मेक इन इंडिया के तहत केंद्र सरकार और डीआरडीओ के मध्य 18,000 करोड़ के समझौते

May 29, 2017, 12:57 IST

रक्षा क्षेत्र में आयात को कम करते हुए मेक इन इंडिया को बढ़ावा देने के उद्देश्य से रक्षा मंत्रालय ने विदेशी कंपनियों के आगे रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) को तरजीह देते हुए सेना के लिए मिसाइल बनाने हेतु लगभग 18,000 करोड़ रुपये की धनराशी का अनुबंध किया है.

Agni-5 Missileकेंद्र सरकार ने मेक इन इंडिया को बढ़ावा देने के उद्देश्य से विदेशी कंपनियों के आगे रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) को प्राथमिकता दी है. जिसके तहत रक्षा क्षेत्र में आयात को कम किया जा सकेगा.

केंद्र सरकार और रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के मध्य किए गए समझौते के तहत डीआरडीओ को लगभग 18,000 करोड़ रुपये का ठेका दिया है. समझौते के तहत डीआरडीओ मिसाइल के अलावा अन्य रक्षा उपकरण तैयार करेगा.

रक्षा क्षेत्र में आयात को कम करते हुए मेक इन इंडिया को बढ़ावा देने के उद्देश्य से रक्षा मंत्रालय ने विदेशी कंपनियों के आगे रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) को तरजीह देते हुए सेना के लिए मिसाइल बनाने हेतु लगभग 18,000 करोड़ रुपये की धनराशी का अनुबंध किया है. यह निर्णय केन्द्रीय रक्षा मंत्री अरुण जेटली ने पिछले हफ्ते आयोजित रक्षा अधिग्रहण परिषद (डीएसी) की बैठक में लिया.

डीएसी की इस बैठक में जमीन से हवा में मार करने वाली छोटी रेंज की मिसाइल का मुद्दा पर विचार विमर्श हुआ, सरकार को निर्णय करना था कि वह विदेशी मिसाइल सिस्टम खरीदे या फिर जमीन से हवा में मार करने वाले आकाश मिसाइल को प्राथमिकता दे.

इन मिसाइलों को भारत द्वारा सीमाओं पाकिस्तान और चीन पर तैनात किया जाएगा. जिससे किसी संघर्ष की स्थिति में उनके लड़ाकू विमान और यूएवी (ड्रोन) से रक्षा की जा सके. हाल के दिनों में भारतीय वायुसेना ने इन मिसाइलों को चुना.

रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) मिसाइलों के मामले में भारत को आत्मनिर्भर बनाने में काफी मददगार साबित हुई है. देसी विमानों और हथियारों को विकसित करने में अभी डीआरडीओ को महारत हासिल नही है. मिसाइलों के इस अनुबंध हेतु इस्राइल, स्वीडन और रूस भी 2011 से ही रेस में थे.

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डीआरडीओ के बारे में-

  • रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) भारत की रक्षा से जुड़े अनुसंधान कार्यों हेतु देश की अग्रणी संस्था है. यह संगठन भारतीय रक्षा मंत्रालय की एक आनुषांगिक ईकाई के रूप में काम करता है.
  • इस संस्थान की स्थापना 1958 में भारतीय थल सेना एवं रक्षा विज्ञान संस्थान के तकनीकी विभाग के रूप में की गयी. वर्तमान में संस्थान की अपनी इक्यावन प्रयोगशालाएँ हैं जो इलेक्ट्रॉनिक्स, रक्षा उपकरण इत्यादि के क्षेत्र में अनुसंधान में रत हैं.
  • पाँच हजार से अधिक वैज्ञानिक और पच्चीस हजार से भी अधिक तकनीकी कर्मचारी इस संस्था के संसाधन हैं. यहां राडार, प्रक्षेपास्त्र इत्यादि से संबंधित कई बड़ी परियोजनाएँ संचालित हैं.
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