तिब्बती शहर नांगचेन में 17 सितम्बर 2015 को भारतीय भिक्षु ज्ञालवांग द्रुकपा द्वरा 2000 वर्ष पुराने एक स्तूप का जीर्णोद्धार करवाया गया और उसे धार्मिक अनुष्ठान के साथ प्रतिष्ठित किया गया. यह स्तूप भगवान बुद्ध की निशानी के रूप में बनाए गए 19 स्तूपों में से एक है जिन्हें सम्राट अशोक ने चीन भेजा था. यह स्तूप भारत से बौद्ध धर्म के चीन आगमन का प्रतीक है.
बुद्ध की विशाल स्वर्ण प्रतिमा के साथ नवीनीकृत स्तूप और अशोक स्तंभ को ज्ञालवांग द्रुकपा द्वारा तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र के नजदीक स्थित चीन के किंघाई प्रांत में प्रतिष्ठित किया गया. द्रुकपा लद्दाख में बौद्ध धर्म की द्रुकपा परंपरा के धार्मिक प्रमुख हैं.
इसके बारे में कहानी यह है कि ढाई हजार साल से अधिक समय पहले भगवान बुद्ध के अंतिम संस्कार के बाद बुद्ध के अनुयायियों ने खोपड़ी की एक हड्डी, कंधे की दो हड्डी, चार दांत और मोती जैसे 84000 अवशेष प्राप्त किए थे. बौद्ध रिकॉर्ड के अनुसार अशोक ने शाक्यमुनि के इन सभी अवशेषों को एकत्र किया था उन्हें पगोडा में रखा था और उसके बाद विश्व के विभिन्न हिस्सों में भेजा था.
चीन ने इनमें से नांगचेन सहित 19 स्तूप प्राप्त किये थे. लेकिन उनमें से अधिकतर प्राकृतिक प्रभाव और देखरेख न हो पाने के कारण ढह गए. इस तरह के तीन और स्तूप चीनी शहरों- शियान, नानजिंग और झेजिंयाग प्रांत के नजदीक आयुवांग में थे. नांगचेन स्तूप तिब्बती क्षेत्र में पाया गया पहला स्तूप है. अशोक द्वारा चीन को भेजे गए 15 अन्य स्तूपों के बारे में कोई जानकारी नहीं है.
चीन में बौद्ध धर्म
रिकॉर्ड के अनुसार चीन में बौद्ध धर्म के आगमन 68 ईस्वी में दर्ज किया गया. चीन में पहले बौध मंदिर व्हाइट हार्स का निर्माण 68ईस्वी में चीनी भिक्षु ज़ुआनजान द्वारा लुओयांग में कराया गया. जो 629 ईसवी से 645 ईसवी के मध्य तांग राजवंश के दौरान भारत की यात्रा पर आया था.
अपनी यात्रा के दौरान उसने कई पवित्र स्थलों का भ्रमण किया इसके अतिरिक्त नालंदा जैसे संस्थान में कई प्रसिद्ध बौद्ध ज्ञानियों के साथ अध्ययन किया.
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