भारत और रूस अपने राजनयिक संबंधों की स्थापना के 70 वां साल मना रहे हैं. अप्रैल 1 9 47 (भारत की स्वतंत्रता से 3 महीने पहले) में द्विपक्षीय संबंधों की स्थापना के बाद से भारत-रूस की दोस्ती और कई गुना बढ़ गई है. दिलचस्प बात यह है कि ये 'रिश्ते' राजनीति, अर्थव्यवस्था, प्रौद्योगिकी और कूटनीति के क्षेत्र में कई विवर्तनिक बदलावों के बावजूद हमेशा सशक्त बने रहें.
इन सबंधों के महत्व को समझते हुए दोनों देशों ने 'रणनीतिक साझेदारी' के तहत दिसंबर 2010 में “विशेष और विशेषाधिकारित सामरिक भागीदारी" के स्तर तक इसे पहुंचाने का फैसला किया जो अपने आप में एक बहुत बड़ी बात थी.
तब से भारत और रूस विशेष और विशेषाधिकार प्राप्त सामरिक भागीदारी तथा द्विपक्षीय और बहुपक्षीय स्तर पर सहयोग के नए क्षेत्रों का पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं.
इस भागीदारी के अंतर्गत आने वाले कुछ उभरते क्षेत्र निम्नवत हैं -
रक्षा सहयोग
भारत-रूस का द्विपक्षीय रक्षा सहयोग मजबूत पारस्परिक विश्वास पर आधारित है. हाल के दशकों में भारत-रूस सैन्य तकनीकी सहयोग एक सरल क्रेता -विक्रेता फ्रेमवर्क के रूप में विकसित हुआ है, जिसमें उन्नत रक्षा प्रौद्योगिकियों और प्रणालियों के संयुक्त अनुसंधान, विकास और उत्पादन शामिल हैं. इस सहयोग के कुछ मुख्य आकर्षण हैं -
• भारत मुख्य रूप से रूसी हथियारों पर निर्भर रहा है. भारत द्वारा 70 प्रतिशत से अधिक हथियार रूस से प्राप्त किए जा रहे हैं.
• यद्यपि भारत ने हाल ही के वर्षों में रक्षा और बुनियादी सुविधाओं के लिए इजरायल, फ्रांस और संयुक्त राज्य अमेरिका पर अपनी निर्भरता बढ़ा दी है, फिर भी रूस भारत में रक्षा उपकरणों का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है.
• भारतीय सैन्य सेवाओं की सभी शाखाएं - सेना (टी -90 टैंक और एस -400 रक्षा व्यवस्था), वायुसेना (एसयू -30) और नौसेना (आईएनएस विक्रमादित्य) में रूस के उपकरण प्रयोग किये जाते हैं. इसके अतिरिक्त संयुक्त रूप से निर्मित ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल त्रि-सेवाओं के लिए एक विश्वसनीय हथियार बन गई है.
•इंद्र -2017 जैसी त्रिकोणीय सेवाओं के अभ्यास का आयोजन करने का निर्णय भी द्विपक्षीय रक्षा सहयोग को मजबूत बनाने का संकेत है.
ऊर्जा संबंध
भारत अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं के लिए रूस पर निर्भर है. भारत जैसे ऊर्जा की कमी वाले राष्ट्र के लिए परमाणु ऊर्जा संयंत्रों की स्थापना और हाइड्रोकार्बन संसाधनों की खोज में रूस की सहायता एक बड़ी राहत है.
जून 2017 में दोनों देशों द्वारा जारी सेंट पीटर्सबर्ग घोषणा के तहत नई दिल्ली और मास्को ने ऊर्जा दक्षता में सुधार हेतु परमाणु, हाइड्रोकार्बन, पनबिजली और अक्षय ऊर्जा सहित ऊर्जा सहयोग के सभी क्षेत्रों में द्विपक्षीय संबंधों के विस्तार द्वारा दोनों देशों के बीच एक "ऊर्जा ब्रिज" बनाने की कसम खाई.
हाइड्रोकार्बन क्षेत्र में सहयोग के कुछ मुख्य आकर्षण हैं -
ओएनजीसी विदेश लिमिटेड ने दो प्रमुख तेल एवं गैस परियोजनाओं - सखलिन -1 और इंपीरियल एनर्जी लिमिटेड (टॉमस्क) में 5 अरब डॉलर से अधिक का ठोस निवेश किया है. इसके अलावा, रूसी कंपनियां भारत में कई विद्युत संयंत्रों और तेल तथा गैस परियोजनाओं में संलग्न है.
अक्टूबर 2016 में भारत में गैस पाइपलाइन के संयुक्त अध्ययन और सहयोग के अन्य संभावित क्षेत्रों पर समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए थे. इस समझौते के तहत गजप्रोम और इंजीनियर्स इंडिया लिमिटेड के बीच करार किया गया था.
इसी समय रोस्नेफ़्ट, एस्सार ऑयल का 98% हिस्सा 10.9 अरब डॉलर में खरीदने पर सहमत हुआ.
हाल ही में दोनों देशों ने रूस के आर्कटिक शेल्फ में हाइड्रोकार्बन के अन्वेषण और शोषण पर संयुक्त परियोजनाएं शुरू करने में रुचि जाहिर की है.
परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग की कुछ मुख्य विशेषताएं हैं -
परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग में रूस भारत का महत्वपूर्ण भागीदार रहा है. यह भारत को एक अभूतपूर्व गैर-प्रसार रिकॉर्ड सहित उन्नत परमाणु प्रौद्योगिकी वाला देश मानता है.
कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा संयंत्र (केकेएनपीपी) इकाइयों 1 और 2 (वीवर 1000 मेगावाट इकाइयां) का निर्माण भारत और रूस के बीच सहयोग का एक उदाहरण है, जो क्रमशः जुलाई 2013 और मार्च 2017 में प्रारंभ किया गया था.
रूस ने कुडनकुलम में इसी क्षमता के चार अन्य यूनिटों का निर्माण करने के लिए भी सहमति व्यक्त की है. 2025 तक उनका काम शुरू किया जाएगा.
बहुपक्षीय सहयोग
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में रूस की स्थायी सदस्यता तथा भारत की आर्थिक शक्ति, शांतिपूर्ण दृष्टिकोण, सामाजिक विविधता और स्थिर तथा लोकतांत्रिक राजनीति के कारण भारत-रूस का द्विपक्षीय संबंध वैश्विक स्तर पर हमेशा से इस क्षेत्र के अन्य सहभागियों के लिए रणनीतिक मायने रखता है
इस सहयोग के कुछ मुख्य आकर्षण हैं -
• जून 2017 में एससीओ में भारत की सदस्यता के मामले पर रूस की दृढ़ता एक वास्तविकता बन गई है. इसकी सदस्यता से भारत को अपने पड़ोसी राष्ट्रों जैसे – मध्य एशिया तक अपनी पहुँच बनाने में सफलता मिलेगी
• रूस संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता का एक प्रबल समर्थक है.
• हितों की भिन्नता त्रिपक्षीय और बहुपक्षीय मंच जैसे ब्रिक्स, आरआईसी और विश्व व्यापार संगठन में भी स्पष्ट दिखाई दे रही है.
• रूस परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) में भारत की सदस्यता का एक प्रबल प्रवक्ता भी है.
• भारत के साथ पाकिस्तान की शत्रुता, भारत-चीन के संबंधों में लगातार रुकावट जैसे कारकों खासकर वन बेल्ट वन रोड (ओबोर) की पहल और चीन पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर (सीपीईसी) और रूस की महत्वाकांक्षा के कारण अफगानिस्तान की राजनीति में हिस्सेदारी के कारण हाल के वर्षों में द्विपक्षीय संबंधों के तहत भू रणनीतिक भाग भी बढ़ रहा है.
•दोनों देश हमेशा से आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन आदि जैसे प्रमुख वैश्विक मुद्दों पर एकजुट हैं. हाल ही में "वैश्विक शांति और स्थिरता के लिए साझेदारी" पर एक संयुक्त बयान जारी करना दोनों देशों के वैश्विक दृष्टिकोण पर अपने विचारों के अभिसरण का एक संकेत है.
वाणिज्यिक संबंध
• दोनों देशों की बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं के बावजूद भी व्यापार संबंध इसके द्विपक्षीय संबंधों की सबसे कमजोर कड़ी हैं. 2012 में द्विपक्षीय व्यापार में 24.5% की वृद्धि हुई जो 11 अरब डॉलर तक पहुंच गई. लेकिन 2016 में इसमें 7.7 अरब डॉलर की गिरावट आई.
इन परिस्थितियों से निबटने के लिए निम्नांकित उपाय किये गए हैं
• इंटरनेशनल नॉर्थ साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर (INSTC) - यह भारत और रूस के बीच एक एक्सप्रेस गलियारा है.यह भारत, रूस, ईरान, यूरोप और मध्य एशिया के बीच माल ढुलाई हेतु परिवहन नेटवर्क स्थापित करने के लिए एक बहु-मोडल कनेक्टिविटी परियोजना है. आईएनएसटीसी का एक रणनीतिक महत्व भी है क्योंकि यह समुद्री सिल्क रोड पहल के तत्वावधान में चीन की बढ़ती ताकत की समीक्षा करता है.
• अक्टूबर 2016 में गोवा में मोदी और पुतिन के बीच शिखर स्तर की बैठक के दौरान द्विपक्षीय व्यापार और आर्थिक सहयोग का विस्तार करने के लिए समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए थे.
• अक्टूबर 2016 में ALROSA ज्वाइंट स्टॉक कंपनी (सार्वजनिक संयुक्त स्टॉक कंपनी) और भारत की कीमती पत्थरों और आभूषण निर्यात के संवर्धन परिषद के बीच एक ज्ञापन सहयोग पर हस्ताक्षर किए गए थे.
• द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ावा देने के लिए दोनों देशों ने व्यापार विविधीकरण की पहचान की है. भविष्य में उच्च प्रौद्योगिकी उत्पादों का हिस्सा बढ़ाना, औद्योगिक सहयोग को बढ़ावा देना, उद्यमिता और निवेश के लिए पर्यावरण में सुधार करना और दोनों देशों के बीच बैंकिंग और वित्तीय मामलों में सहयोग विकसित करना आदि सहयोग के मुख्य क्षेत्र होंगे.
निष्कर्ष
इतिहास ने साबित कर दिया है कि भारत और रूस प्राकृतिक सहयोगी हैं. हाल के वर्षों में नई दिल्ली ने अपनी विदेश नीति के उद्देश्यों को हासिल करने के लिए व्यावहारिकता का रास्ता चुना है.इसे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंधों में भी कारगर होना चाहिए ताकि वह आवश्यकतानुसार आवश्यक गठबंधन बनाने से पहले रूस और यूरेशियन क्षेत्र का लाभ उठा सके.
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