हाल ही में वैज्ञानिकों द्वारा किये गये एक शोध पर आधारित रिपोर्ट प्रकाशित की गई जिसमें हिमालय के ग्लेशियर के पिघलने की चेतावनी दी गई है. हिन्द-कुश हिमालय ग्लेशियर पर आधारित यह रिपोर्ट कहती है कि यदि वैश्विक उत्सर्जन (ग्लोबल वॉर्मिंग) नहीं घटता है तो दुनिया का तीसरा ध्रुव समझे जाने वाले हिमालय ग्लेशियर का दो तिहाई हिस्सा वर्ष 2100 तक पिघल सकता है.
‘हिंदू-कुश हिमालय असेसमेंट’ नामक यह नया अध्ययन 04 फरवरी 2019 को प्रकाशित हुआ है. इस अध्ययन के अनुसार यदि ग्लोबल वॉर्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने वाला पेरिस संधि लक्ष्य हासिल हो जाता है तो भी एक तिहाई हिमनद पिघलना तय है.
हिन्द-कुश हिमालय ग्लेशियर पर आधारित रिपोर्ट
• रिपोर्ट के मुताबिक हिंदू-कुश हिमालय (एनकेएच) क्षेत्र के हिमनद इन पहाड़ों में 25 करोड़ लोगों तथा नदी घाटियों में रहने वाले 1.65 अरब अन्य लोगों के लिए अहम जल स्रोत हैं.
• ये हिमनद गंगा, सिंधु, येलो, मेकोंग समेत दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण 10 नदियों में जलापूर्ति करते हैं तथा अरबों लोगों के लिए प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से भोजन, ऊर्जा, स्वच्छ वायु और आय का आधार प्रदान करते हैं.
• अध्ययन में चेतावनी दी गई है कि उनके पिघलने का लोगों पर प्रभाव वायु प्रदूषण के बिल्कुल बिगड़ जाने से लेकर प्रतिकूल मौसम के रुप में हो सकता है.
• मॉनसून से पहले नदियों में निम्न प्रवाह से शहरी जल व्यवस्था, खाद्य एवं ऊर्जा उत्पादन अस्त व्यस्त हो जाएगा.
• नई रिपोर्ट काठमांडू के इंटरनैशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डिवेलपमेंट इन नेपाल द्वारा प्रकाशित हुई है.
• इस रिपोर्ट को 210 वैज्ञानिकों ने तैयार किया है. इसका नेतृत्व फिलिप्स वेस्टंर ने किया है.
क्या होगा प्रभाव? |
अध्ययन में कहा गया है कि निचली ऊंचाई पर ग्लेशियर पिघलने से अगले कुछ दशकों में पानी की उपलब्धता में बदलाव की संभावना कम है, लेकिन अन्य कारणों के चलते इस पर काफी प्रभाव पड़ सकता है. इनमें भूजल की कमी और लोगों द्वारा अधिक मात्रा में पानी का उपभोग शामिल है. अध्ययन के मुताबिक, ग्लेशियर का पिघलना मौजूदा दर से जारी रहा तो ऊंचाई वाले इलाके में कुछ नदियों के बहाव में बदलाव हो सकता है. |
पृष्ठभूमि
दो वर्ष पहले काठमांडू स्थित इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट के विशेषज्ञ अंजलि प्रकाश और अरुण बी. श्रेष्ठ ने अपने अध्ययन के बाद एक रिपोर्ट में लिखा था कि ग्लेशियरों के पिघलने से शुरू में नदियों के जलस्तनर में वृद्धि होगी और इससे बाढ़ आने का खतरा भी बढ़ जाएगा. लेकिन जब ग्लेशियर खत्म हो जाएंगे तब नदियों में पिघले बर्फ की मात्रा काफी कम हो जाएगी. इसके परिणामस्वरूप कुछ इलाकों में भूजल रिचार्ज की दर कम हो जाएगी.
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