रहता है। हृदय के सिकुड़ने को प्रकुंचन (सिस्टोल) तथा शिथिल होने को अनुशिथिलन (डायस्टोल) कहते हैं। अलिन्दो के शिथिल होने से रुधिर महाशिराओं से आकर अलिन्दों में, जबकि निलयों के शिथिल होने से रुधिर अलिन्दो से निलयों में एकत्र हो जाता है। जब हदय के इन भागों में प्रकुंचन होता है तो रुधिर अलिन्दों से निलय में तथा निलयों से महाधमनियों में धकेल दिया जाता है। अलिन्दों तथा निलयों में ये क्रियाएँ क्रमश: तथा एक के बाद एक होती है।
UP Board कक्षा 10 विज्ञान चेप्टर नोट्स : कार्बन की संयोजकता, पार्ट-III
UP Board कक्षा 10 विज्ञान चेप्टर नोट्स : कार्बनिक यौगिक, पार्ट-III
Comments
All Comments (0)
Join the conversation