बलूचिस्तान: पाकिस्तान के सन्दर्भ में भारतीय कूटनीति का अचूक अस्त्र

Aug 30, 2016, 19:17 IST

कैलिर्फोनिया के रिपब्लिकन सांसद दाना रोहराबचेर ने दो अन्य सांसदों के समर्थन से अमेरिकी कांग्रेस में बलूचिस्तान के लोगों पर इन जुल्मों के खिलाफ ‘आत्मनिर्णयन’ के अधिकार की मांग वाला एक प्रस्ताव पेश किया है.

70वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बलूचिस्तान, गिलगित और ‘पाकिस्तान के कब्जे वाली कश्मीर’ की ‘आजादी’ का खुले तौर पर समर्थन किया. पीएम के इस बयान ने पाकिस्तान की दुखती रग पर हाथ रख दिया है. इससे यह प्रान्त एक बार फिर चर्चाओं में है. साथ ही अंतरराष्ट्रीय कूटनीति को नया मोड़ मिला है. बलूचिस्तान के नेताओं ने भारतीय पीएम के इस बयान का स्वागत तो किया ही है, इस मुद्दे पर ब्रिटेन और अमेरिका से भी सहयोग मांगा है. आइए आप को बताते हैं कि आखिर क्या है बलूचिस्तान का पूरा विवाद और यहां के लोग क्यों चाहते हैं पाक से आजादी.

बलोच राष्ट्रवादी नेताओं का आरोप है कि पाकिस्तान की केंद्रीय सरकार उनका उत्पीड़न कर रही है और उन्हें उनके वाजिब अधिकार नहीं दे रही है. इधर पाकिस्तान का कहना है कि वो बलूचिस्तान में अलगावादियों के ख़िलाफ़ लड़ाई जीत रहा है. पाकिस्तान की इस जीत को बलोच कार्यकर्ता पाकिस्तानी सेना द्वारा वहां अपहरण, उत्पीड़न और हत्याएं करने की बात कर रहे हैं, जिससे वहां पाकिस्तान के ख़िलाफ़ भावनाएं भड़क रही हैं. पाकिस्तान चरमपंथी गुटों और अलगाववादी गुटों पर नियंत्रण रखने के नाम पर यहां के लोगों पर सैन्य कारवाई कर रहा है.

खनिज के क्षेत्र में समृद्ध प्राकृतिक संसाधनों से माला माल पश्चिमी प्रांत बलूचिस्तान ईरान (सिस्तान व बलूचिस्तान प्रांत) तथा अफ़ग़ानिस्तान के सटे हुए क्षेत्रों में बँटा हुआ है. क्षेत्रफल के हिसाब से बलूचिस्तान पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत है किन्तु यह पाकिस्तान के सबसे कम आबाद इलाकों में से एक है. इसकी राजधानी क्वेटा है. यहाँ प्रमुख रूप से बलूच या बलूची, सराइकी, पश्तो भाषा बोली जाती है. बलूचिस्तान में यूरेनियम, पेट्रोल, प्राकृतिक गैस, तांबा और कई अन्य धातुओं के बड़े भंडार हैं.

इसके बावजूद यह पाकिस्तान का सबसे ग़रीब प्रांत है. 1952 में इस क्षेत्र में गैस भंडार का पता चला. सुई नामक स्थान पर जो गैस पैदा होती है पाकिस्तान की कुल प्राकृतिक गैस का एक तिहाई यहीं से निकलता है. बलूचिस्तान पूरे पाकिस्तानी प्रांत का 44% हिस्सा है.

बलूचियों का कहना है कि पाक संविधान के 18वें संशोधन के तहत उन्हें विशेष अधिकार प्राप्त हैं जबकि हकीकत में प्राकृतिक संसाधनों पर केन्द्र का अधिकार बना हुआ है. बलूचियों का कहना है कि बलूचिस्तान में अधिकांश सरकारी कर्मचारी या अफसर पंजाब प्रांत से संबंध रखते हैं, इसलिए बलूचियों को नौकरी नहीं मिल पाती.

हालाँकि सत्तर के दशक में बलूच राष्ट्रवाद का उदय हुआ पाकिस्तानी शासन के खिलाफ मुक्ति अभियान भी चलाया गया किन्तु बलोचियों की यह समस्या आज भी जस की तस है. 27 ज़िले और 65 विधानसभा सीटो वाले बलूचिस्तान की स्वतंत्रता का विचार 1944 में जनरल मनी के विचार में आया किन्तु 1947 में ब्रिटिश इशारे पर इसे पाकिस्तान में शामिल कर लिया गया.

यूं तो बलूचिस्तान के लोगों में नाराज़गी दशकों से रही है लेकिन चरमपंथ की ताज़ा लहर 2006 में उस वक़्त शुरू हुई जब पाकिस्तानी सेना ने बलोच क़बायली नेता नवाब अकबर बुगती को मार दिया. अलगाववादियों का कहना है कि वो आज़ाद बलूचिस्तान के लिए लड़ रहे हैं. मुख्यत: पहाड़ों में इन लोगों के ठिकाने हैं और वहीं से ये काम करते हैं, लेकिन बताया जाता है कि आम लोगों से भी उन्हें अच्छा ख़ासा समर्थन प्राप्त है. बहुत से पाकिस्तानी राजनेता बलूचिस्तान को एक राजनीतिक समस्या मानते हैं और बातचीत के ज़रिए उसके शांतिपूर्ण समाधान के पक्ष में हैं.

पाकिस्तान में आने वाली सरकारें इस दिशा में बहुत ज़्यादा कोशिश नहीं कर पाई. ऐसे में, पाकिस्तानी सेना पर ताक़त के दम पर अलगावादियों को कुचलने के आरोप लगते हैं. वर्तमान में इस के पीछे पाकिस्तान और चीन की आर्थिक कोरिडोर से जुड़ी महत्वाकांक्षी परियोजना भी है, जिसका कई बलोच संगठन विरोध भी कर रहे हैं. परियोजना के तहत चीन के शिनचियांग प्रांत को बलूचिस्तान के ग्वादर बंदरगाह तक जोड़ा जाना है. बलूचिस्तान लिबेरशन आर्मी, बलूचिस्तान लिबरेशन फ्रंट, यूनाइटेड बलोच आर्मी, लश्कर-ए-बलूचिस्तान, बलूचिस्तान लिबेरशन यूनाइटेड फ्रंट जैसे कई संगठन बलूचिस्तान की आज़ादी के लिए संघर्ष कर रहे हैं.

पाकिस्तान सरकार और सेना भारत पर बलूचिस्तान में गड़बड़ी फैलाने के आरोप लगाती रही है. भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा लाल किले से अपने भाषण में बलूचिस्तान का जिक्र करने से पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के विदेश मामलों के सलाहकार सरताज अज़ीज़ ने त्वरित प्रतिक्रिया व्यक्त की कि इससे वहां हालात बिगाड़ने में भारत के हाथ की पुष्टि होती है. मोदी ने पिछले सप्ताह कहा था कि पाकिस्तान को दुनिया को यह जवाब देने का समय आ गया है कि वह पाकिस्तान के कब्जे वाली कश्मीर व बलूचिस्तान के लोगों पर क्यों अत्याचार कर रहा है.

विद्रोह के पीछे आर्थिक कारण-
बलूचिस्तान के आर्थिक रूप से पिछड़ेपन और आर्थिक असंतोष की बात की जाय तो इसकी एक झलक यहाँ देखने को मिलती है. साल 1952 में इस क्षेत्र के डेरा बुगती में गैस भंडार का पता लगाया गया. साल 1954 से यहां से गैस का उत्पादन शुरू किया गया. उसका लाभ पूरे पाकिस्तान को मिलने लगा लेकिन बलूचिस्तान की राजधानी क्वेटा को 1985 में इस पाइपलाइन से जोड़ा गया.

इसी क्षेत्र के चगाई मरूस्थल में साल 2002 से सड़क परियोजना शुरू की गई. जो कि चीन के साथ तांबा, सोना और चांदी उत्पादन करने की पाकिस्तानी योजना है. इससे प्राप्त लाभ में चीन का हिस्सा 75 प्रतिशत है और 25 प्रतिशत पाकिस्तान का. इस 25 प्रतिशत में से इस क्षेत्र को मात्र 2 प्रतिशत की हिस्सेदारी दी गई.

शातिं के नाम पर लोगों का अपहरण और हत्याएं-
अगर मानवाधिकार हनन के मुद्दों पर दृष्टिपाट किया जाय तो यहां पाकिस्तानी सेना शाति बनाएं रखने के नाम पर लोगों के अपहरण और हत्या करने में संलग्न है. यहां के हालात के बारे में दुनिया को पता न चले इसलिए इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया पर भी कई तरह की पाबंदिया हैं. साथ ही साथ मिडिया कर्मियों पर भी जुल्म किए जाते हैं.

हाल की घटनाएं-
ह्यूमन राइट कमीशन पाकिस्तान की जून 2011 की रिपोर्ट के अनुसार 140 लापता व्यक्तियों के शव जुलाई 2010 से मई 2011 के बीच बरामद हुए. हाल ही में सुरक्षा बलों की तरफ से बलूच लोगों और नेताओं की हत्याओं ने इस क्षेत्र में तनाव बढ़ाया है. 31 जनवरी 2012 में मीर बख्तियार डोमकी नाम के बलूचिस्तान क्षेत्र से पाकिस्तानी सांसद की बेटी और पत्नी की हत्या कर दी गई.

1948 में खान ने पाक सरकार के खिलाफ उठायी आवाज-
मई 1948 में अब्दुल करीब खान ने पाक सरकार के खिलाफ अलगाव का बिगुल फूंक दिया. अफगानिस्तान से पाक सैनिकों के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध छेड़ दिया जो अब तक जारी है. 1958 में इस सशस्त्र संघर्ष का नेतृत्व कर रहे नवाब नवरोज खान को उनके सहयोगियों के साथ गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया और नवरोज खान के बेटों और भतीजों को फांसी दे दी गई. नवरोज खान की भी जेल में रहने के दौरान मौत हो गई.

पाकिस्तान ने बलूचिस्तान को अपना चौथा राज्य घोषित कर उसे मान्यता प्रदान की. लेकिन इसके बाद भी बलूचिस्तान में आजादी की जंग जारी रही. भुट्टो ने 1973-74 के दौरान वहां मार्शल ला लागू कर दिया. वहां की सरकार को बर्खास्त कर दिया. उस दौरान बलूचिस्तानी आंदोलनकारियों के ऊपर दमनात्मक कार्रवाई भी हुई और सात से आठ हजार बलूचिस्तानी जनता को अपनी जान गंवानी पड़ी. लेकिन साथ ही साथ पाकिस्तान की सेना के भी चार सौ से ज्यादा जवान मारे गये.

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2005 में बलूच के नेता बुगती और मीर ने पाक सरकार के सामने रखी 15 सूत्री मांग-
आंदोलन को दबाने हेतु उसके नेताओं को गिरफ्तार करके सरेआम गोली मार देने का सिलसिला जारी रहा. आंदोलनकारी भी सशस्त्र विरोध करते रहे और हार नही मानी. 2005 में बलूच नेता नवाब अखबर खान बुगती और मीर बलाच मार्री ने पाक सरकार के सामने 15 सूत्री मांग रखी. इनमें प्रांत के संसाधनों पर ज्यादा नियंत्रण और सैनिक ठिकानों के निर्माण पर रोक जैसे मुद्दे शामिल थे. इन्हें नकार दिया गया और संघर्ष चलता रहा.

परवेज मुशर्रफ के ऊपर किया गया राकेट से हमला-
अगस्त 2006 में 79 वर्ष के अखबर खान की सेना से मुठभेड़ में मौत हो गई. इसी संघर्ष में 60 पाकिस्तानी सैनिक और 7 अधिकारियों की जान भी चली गई. सशस्त्र क्रांतिकारियों द्वारा परवेज मुशर्रफ के ऊपर राकेट से हमला किया गया. जिसमें वे बाल-बाल बच गये. अप्रैल 2009 में बलूच आंदोलन के अध्यक्ष गुलाम मोहम्मद बलूच को गिरफ्तार किया गया. अगस्त 2009 में कलात ने खान मीर सुलेमान दाऊद ने खुद को बलूचिस्तान का शासक घोषित कर दिया.

भारत पर लगा क्रांतिकारियों की मदद का आरोप-
हालांकि भारत पर उन क्रांतिकारियों की मदद करने का आरोप लगता रहा है किन्तु उनके पास जिस तरह के हथियार है, उसे देखकर नहीं लगता कि किसी बाहरी देश से उन्हें सहायता मिल रही है. अत्यंत सामान्य हथियार और पाकिस्तान की सेना से लूटे गये हथियारों की बदौलत बलूचिस्तान के क्रांतिकारियों का संघर्ष जारी है. दुनिया के अन्य देशों द्वारा मदद न मिलने का परिणाम है कि तालिबान ने उनके बीच घुसपैठ करके जगह बनानी शुरु कर दी है.

रिपब्लिकन सांसद ने अधिकारों की मांग के लिए पेश किया प्रस्ताव-
इन तमाम मुद्दों के दृष्टिगत कैलिर्फोनिया के रिपब्लिकन सांसद दाना रोहराबचेर ने दो अन्य सांसदों के समर्थन से अमेरिकी कांग्रेस में बलूचिस्तान के लोगों पर इन जुल्मों के खिलाफ ‘आत्मनिर्णयन’ के अधिकार की मांग वाला एक प्रस्ताव पेश किया. हालांकि पाकिस्तान अमेरिकी कांग्रेस में प्रस्तुत इस प्रस्ताव को एक षडयंत्र का हिस्सा मानता है. यहां की सरकार और मीडिया का आरोप है कि इस प्रस्ताव द्वारा पाकिस्तान के ‘बल्कनीकरण’ करने की कोशिश है.

प्रस्ताव में कहा गया है कि बलूचिस्तान का प्रदेश पाकिस्तान, ईरान और अफगानिस्तान में फैला हुआ है. जहां के लोगों को कोई संप्रभु अधिकार नहीं दिया गया है. खास करके पाकिस्तान में बलूच लोगों को हिंसा और गैर कानूनी हत्या का शिकार बनाया जा रहा है. इसलिए बलूच लोगों का आत्मनिर्णय का अधिकार मिले और उनका अपना संप्रभु देश हो.

पीएम यूसुफ रजा गिलानी ने प्रस्ताव खारिज कर दिया -
प्रस्ताव पेश करने से चंद दिन पहले ही ह्यूमन राइट्स वॉच (एचआरएन) और एमनेस्टी इंटरनेशनल ने अमेरिकी कांग्रेस के सामने पाक सरकार पर अपने अशांत प्रांत बलूचिस्तान में दमनकारी नीति अपनाकर निर्मम बलप्रयोग करने का आरोप लगाते हुए, मानवाधिकारों के घोर उल्लंघन पर गंभीर चिंता भी जताई थी. हालांकि तत्कालीन पाक प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी ने इस प्रस्ताव को खारिज करते हुए कहा कि यह हमारी स्वायत्तता का उल्लंघन है.

विदेश मंत्री हिना रब्बानी खार का कहना है कि यह प्रस्ताव पाक-अमेरिका के संबंधों को और खराब करेगा. पाक संसद के दोनों सदनों ने सर्वसम्मति से उक्त प्रस्ताव के खिलाफ प्रस्ताव पारित किए हैं जिसमें अमेरिकी प्रस्ताव को पाक के आंतरिक मामलों में दखल करार दिया गया है इसे अंतरराष्ट्रीय कानूनों के खिलाफ भी बताया गया है.

अमेरिका के खिलाफ पाक जनता में रोष-
पाकिस्तान में ऐसे लोगों की कमी नहीं है जिनका कहना है कि अमेरिका ईरान पर नजर रखने के लिए बलूचिस्तान में अपने सैनिक अड्डे बनाना चाहता है. इस आरोप को अमेरिका ने खारिज कर दिया है. दूसरी तरफ बलूच राष्ट्रवादियों ने इस प्रस्ताव का स्वागत किया है और अमेरिका का शुक्रिया अदा किया है. बहरहाल इस प्रस्ताव ने पाक की सभी राजनीतिक और धार्मिक पार्टियों को तमाम आपसी मतभेदों के बावजूद एकजुट कर दिया है अमेरिका के खिलाफ पाक जनता में रोष भी बढ़ गया है.

कूटनीतिक मायने-
अमरीका मे पाकिस्तान के पूर्व राजदूत हुसैन हक्क़ानी के अनुसार पाकिस्तान को प्रधानमंत्री मोदी ने एक क़िस्म की चुनौती दी है कि अगर पाकिस्तान भारत के बारे में अपना रवैया तब्दील नहीं करेगा तो भारत भी एक नया रवैया पैदा कर सकता है. इसलिए आवश्यक है कि बलोचों के दिल को पाकिस्तान से जोड़ा जाए बलोच लोगों को ग़ैर मुल्क़ की दखलअंदाजी से कोई फ़ायदा नहीं होगा और पाकिस्तान को फौज़ी ताक़त के इस्तेमाल से कोई फ़ायदा नहीं होगा.

बलोच लोगों के मानवाधिकारों के उल्लंघन पर उन्होंने कहा कि किसी मुल्क़ में इंसानी हक़ों को दबाया जाएगा और उस पर वो मुल्क़ ख़ुद नहीं बोलेगा तो दूसरे देश उस पर बोलना शुरू कर देंगे. हक्क़ानी के अनुसार ''बलोच बहुत ज़्यादा लाचार हैं और उनके साथ बहुत ज़्यादती हो रही है. हेलीकॉप्टर से उनके ऊपर बमबारी, गैरकानूनी हत्याएं, किल एंड डंप की पॉलिसी ये सब बलूचिस्तान में हो रहा है. ये सब होता रहा तो बलूचिस्तान को पाकिस्तान में रखना आसान नहीं होगा.

1970 के दशक में बलोचियों ने तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू से भी बलूचिस्तान के भारत के साथ विलय की मांग की थी. अब एक बार फिर वर्तमान पीएम मोदी के बयान से उत्साहित बलोची नेताओं ने ने केवल मोदी का समर्थन किया है अपितु भारतीय तिरंगा भी बलूचिस्तान में फहराया गया.  

1. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बयान के निहितार्थ-
• कश्मीर में पाकिस्तान की गतिविधियों का मुकाबला करने हेतु पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर यानी पीओके, गिलगित और बलूचिस्तान का जिक्र करके नरेंद्र मोदी ने मोर्चा खोल दिया. इससे पाकिस्तान एक ओर जहाँ खुद अपनी ही कूटनीति में उलझता नजर आ रहा है, वही चीन के भी अरमानों पर पानी फिर जाने के आसार पैदा होने लगे हैं. चीन बलूचिस्तान में आर्थिक कोरिडोर से जुड़ी महत्वाकांक्षी परियोजना पर काम कर रहा है.

• यह पाकिस्तान के उस झूठ का जवाब भी है जिसे कश्मीर के लोगों को भड़काने हेतु पाकिस्तान कश्मीर को लेकर अंतर्राष्ट्रीय मंच पर प्रचारित और प्रसारित करता रहा है.

• प्रधानमंत्री का बयान दर्शाता है कि अब पानी सर से ऊपर जाने लगा है. हालाँकि इस पर काफी समय से काम किया जा रहा था जिसमे वह तमाम अधिकारी शामिल रहे जो पाकिस्तान में रहे हैं या वहां के हालत से वाकिफ हैं

2. पाकिस्तान को उसी की भाषा में जवाब-
कश्मीर से पाकिस्तान का ध्यान हटाने के लिए भारत ने उसी तरह मुद्दा का अंतर्राष्ट्रीय मंच पर ला खड़ा किया है जैसा कि अब तक पाकिस्तान करता रहा है.
• बलूचियों को क्यों सरकार के गठन में भाग लेने की अनुमति नहीं हैं?
• बलूचियों को क्यों सरकारी पदों आदि में नियुक्त नहीं दी जा रही.
• भारत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बलूचिस्तान में मानवाधिकारों के उल्लंघन के मामलों को झूठा बनाने की सच्चाई को बेनकाब करना चाहता है.

3. बलूचिस्तान में भारत के सामरिक हित-
इस सबके बावजूद बलूचिस्तान में भारत के सामरिक हित भी हैं जो निम्न है-
• बलूचिस्तान की भूरणनीतिक स्थिति
• अप्रयुक्त खनिज संसाधन
• फारस की खाड़ी के तेल गलियारों के बहुत करीब
• ईरान और अफगानिस्तान के साथ जुडी सीमा
• इरान - पाकिस्तान - भारत पाइपलाइन

यदि भारत के द्रष्टिकोण से बलूचिस्तान की स्थिति में सुधार हुआ तो यह भारत के हित में फायदेमंद होगा. बलूचिस्तान खनिज समृद्ध क्षेत्र है जो भविष्य में व्यापार संबंधों के लिए अवसर प्रदान कर सकता है.

बलूचिस्तान क्षेत्र में अस्थिरता के कारण बहुप्रतीक्षित आईपीआई पाइपलाइन के लिए भी यह हितकर रहेगा. तेल जरूरतों हेतु भी दूसरे देशों पर भारत की निर्भरता कम हो जाएगी.

4. चीन की उपस्थिति का मुकाबला-
• चीन पाकिस्तान के साथ मजबूत संबंध विकसित करने की कोशिश कर रहा है और पाकिस्तान से बलूचिस्तान के रास्ते एक आर्थिक गलियारे के विकास के लिए योजना बना रहा है.
• चीन बलूचिस्तान के ग्वादर बंदरगाह को भी तैयार कर रहा है. जो मध्य पूर्व और अफ्रीका से तेल और कच्चे माल के आयात और चीन के सिंकियांग प्रांत से ग्वादर भूमि गलियारे के माध्यम से माल के निर्यात की सुविधा विकसित करने पर निवेश कर रहा है.
• भारत को घेरने की चीन की यह अनूठी रणनीति भारत के लिए काफी चिंता का विषय है.

परिणाम-
• बलूचिस्तान में पाकिस्तान द्वारा की जा रही अमानवीयता और अत्याचारों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मंच मिलता है तो निश्चित रूप से जो देश कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान की सहायता कर रहे हैं वे हिचक महसूस करेंगे.
• यह कदम चीन - पाक बुनियादी ढांचे के विकास में रुकावट पैदा करेगा जो भारत के पक्ष में है.

निष्कर्ष-
यदि बलूचिस्तान पर प्रधानमंत्री के वक्तव्य का विभिन्न मुद्दों पर विश्लेषण किया जाय तो यह भारत के द्रष्टिकोण से पाकिस्तान के खिलाफ रणनीति में  एक बड़ा बदलाव है. यह पहली बार हुआ है कि भारत ने रक्षात्मक बयान के बजाय आक्रामक मुद्रा अपनायी है. प्रारम्भिक दौर में यह सतही बयान प्रतीत हो सकता है लेकिन इसके निहितार्थ लंबे समय में निर्धारित होंगे कि यह मात्र वक्ती तौर पर हालत को प्रतिहस्तान्तरित करना है या भारत ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बलूचिस्तान के मुद्दे को मजबूती के साथ रखा है.

समाधान-

बलूचिस्तान कि समस्या पाकिस्तान के सामने उपस्थित बड़ी समस्याओं से जुड़ी हुई है. उत्कृष्ट संघीय व्यवस्था इस समस्या का समाधान प्रस्तुत कर सकती है. लेकिन पाकिस्तान में स्वयं लोकतंत्र ही संकट में है ऐसे में अच्छी संघीय पद्धति एक कल्पना ही मात्र है. पाकिस्तान में बलूचिस्तान की समस्या का समाधान लोकतंत्र के प्रश्न से जुड़ा हुआ है. अतः आने वाले समय में लोकतंत्र की समर्थक सभी शक्तियों को इस दिशा में प्रयास करना होगा.

भारत कश्मीर में हो रही ज़्यादतियों पर ध्यान दे और पाकिस्तान को आज़ाद कश्मीर, गिलगित बल्तिस्तान, बलूचिस्तान, सिंध, कराची की समस्याओं पर ध्यान देना चाहिए.

बांग्लादेश और बलूचिस्तान-

बांग्लादेश से बलूचिस्तान की तुलना पर हुसैन हक्क़ानी दोनो के हालात को तो जुदा तो मानते ही हैं. भोगोलिक स्थिति को भी अनुकूल नहीं मानते. उनके अनुसार भारत बांग्लादेश के तीन तरफ़ था लेकिन बलूचिस्तान से बहुत दूर है. भारत बलूचिस्तान में गड़बड़ पैदा कर सकता है लेकिन उसे अलग नहीं करा सकता. बेहतर यही होगा पाकिस्तान अपने बलोच नेताओं से बातचीत करे और बलूचिस्तान को पाकिस्तान में हंसी खुशी रज़ामंदी के साथ रखे.

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